दिल्ली चुनाव: केजरीवाल के काम के आगे भाजपा के चाणक्य भी हुए फेल
दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक बार फिर अपना सिक्का जमा कर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है।
मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक बार फिर अपना सिक्का जमा कर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। सियासी हैसियत से देश में सबसे बड़ी पार्टी का रूतबा रखने वाली भारतीय जनता पार्टी केजरीवाल के मजबूत किले को भेदने में नाकाम रही। इस चुनाव में केजरीवाल सरकार द्वारा बीते पांच सालों में किए गये कामों पर जनता ने अपनी मुहर ऐसी ठोकी कि भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह भी देखते रह गए।
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हालांकि मौजूदा विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की सीटों में कुछ कमी आई है। पिछले विधानसभा चुनाव में आप को 70 में से 67 सीटों पर सफलता मिली थी और भाजपा को केवल तीन ही सीटे मिली थी। लेकिन राजनीतिक तौर पर काफी परिपक्व दिल्ली में सत्ता में लौटना आप की बड़ी सफलता मानी जा रही है। देश के दूसरे राज्यों से इतर दिल्ली में मतदाता ज्यादा साक्षर है और उसकी आर्थिक स्थिति भी ठीक है।
वर्ष 2011 में अन्ना हजारे के आंदोलन से देश में बने भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल से निकले अरविंद केजरीवाल ने वर्ष 2012 में आम आदमी पार्टी की स्थापना की और वर्ष 2013 में पहला विधानसभा चुनाव लड़ा तथा 28 सीटों पर सफलता हासिल कर आठ सीटे पाने वाली कांग्रेस के साथ गठबंधन की सरकार बनाई। इस चुनाव में भाजपा को 31 सीटे हासिल हुई थी। कांग्रेस से मनमुटाव होने के कारण केजरीवाल ने फरवरी 2014 में इस्तीफा दे दिया। इसी दौरान केजरीवाल के अन्ना आंदोलन के साथी प्रशांत भूषण, शांति भूषण, जस्टिस संतोष हेगडे़ और कुमार विश्वास जैसे उनसे जुदा हो गए।
इसके बाद वर्ष 2015 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को 67 सीटों पर बंपर जीत मिली और केजरीवाल दूसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए। केजरीवाल ने दिल्ली में पांच साल तक दिल्ली में सरकार चलायी और अपने सरकार के शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए कामों को लेकर दिल्ली के चुनाव में उतरे और सभी दलों पर भारी पड़े।
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2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से राजनीति में आये केजरीवाल की सियासी पारी को देखे तो उनका असर दिल्ली तक ही सीमित रहा है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी आम आदमी पार्टी का महज चार सीटे ही मिली और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी सीटों की संख्या घटकर एक रह गई। इसके अलावा दिल्ली के अलावा अन्य राज्यों में विधानसभा चुनावों की बात करे तो उसे पंजाब के अलावा कही भी ज्यादा सफलता नहीं मिली।
पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 100 से ज्यादा प्रत्याशी मैदान में उतारे थे और उसे 20 सीटों पर सफलता मिली। ऐसे में दिल्ली में एक बार फिर धमाकेदार वापसी कर केजरीवाल के पास फिर एक मौका है कि वह अपनी इस बढ़ी राजनीतिक हैसियत को एक बार फिर अन्य राज्यों में आजमा कर अपनी पार्टी सियासी ग्राफ राष्ट्रीय स्तर पर ले जा सकते है।