बड़े शहरों में तैनाती की चाह से बिगड़ रही है जिलों के मरीजों की सेहत
सीएजी द्वारा यूपी के चिकित्सालय प्रबंधन पर जारी रिपोर्ट में सामने आया है कि चिकित्सकों, नर्सों व पैरामेडिकल स्टाफ की तैनाती में काफी विषमताएं सामने आ रही है। बड़े शहरों में तैनाती की चाह जिलों के सरकारी अस्पतालों पर भारी पड़ रही है।
मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है लेकिन चिकित्सकों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। इससे चिकित्सक-मरीज अनुपात लगातार बिगड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों में ओपीडी मरीज हो या भर्ती मरीज चिकित्सकों की कमी सभी पर भारी पड़ रही है। सीएजी द्वारा यूपी के चिकित्सालय प्रबंधन पर जारी रिपोर्ट में सामने आया है कि चिकित्सकों, नर्सों व पैरामेडिकल स्टाफ की तैनाती में काफी विषमताएं सामने आ रही है। बड़े शहरों में तैनाती की चाह जिलों के सरकारी अस्पतालों पर भारी पड़ रही है।
ये भी देखें : पेट्रोल-डीजल ने तोड़ी कमर! अब कैसे दौड़ेगी आपकी गाड़ी, आसमान छू रहे दाम
2013 से 2018 के बीच मरीजों की संख्या एक तिहाई बढ़ी
हालात यह है कि राजधानी लखनऊ में जहां स्वीकृत चिकित्सकों के पदों से 54 फीसदी चिकित्सक ज्यादा तैनात थे तो बलरामपुर में 74 फीसदी कम चिकित्सक तैनात थे। प्रदेश के सरकारी चिकित्सालयों में अगर ओपीडी सेवाओं की बात करे तो वर्ष 2013 से 2018 के बीच मरीजों की संख्या एक तिहाई बढ़ गई है लेकिन चिकित्सकों की उपलब्धता में वृद्धि नहीं हुई।
इस दौरान जिला चिकित्सालयों में 24 फीसदी, जिला महिला चिकित्सालयों में 20 फीसदी तथा सीएचसी पर 12 फीसदी मरीजों की भीड़ बढ़ गई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि जिला चिकित्सालयों में 86 प्रतिशत, महिला चिकित्सालयों में 69 प्रतिशत तथा सीएचसी पर 50 प्रतिशत रोगियों को चिकित्सक द्वारा पांच मिनट से भी कम समय मिल पा रहा है।
इसी तरह सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों को भी चिकित्सकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। सीएजी रिपोर्ट के अनुसार यूपी के सरकारी अस्पतालों में स्वीकृत पदों के सापेक्ष चिकित्सकों, नर्सों व पैरा मेडिकल स्टाफ की तैनाती में काफी विषमता पाई गयी। राजधानी लखनऊ में स्वीकृत पदों के सापेक्ष 54 प्रतिशत चिकित्सक, 210 प्रतिशत नर्सें तथा पैरा मेडिकल स्टाफ में 356 प्रतिशत अधिक तैनात थे।
ये भी देखें : CAA को लेकर फैली भ्रान्तियों को दूर करने के लिए जनसंपर्क करते राजनाथ सिंह
जिला चिकित्सालय बांदा में 45 प्रतिशत पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी थी
जबकि प्रदेश के अन्य जिले चिकित्सकों, नर्सों व पैरामेडिकल स्टाफ की कमी से जूझ रहे है। बलरामपुर के संयुक्त चिकित्सालय में 74 प्रतिशत चिकित्सक, 67 प्रतिशत नर्सें कम थी। जबकि जिला चिकित्सालय बांदा में 45 प्रतिशत पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी थी। हालात इतने खराब है कि एक नर्स को 10 से 43 बेड तक के मरीजों की देखभाल करनी पड़ रही थी। जबकि मानक छह बेड पर एक नर्स का है।
स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के मुताबिक अधिकतर चिकित्सक, नर्सें व पैरा मेड़िकल स्टाफ बड़े शहरों में ही अपनी तैनाती करवाना पसंद करते है, जिसके कारण यह विषमता हो रही है।