तेज प्रताप सिंह
गोंडा: देश में दो करोड़ से भी अधिक दिव्यांग नागरिक हैं, लेकिन फिर भी जब हम किसी दिव्यांग से मिलते हैं, तो अक्सर असहज हो जाते हैं। उनके साथ सामान्य व्यवहार करने की बजाय हम जाने-अनजाने में उन्हें भी असहज महसूस करवा देते हैं। क्योंकि हमारे समाज में दिव्यांगों को उनकी शारीरिक या मानसिक अक्षमता से आगे बढ़कर देखा ही नहीं जाता है। दिव्यांगों के प्रति समाज के इस नजरिए को बदलने की पहल की है गोंडा के एक दिव्यांग दीपक त्रिपाठी ने। 'आत्मबोध संस्थान ' के बैनर तले उन्होंने 14 हजार से अधिक दिव्यांगों के जीवन में उजाला किया है। दिव्यांग जन सशक्तिकरण एवं स्वरोजगार संस्थान आत्मबोध एक ऐसे व्यक्ति की एक पहल है, जिसने स्वयं एक दिव्यांग को होने वाली कठिनाइयों का सामना किया है। 'आत्मबोध ' का उद्देश्य एक समावेशी समाज की स्थापना करना है जहां एक दिव्यांग व्यक्ति भी भेदभाव से मुक्त, गरिमा एवं सम्मान के साथ रहकर समाज की भलाई में बराबर का योगदान दे सके।
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जनगणना में देखा दिव्यांगों का दर्द
जिले के छपिया ब्लाक में ग्राम पंचायत धानेपुर के मजरे मिर्जापुर के निवासी शिक्षक रघुनाथ प्रसाद त्रिपाठी के तीसरे पुत्र दीपक जन्म से ही दोनों पैर से दिव्यांग हैं। इन्होंने इतिहास में पीजी और बीएड डिग्री धारक राज्य और केन्द्र की शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण हैं। दीपक बताते हैं कि गांव में शिक्षा मित्र के रूप में काम करते समय वर्ष 2011 की जनगणना सर्वे का काम करते हुए अहसास हुआ कि हमारे देश में दिव्यांगता को लेकर बहुत से मिथक हैं और जागरूकता की भारी कमी है। देश के इन नागरिकों के लिए मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं। आज भी हमारे यहां दिव्यांग बच्चों को बोझ समझा जाता है। बहुत-से परिवारों में तो ऐसे बच्चों पर कोई ध्यान ही नहीं दिया जाता है, कितनी बार सही इलाज से भी ये लोग वंचित रह जाते हैं। सबसे पहले उन्होंने खुद से ही शुरुआत की और ट्राईसाइकिल चलाकर छपिया ब्लाक के 79 गांवों में जाकर दो हजार दिव्यांगों की जानकारी जुटाई।
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आत्म निर्भर बनाने पर जोर
शिक्षा मित्र की नौकरी छोड़ आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प ले चुके दीपक ने वर्ष 2017 में आत्मबोध संस्थान का पंजीकरण कराकर दिव्यांगों को विकलांगता प्रमाणपत्र और पेंशन आदि सुविधाएं दिलाना शुरू किया। दीपक ने बताया कि उनका उद्देश्य दिव्यांगों के लिए कोई चैरिटी करना नहीं है। वे अपनी संस्था के लोगों को सक्षम और आत्म-निर्भर बनाने का काम कर रहे हैं। अपने परिवारवालों के आर्थिक सहयोग से वे दिव्यांगों को ट्राइसाइकिल, बैट्री रिक्शा देते हैं। अब तक पांच दर्जन से अधिक दिव्यांगों को बैट्री रिक्शा मुहैया कराया है। दीपक बताते हैं कि 13953 दिव्यांगों का डिजिटल प्रमाण पत्र (यूडीआइडी) जारी करवाया गया है। 80 प्रतिशत या उससे अधिक विकलांगता वाले दिव्यांगों जो स्वयं मेहनत कर अपनी जीविका चलाना चाहते हैं उन्हें बैट्री चालित रिक्शा उपलब्ध कराया जाता है। इसके तहत अब तक पांच दर्जन से अधिक को बैट्री रिक्शा उपलब्ध कराया गया है।
दीपक की संस्था से अब तक 14 हजार दिव्यांग जुड़ चुके हैं। जिले के हर ब्लाक में संस्था के वालंटियर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। खास बात यह है कि पदाधिकारी समेत इस संस्था से जुड़ा हर व्यक्ति दिव्यांग है। सेवा का यह कारवां अब आसपास के जिलों बस्ती, अयोध्या, बलरामपुर के साथ बिहार तक पहुंच चुका है। संस्थान के अध्यक्ष शेषराम गुप्त ने बताया कि संस्था का उद्देश्य दिव्यांग जनों की वास्तविक स्थिति का सही आकलन करके उनके जीवन स्तर में सुधार हेत आवश्यक प्रयास करना है। दिव्यांगों को मिलने वाली सारी सुविधाओं की जानकारी देना, योजनाओं से जोडऩा और उनकी गतिशीलता को बढ़ाने के लिए उचित साधन का प्रबंध किया जाता है।