दिव्यांग बेटी पूजा ने रचा इतिहास, व्हीलचेयर पर प्रचार कर दी कई दिग्गजों को मात
शारीरिक अक्षमता भी नहीं रोक सकी दिव्यांग पूजा के हौसलों की उड़ान, काटें की टक्कर के बाद मिला गांव की प्रथम नागरिक का दर्जा।
चन्दौली: शारीरिक अक्षमता भी नहीं रोक सकी दिव्यांग पूजा के हौसलों की उड़ान, काटें की टक्कर के बाद मिला गांव की प्रथम नागरिक का दर्जा। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में जनपद में मतगणना का कार्य सम्पन्न हो चुका है। परिणाम आने पर विजयी प्रत्याशियों के खेमों में जहां खुशी का माहौल है वहीं हारे प्रत्याशियों के खेमों में मातम छा गया है।
जिले के शहाबगंज विकास खंड के बरहुआ गांव का परिणाम अप्रत्याशित रहा। जहां शारीरिक अक्षमता भी दिव्यांग पूजा के हौसलों की उड़ान नहीं रोक सकी। यहाँ अनुसूचित जाति महिला के लिए आरक्षित सीट पर प्रधान पद पर दिव्यांग प्रत्याशी कुमारी पूजा ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी संध्या देवी को 87 मतों से शिकस्त दी है। पूजा ने इस जीत के साथ साबित कर दिया कि अगर हौसले बुलंद हों और लगन भी हो तो एक दिन मंजिल उसे अवश्य मिलती है।
दोनों पैरों से दिव्यांग पूजा के आगे गरीबी भी आड़े नहीं आई
दिव्यांग पूजा को चुनाव में जहां 534 मत प्राप्त हुए। वहीं उसके प्रतिद्वंदी संध्या देवी को 437 मत मिले। बचपन से ही दोनों पैरों से दिव्यांग कुमारी पूजा उम्र के 24 वर्ष पूरा करने के बाद जीवन में अभी तक कभी खुशियां नहीं देख पाई थी। 8 वर्ष पूर्व माता संजू देवी के निधन के वक्त उनकी उम्र महज 16 वर्ष थी। जन्म से दु:खों को अपनी झोली में समेटे पूजा ने जीवन में लगातार कठिनाइयों का सामना किया।
मां के निधन के बाद पिता कमलाकांत उर्फ कल्लू गोंड़ ने उसे मां व बाप दोनों का भी प्यार देकर पालन पोषण किया। पिता कमलाकांत मजदूरी करके अपनी दो बेटियों माधुरी व पूजा और इकलौते बेटे आकाश की परवरिश करते हैं। गरीबी एवं दिव्यांगता की मार से पूजा कभी स्कूल की दहलीज तक कदम नहीं रख सकी। घर पर ही रहकर वह अक्षर ज्ञान सीख कर साक्षर काबिलियत हासिल की और अपना हस्ताक्षर बनाने का हुनर को सीखा।
नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान पूजा बताया कि चुनाव लड़ने का जज्बा और हौसला गांव के अमरनाथ सिंह से मिला। व्हीलचेयर पर बैठकर पिता और समर्थकों के साथ वह पूरे गांव का भ्रमण कर एक-एक लोगों से मिलकर जीत का आशीर्वाद लेने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी। अपनी जीत को वह पिता का आशीर्वाद बताते हुए कहती हैं कि वह गांव के अमरनाथ सिंह का सदैव ऋणी रहेगी। अपनी जीत को वह पूरे गांव की जनता की जीत बताती है। अपने कार्यकाल में वह गांव की तरक्की के लिए कुछ ऐसा काम करना चाहती है, जो गांव में विकास की नजीर बन सके।
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