Diwali 2021: उल्लुओं पर आफत बनकर आती है हर साल दिवाली

Diwali 2021: इन दिनों लखनऊ तथा इसके सीमावर्ती जिलों में पक्षी तस्करों के द्वारा उल्लूओं की अवैध खरीद-फरोख्त खूब हो रही है।

Written By :  Shreedhar Agnihotri
Published By :  Shreya
Update: 2021-11-02 03:31 GMT

उल्लू (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Diwali 2021: हर साल की तरह एक बार फिर दीपावली (Deepawali) का त्यौहार आने वाला है। इसके आते ही बाजार में उल्लुओं की कीमत (Ullu Ki Kimat) बढ़ने लगी है। शिकारी पिछले कई दिनों से इनकी तलाश में जंगलों में भटक रहे हैं। इस साल दीपावली चार नवम्बर को है और इन दिनों उल्लूओं का बाजार (Ullu Ka Bazar) बेहद गर्म हो गया है।

हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उल्लू देवी लक्ष्मी (Maa Lakshmi) के वाहन के रूप में समृद्धि एवं सौभाग्य का सूचक है। बड़ी संख्या में लोग इस पक्षी को पूजते हैं। वहीं तांत्रिक क्रियाओं में उपयोग में लाए जाने की परंपरा के कारण इसका शिकार और व्यापार किया जाता है। दीपावली पर लक्ष्मी की पूजा होती है। जिसका वाहन उल्लू है पर हर साल बड़े और अमीर लोग लक्ष्मी को अपने घर में कैद करने के लिए उनके वाहन की बलि (Ullu Ki Bali) देते हैं जिसके कारण ये उल्लू चोरी-छिपे लाखों रुपए में बेचे जाते हैं। 

उल्लूओं के शिकार पर मिलती है सजा

वैसे तो उल्लूओं के शिकार (Ullu Ka Shikar) पर पूरी तरह रोक (Owl Ke Shikar Par Rok) है। भारतीय वन्य जीव अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 के अंतर्गत उल्लू संरक्षित पक्षियों की श्रेणी में आते हैं और उसे पकड़ने, बेचने, मारने पर कम से कम 3 साल जेल की सजा का प्रावधान है। तांत्रिक इस दौरान उल्लू की खोपड़ी, खून, हड्डी समेत अन्य अंगों का प्रयोग करते हैं। 

उल्लू (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

शुरू हुई उल्लूओं की अवैध खरीद-फरोख्त

सूत्रों के अनुसार इन दिनों लखनऊ तथा इसके सीमावर्ती जिलों में पक्षी तस्करों के द्वारा इनकी अवैध खरीद-फरोख्त खूब हो रही है। इस समय पक्षी बाजार में एक उल्लू की कीमत 10 हजार से लेकर कुछ विशेष प्रजाति वाले उल्लू को एक लाख तक में बेचा जा रहा है। दीपावली के वक्त उल्लू की कीमत 20 गुना बढ़ जाती है। उल्लू के वजन, आकार, रंग, पंख के फैलाव के आधार पर उसका दाम तय किया जाता है। लाल चोंच और शरीर पर सितारा धब्बे वाले उल्लू का रेट 15 हजार रुपए से अधिक होता है। 

क्या है उल्लू की बलि के पीछे मान्यता?

कुछ तांत्रिकों का कहना है कि दीपावली में महानिशीथकाल में अर्धरात्रि के समय उल्लू की बलि देने से लक्ष्मी जी की कृपा होती है तथा अन्य तांत्रिक शक्तियां जागृत होती हैं। इसी अंधविश्वास की वजह से इन निरीह पक्षियों के अस्तित्व खतरे में है। उल्लुओं से दीपावली के दिन तांत्रिक तंत्र-मंत्र को जगाने का काम करते हैं। इसके लिए वह उल्लुओं की बलि देते हैं। 

तांत्रिकों का अन्धविश्वास है कि इसका पैर धन अथवा गोलक में रखने से समृद्धि आती है। इसका कलेजा वशीभूत करने के काम में प्रयुक्त होता है। आंखों के बारे में अन्धविश्वास है कि यह सम्मोहित करने में सक्षम होता है। तांत्रिक इसके पंखों को भोजपत्र के ऊपर यंत्र बनाकर सिद्ध करते हैं। यहां तक कि उल्लुओं की पूजा सिद्ध करने के लिए उसे 45 दिन पहले से मदिरा एवं मांस खिलाया जाता है।

पूरी दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियां हैं। जिनमें रॉक आउल, ब्राउन फिश आउल, डस्की आउल, बॉर्न आउल, कोलार्ड स्कॉप्स, मोटल्ड वुड आउल, यूरेशियन आउल, ग्रेट होंड आउल, मोटल्ड आउल विलुप्त प्रजाति हैं। पेड़ों के ऊंचे स्थान, पठार के खोडर में उल्लू अपना निवास बनाते हैं। वहां से ये शिकारी इन्हें पकड़ कर लाते हैं और फिर इनकी मनचाही कीमत लेते हैं।

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