Mathura: क्या श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मस्जिद विवाद में भी सर्वे ही एकमात्र उपाय? नजरें अब कोर्ट पर
मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद आज का नहीं है। यह लंबे समय में चला आ रहा है। इस विवाद में भी ज्ञानवापी मस्जिद मामले के ही तरह याचिका कोर्ट में दाखिल है
Krishna Janmabhoomi row : हाल ही में संपन्न उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 दौरान हिंदूवादी संगठनों और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लोगों के मुंह से आपने एक नारा अवश्य सुना होगा, 'अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है।' वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) और ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) विवाद को तो आप सुन-देख ही रहे हैं, लेकिन मथुरा का विवाद क्या है? तो चलिए, newstrack.com आज अपने पाठकों को इस पूरे विवाद के बारे में बताने जा रहा है।
काशी-मथुरा विवाद महज दो धर्मों के बीच का विवाद नहीं है। इसमें कई पक्ष हैं। समय-समय पर राजनीतिक दल (Political Party) इसे लेकर सियासत भी करती रही हैं। खैर, वो बातें अपनी जगह। मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद आज का नहीं है। यह लंबे समय में चला आ रहा है। इस विवाद में भी ज्ञानवापी मस्जिद मामले के ही तरह याचिका कोर्ट में दाखिल है। श्रीकृष्ण विराजमान (Shri Krishna Virajman) द्वारा दायर याचिका में 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक की मांग की गई है।
जानिए क्या है मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद?
हिन्दू पक्ष का आरोप है. कि मथुरा (Mathura) की ईदगाह मस्जिद (Idgah Mosque) का निर्माण मंदिर (Temple) तोड़कर किया गया था। कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने अयोध्या राम मंदिर (Ram Mandir) मामले में जिस आधार पर फैसला सुनाया है, उसी तर्ज पर यहां भी रिपोर्ट तैयार करवाई जाए। अगर, रिपोर्ट में यह साबित हो जाता है कि मंदिरों को तोड़कर यहां मस्जिद बनाया गया है तो उसे वहां से हटाया जाए। हिन्दू मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण (Sri Krishna) का जन्म हुआ था। यहीं मथुरा के राजा कंस का वह कारागार था, जहां माता देवकी ने बालक कृष्ण को जन्म दिया। इसी जन्म स्थान को लेकर उठा विवाद अब तूल पकड़ चुका है। खासकर, तब जब 'ज्ञानवापी विवाद' पर बहस पूरे देश में छिड़ी हो।
क्या कंस के कारागार पर बना है ईदगाह मस्जिद?
ब्रज भूमि मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि स्थान (Shri Krishna Janmabhoomi) कैंपस में मंदिर से सटी कड़ी है 'ईदगाह मस्जिद' (Idgah Mosque)। कोर्ट में ये दलील दी गई है कि जिस स्थान पर यह ईदगाह मस्जिद बनी है, वहीं पर कंस का वो कारागार था जहां पर भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। वर्ष 1669-70 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने श्री कृष्ण जन्मभूमि स्थल पर बने मंदिर को तोड़ दिया। कहा जाता है उसी जगह पर औरंगजेब ने ईदगाह मस्जिद का निर्माण करवाया था। इस वक्त ये मामला फिर अदालत पहुंच चुका है।
सर्वे के लिए हो टीम का गठन
दरअसल, हिंदू पक्षकारों (Hindu parties) ने मांग है कि मस्जिद परिसर के सर्वे के लिए एक टीम का गठन हो। साथ ही, टीम मुआयना कर यह बताएं, कि क्या इस मस्जिद परिसर में हिंदू देवताओं की मूर्तियां तथा प्रतीक चिन्ह मौजूद हैं। ये भी बताएं कि यहां वर्तमान मस्जिद से पहले हिंदुओं का मंदिर हुआ करता था या नहीं।
श्री कृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान के फैसले पर विवाद
इस मामले में याचिकाकर्ता (Petitioner) महेंद्र प्रताप सिंह (Mahendra Pratap Singh) ने कोर्ट में याचिका दायर कर सवाल उठाया। उनका कहना है कि जब यह जमीन श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट (Shri Krishna Janmabhoomi Trust) की थी तो फिर श्री कृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान (Shri Krishna Janmabhoomi Seva Sansthan) नामक संस्था ने साल 1968 में ईदगाह कमेटी (Idgah Committee) के साथ मस्जिद न हटाने का फैसला किस आधार पर लिया?
क्या है श्री कृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान से जुड़ा विवाद?
आपको बता दें कि, श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ (Shri Krishna Janmasthan Seva Sangh) के नाम से एक सोसाइटी (Society) की स्थापना 1 मई 1958 में हुई थी। इसका नाम 1977 में बदल दिया गया। बदलाव के बाद इसका नाम श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान कर दिया गया था। लेकिन, विवाद जिस मुद्दे पर है उसके अनुसार, 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह के प्रतिनिधियों (Representatives) के बीच एक समझौता हुआ। जिसके तहत 13.37 एकड़ भूमि पर श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और मस्जिद दोनों बने रहेंगे। जिसके बाद, 17 अक्टूबर 1968 को ये समझौता पेश हुआ। 1968 के नवंबर महीने की 22 तारीख को इसे रजिस्टर किया गया।
गौरतलब है कि, यह विवाद कुल 13.37 एकड़ भूमि के मालिकाना हक को लेकर है। कुल भूमि में 10.9 एकड़ जमीन श्री कृष्ण जन्मस्थान के पास तथा 2.5 एकड़ भूमि शाही ईदगाह मस्जिद के पास है।
क्या कहना है मुस्लिम पक्ष का?
वहीं, मुस्लिम पक्ष और ईदगाह मस्जिद के सचिव (Secretary) और वकील तनवीर अहमद (Tanveer Ahmed) के अनुसार, जो लोग मस्जिद को मंदिर का हिस्सा बता रहे हैं,वो तथ्यों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उनका कहना है कि तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। इतिहास में ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जो ये बताए कि मस्जिद का निर्माण मंदिर तोड़कर किया गया था। साथ ही, उनका ये भी कहना है कि इसके सबूत भी नहीं हैं कि हिन्दू आराध्य श्री कृष्ण (Sri Krishna) का जन्म उसी जगह पर हुआ था, जहां मौजूदा वक्त में ईदगाह है।
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का पेंच
मुस्लिम पक्ष की ओर से कोर्ट में एक और दलील प्रमुखता रखी जाती रही है वो है 'प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991' का। मुस्लिम पक्ष के अनुसार, इस कानून (Act) में साफ तौर पर उल्लेखित है कि देश में आजादी यानी 1947 से पहले धार्मिक स्थलों को लेकर जो स्थिति थी वही बरकरार रखी जाएगी। यथास्थिति में किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं होगी। दूसरी तरफ, हिंदू पक्षकार (Hindu parties) और उनके वकील इस दलील के साथ विरोध कर रहे हैं कि ऐसा नहीं है कि यह मामला एकाएक या अचानक दायर हुआ है। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 में भी कहा गया है कि, अगर किसी मामले में लगातार कोर्ट में मामले दायर होते रहे हैं, या लंबित है तो वह मामला 1991 के वर्शिप एक्ट के तहत नहीं आएगा।
अस्पष्टता बरकरार
अब इस मामले में यह पता लगाना आवश्यक है कि क्या लगातार हिंदू पक्ष जिस बात का दावा कर रहा है, जिसे मुस्लिम पक्ष ख़ारिज करता रहा है कि ईदगाह मस्जिद की जगह मंदिर थी, को लेकर अस्पष्टता बरकरार है। स्थानीय लोगों और मीडिया के लोगों भी इस बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं। इस अस्पष्टता की एक बड़ी वजह ये भी है कि मस्जिद के उस हिस्से में किसी को जाने की अनुमति नहीं है।
तो अब क्या उपाय?
चूंकि अब ये मामला कोर्ट में लंबित है। अदालत में इससे मामले से जुड़ी विभिन्न याचिकाएं लंबित पड़ी हैं। अब कोर्ट को ही तय करना है कि आखिर किस पक्ष की दलीलों में कितना दम है। कोर्ट इसी महीने 19 तारीख को एक मामले की सुनवाई के दौरान यह तय करेगी, कि क्या यह मामला सुनने योग्य है या नहीं। यदि, कोर्ट इस मामले को सुनने योग्य पाती है तो इस मामले में वो सारे तथ्य और सबूत भी आएंगे, जिनके आधार पर हिन्दू और मुस्लिम पक्ष अपने-अपने दावे करते रहे हैं।
क्या ज्ञानवापी मस्जिद की तरह ही होगा सर्वे?
संभव है कि, ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में जिस तरह के आदेश कोर्ट से आया है, वैसा ही इस मामले में भी आए। यहां भी कोर्ट मस्जिद परिसर का सर्वे और वीडियोग्राफी (Surveys and Videography) के आदेश दे सकती है। मगर, ये यह सब तब होगा जब अदालत इन याचिकाओं को सुनने योग्य मानेगी।
अब हिन्दू और मुस्लिम पक्षों के साथ ही देश की नजर अदालत की अगली सुनवाई पर है। इसी में पता चलेगा कि क्या ये मामला सुनवाई में जाएगी? क्या कोर्ट यहां भी ज्ञानवापी मस्जिद की तरह सर्वे के आदेश देगी? फिलहाल, इन सभी सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में है। देखते हैं आगे क्या होता है।