संघर्ष से शिखर तक पहुंचे राष्ट्रपति पद के NDA प्रत्याशी, सुनें गांव वालों की जुबानी कोविंद की कहानी

Update: 2017-06-19 11:51 GMT
संघर्ष से शिखर तक पहुंचे राष्ट्रपति पद के NDA प्रत्याशी, सुनें गांव वालों की जुबानी कोविंद की कहानी

कानपुर देहात: एक आम इंसान कड़ी मेहनत के बल पर कहां तक पहुंच सकता है इसका जीता-जगता उदाहरण हैं रामनाथ कोविंद। बीजेपी संसदीय दल की बैठक के बाद जैसे ही कोविंद का नाम राष्ट्रपति पद के लिए घोषित हुआ उनके गांव में खुशियों की लहार दौड़ गई। कानपुर देहात के लोग इस तरह से जश्न मना रहे हैं जैसे कोई पर्व हो।

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बता दें, कि रामनाथ कोविंद कानपुर देहात के परौख गांव के रहने वाले हैं। गांव वाले बताते हैं कि रामनाथ कोविंद का बचपन बेहद गरीबी में बीता। लेकिन उनके अंदर की लगन ने उन्हें आज इस मुकाम तक पहुंचा दिया। ज्ञात हो कि कोविंद परिवार अब दिल्ली में रहता है लेकिन उन्होंने अपने पुश्तैनी घर को मिलन केंद्र बनाकर गांव वालों को सौंप दिया।

मुफलिसी में बीता बचपन

कानपुर देहात के डेरापुर ब्लॉक के छोटे से गांव परौख में रामनाथ कोविंद का जन्म 01 अक्तूबर 1954 को हुआ था। रामनाथ के पिता मैकूलाल एक छोटे से मंदिर में पुजारी थे। उनके पांच बेटों में रामनाथ सबसे छोटे हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी।

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ऐसे हुई शिक्षा-दीक्षा

कोविंद के बचपन के मित्र वीरेंदर सिंह ने बताया, कि रामनाथ ने शुरुआती शिक्षा गांव के प्राथमिक स्कूल में ही हासिल की। तब प्राथमिक स्कूल का भवन नहीं बना था। लेकिन यहीं पास के चबूतरे पर मास्टर जी पढ़ाया करते थे। 5वीं पास करने के बाद रामनाथ 8 किलोमीटर दूर प्रयागपुर दिलवल में कक्षा 8 तक की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वो कानपुर चले गए। वहीँ से इंटर की परीक्षा पास की। इसके बाद पार्ट टाइम काम करके उन्होंने ने कानपुर बीएनएसडी डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। फिर उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली चले गए। वहीं से लॉ की पढ़ाई की और सुप्रीम कोर्ट के वकील बने।

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ऐसे राजनीति में रखा कदम

रामनाथ कोविंद के राजनैतिक कैरियर की शुरुआत दिल्ली से शुरू हुई। रामनाथ मोरारजी देसाई के पीए भी रहे। बीजेपी की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार तक में उनका ओहदा बढ़ता चला गया। इसके बाद वह दो बार राज्य सभा के लिए मनोनीत हुए। इतना ही नहीं उन्होंने ने घाटमपुर से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गए। इसके बाद भोगनीपुर विधानसभा से बीजेपी की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े मगर वहां भी हार मिली। बाद में उन्हें बिहार के राज्यपाल पद के लिए नियुक्त किया गया।

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आज जब गांव वालों को उनके राष्ट्रपति पद के लिए नामित किए जाने की खबर मिली तो ख़ुशी की लहर दौड़ गई। गांव वालों ने मिठाई बांटकर ख़ुशी का इजहार किया।

अब भी जुड़े हैं गांव से

इस संबंध में ग्रामीण सुरेश ने बताया कि वह अक्सर गांव आया करते हैं। उन्होंने पूरे गांव में आरसीसी रोड बनवाया। वही गांव की लड़कियों को पढ़ाई के लिए दूर जाना पड़ता था इसलिए उन्होंने वीरांगना झलकारी बाई इंटर कॉलेज की स्थापना करवाई। गांव वाले बताते हैं जब भी आवश्यकता हो रामनाथ गांव के विकास के लिए वह हमेशा तात्पर्य रहते हैं।

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