अखलाक हत्याकांड पर बनी फिल्म सेंसर को मंजूर नहीं, निर्माता ट्रिब्यूनल में करेंगे अपील

फिल्म निर्माता ने महज 24 मिनट की डॉक्यूमेंटरी 'द ब्रदरहुड' फिल्म में तीन बड़े कट लगाने के सेंसर बोर्ड के आदेश के खिलाफ ट्रिब्यूनल में अपील करने की घोषणा की है। उन्होंने सोमवार (18 दिसंबर) को कहा कि यदि यहां से भी इंसाफ नही मिला तो वह फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

Update:2017-12-18 12:24 IST

मेरठ: फिल्म निर्माता ने महज 24 मिनट की डॉक्यूमेंटरी 'द ब्रदरहुड' फिल्म में तीन बड़े कट लगाने के सेंसर बोर्ड के आदेश के खिलाफ ट्रिब्यूनल में अपील करने की घोषणा की है। उन्होंने सोमवार (18 दिसंबर) को कहा कि यदि यहां से भी इंसाफ नही मिला तो वह फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

फिल्म के निर्माता-निर्देशक और वरिष्ठ पत्रकार पकंज पाराशर ने आज newstrack.com और अपना भारत से बातचीत में कहा कि महज 24 मिनट की 'द ब्रदरहुड' फिल्म में तीन बड़े कट लगाने का आदेश बोर्ड ने दिया है।

सेंसर बोर्ड ने किया परेशान

पकंज पाराशर ने कहा कि हम सेंसर बोर्ड के फैसले से सहमत नहीं हैं। सेंसर बोर्ड ने 5 महीनों से फिल्म को लटकाकर रखा है। बार-बार रिविजन और स्क्रीनिंग के नाम पर परेशान किया गया। दस लोगों की रिविजन कमेटी ने अब कांट-छांट करके अवांछित सर्टिफिकेट देने की बात कही है। हम इसके खिलाफ अपील ट्रिब्यूनल में अपील करेंगे। जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे लेकिन बोर्ड की मनमानी को चुनौती देंगे। हमारे पास सारे तथ्यों के प्रमाण हैं। पाराशर के अनुसार उनकी यह फिल्म बिसाहड़ा गांव में अखलाख हत्याकांड (दादरी लिंचिंग केस) के बाद पैदा हुए हालातों से शुरू होती है। ग्रेटर नोएडा क्षेत्र के दो गांवों घोड़ी बछेड़ा और तिल बेगमपुर के ऐतिहासिक रिश्तों को पेश करती है।

निर्माता ने उठाए सेंसर बोर्ड पर सवाल?

पंकज सवाल उठाते है कि क्या सेंसर बोर्ड केवल मारपीट, सेक्स, फिक्शन और रोमांस से भरी कमर्शियल फिल्मों को सर्टिफिकेट देने के लिए रह गया है। हद तो यह देखिए कि इन तीन कट को लगाने के बाद भी यू सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा। इन तथ्यों के हटाने पर बोर्ड वाले यूए सर्टिफिकेट देंगे। मतलब, बच्चे और किशोर अपने अभिभावकों की गाइडेंस में यह फिल्म देख सकते हैं। अगर सांप्रदायिक एकता और देश की आजादी का इतिहास दिखाने पर भी इतने सेंसर लगेंगे तो फिर प्राइमरी की किताबों से इन विषयों पर पढ़ाए जा रहे पाठ हटा देने चाहिए। देश के संविधान की प्रस्तावना में ही ये बातें क्यों लिखी गई हैं। बकौल पंकज पाराशर,फिल्म पद्मिनी पर इसलिए आपत्ति थी कि हिन्दुओं की भावनाएं भड़कने और हिन्दू-मुस्लिम एकता को खतरा था। अब सांप्रदायिक सौहार्द्र और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बनी डॉक्यूमेंटरी फिल्म 'द ब्रदरहुड' पर भी बोर्ड को आपत्ति है।

सामाजिक ताने-बाने पर कोई असर नहीं

निर्माता और निर्देशक पंकज पाराशर ने बताया कि डॉक्यूमेंटरी फिल्म 'द ब्रदरहुड' का निर्माण उन्होंने ग्रेटर नोएडा प्रेस क्लब के सहयोग से किया है। फिल्म की कहानी और विषय वस्तु लोगों के लिए प्रेरणादायक है। घोड़ी बछेड़ा गांव में भाटी गोत्र वाले हिन्दू और तिल बेगमपुर गांव में इसी गोत्र के मुस्लिम ठाकुर हैं। लेकिन घोड़ी बछेड़ा गांव के हिन्दू तिल बेगमपुर गांव के मुसलमानों को बड़ा भाई मानते हैं। मतलब, एक हिन्दू गांव का बड़ा भाई मुस्लिम गांव है। फिल्म बताती है कि अखलाख हत्याकांड जैसे दुर्भाग्यपूर्ण हादसे से यहां के सामाजिक ताने-बाने पर कोई असर नहीं पड़ा। यहां के लोग इसे केवल राजनीति करार देते हैं।

फिल्म दिखाने का क्या है मकसद

पंकज पाराशर बताते हैं कि बोर्ड को आपत्ति है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के गोत्र एक नहीं हो सकते हैं। फिल्म से यह बात हटाइए। इस सच को कौन झुठला सकता है। पूरे देश में एक जाति और गोत्र के लोग दोनों संप्रदायों में हैं। फिल्म में बाकायदा दोनों ओर के बुजुर्गों के इंटरव्यू हैं। जो कहते हैं कि हम एक पिता की संताने हैं। कुछ ऐतिहासिक घटनाओं के कारण मजहब बदल गए हैं। हमारी कल्चर एक है। अगर इस तथ्य को खत्म कर दिया जाएगा तो फिल्म का मूल तत्व ही समाप्त हो जाएगा। यह तो दोनों संप्रदायों के बीच मौजूद खून और डीएनए के रिश्तों को छिपाने वाली बात है। हम फिल्म में यही तो दिखाना चाहते हैं कि हिन्दू और मुसलमान एक पिता की औलाद हैं। दोनों ओर का एक गोत्र इसका वैज्ञानिक आधार है।

दूसरी आपत्ति भी आश्चर्यजनक है। ग्रेटर नोएडा के खेरली भाव गांव में 02 अप्रैल 2016 को एक मस्जिद की नींव रखी गई। मंदिर के पंडित ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मस्जिद की नींव रखी। कार्यक्रम में सैकड़ों लोग शामिल हुए थे। इस घटना पर मीडिया में खूब समाचार प्रकाशित हुए थे।

क्या कहना है सेंसर बोर्ड का?

सेंसर बोर्ड का कहना है कि इस तथ्य को भी डॉक्यूमेंटरी से हटाएं। कुल मिलाकर उन सारी बातों को हटाया जाए जो सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल हैं। लोगों को जोड़ने की प्रेरणा दे रही हैं। तीसरी आपत्ति एक इंटरव्यू में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के जिक्र पर है। पंकज पाराशर का कहना है कि बीजेपी का जिक्र हटाने से उन्हें कोई समस्या नहीं है। इससे डॉक्यूमेंटरी की मूल भावना प्रभावित नहीं होती है। लेकिन बाकी दोनों कट समझ से परे हैं।

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