Kanpur News: 165 वर्ष पूर्व का कानपुर का दशहरा, अंग्रेज पत्रकार डब्ल्यू एच. रसेल के शब्दों में रावण दहन...

Kanpur News: भारत में असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक विजयादशमी पर्व का इतिहास बेहद पुराना है। भारत में अंग्रेजों के शासन के दौरान यह त्योहार कैसे मनाया जाता था। इसका जवाब अंग्रेज पत्रकार डब्ल्यू एच. रसेल ने अपनी पुस्तक ‘माई डायरी इन इंडिया’ में बयां किया है।

Newstrack :  Network
Update:2023-10-24 12:59 IST

Kanpur Vijayadashami History (Photo - Social Media)

Kanpur News: मैं कानपुर में चर्च गया। कैंप और किले के बीच खुली भूमि पर एक बहुत बड़े ढेर को देखक़र चांक गया। यह लगभग 70 से 80 फीट लम्बा और समान ऊँचाई वाला पुतला था, ज़िसमे कई दानवाकार सिर और तमाम भुजायें थी। यह राक्षस रावण था जो श्रीराम की पत्नी को लेकर लंका उड़ गया था।

श्रीराम ने उस टापू के बन्दरों की सहायता से उसे मारा तभी से हिंदुओं में बन्दर का विशेष आदर होता हैं। यह त्योहार रावण की मृत्यु पर होता हैं। शाम को हम लोग एक सम्मानित हिन्दुस्तानी के घर गये। ज़िसका बरामदा बाहर की ओर था, वहां से पूरा कार्यक्रम देखा। बहुत बड़ा मैदान लोगों से पूरा भरा था, घुडसवार पुलिस गश्त लगाक़र भीड़ को काबू में किये थी। चमकती हुई रोशनी सब ओर फैली हुई थी।

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रावण दहन होते ही खुशी से झूम उठे थे लोग

बहुत ज्यादा संगीत और घंटों की टनटनाहट थी। पूरा कानपुर शहर बढ़िया पोशाकों में एकत्र था। गाड़ियां ऊंट और हाथी के बीच बडी कठिनाई से भीड में अपना रास्ता घुसकर बनाते थे। अंत में एक जलूस बना ज़िसमें सुन्दर पोशाकों में विचित्र बाल बनाये हुए लोग राम की सेना के रूप में शामिल थे। जब वे पुतले के पास पहुँचे लगभग 1 से 2 घंटे तक आतिशबाजी छूटती रही। आतिशबाजी में हिन्दुओं की निपुणता बहुत ज्यादा हैं।

मेजबान ने हमें बताया मशहूर आतिशबाज महारानी की घोषणा के समय इलाहाबाद में अपना प्रदर्शन करने गये थे। मुख्य कार्यक्रम रावण का ज़लना था। श्रीराम ने एक बाण चलाया ज़िससे रावण का शरीर लपटों से ज़लने लगा। उसकी आँखो से भी आग निकलने लगी। इसके सूती कपडे जो ज़लने वाली चीजों से भरे और आतिशबाजी तथा बारूद से लदे थे, तेज आवाज से फटक़र तेजी से टुकड़े-टुकड़े में बदल गये। अंत में कई बार इधर-उधर झूलता हुआ रावण का ऊपरी वजनी भाग आग के समुद्र में गिर गया। जिसके बाद चारों ओर बहुत ज्यादा शोर मचाते हुए लोग नाचने लगे।

-अनूप कुमार शुक्ल, महासचिव कानपुर इतिहास समिति

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