यूपी के एक ऐसा बाँध, जिसमे निर्माण से ज्यादा मरम्मत पर हुआ खर्च

Update:2017-08-18 12:45 IST
यूपी के एक ऐसा बाँध, जिसमे निर्माण से ज्यादा मरम्मत पर हुआ खर्च

तेज प्रताप सिंह

गोंडा: हर साल की तरह इस बार भी घाघरा की बाढ़ ने देवीपाटन मंडल के सभी जिलों में तबाही फैलाई है। प्रशासन और सिंचाई विभाग की लापरवाही के चलते एल्गिन-चरसड़ी बांध धराशायी हो गया। गोंडा की 15 ग्राम पंचायतों में बाढ़ का पानी घुसने से बीस हजार लोगों के सामने खाने-पीने व रहने के अलावा अन्य समस्याएं खड़ी हो गयीं। 15 हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया और घाघरा से सटे इलाके के लोग भी तमाम दिक्कतें झेल रहे हैं। 60 स्कूलों में जलभराव के कारण 15 हजार बच्चों की पढ़ाई ठप हो गई है। फिलहाल बाढ़ के कारण कई गांव टापू बन गए हैं। इस बार भी क्षेत्रीय ग्रामीण शासन-प्रशासन के इंतजाम से असन्तुष्ट हैं और एल्गिन बांध को महज कमाई का जरिया बता रहे हैं। सांसद की शिकायत पर अब जिम्मेदार अधिकारियों के हाथ-पांव फूल रहे हैं। 14 करोड़ की लागत से बने इस बांध की मरम्मत पर दस साल में करीब 80 करोड़ से ज्यादा खर्च हो चुका है।

गोंडा-बहराइच में घाघरा का ज्यादा तांडव

घाघरा दक्षिणी तिब्बत के ऊंचे हिमालय शिखरों से निकलती है। गोगरा या कर्णाली नदी को ही घाघरा कहते हंै। तकरीबन एक हजार किलोमीटर लंबी यह नदी लखीमपुर खीरी, बहराइच, सीतापुर, गोंडा, फैजाबाद, अयोध्या, अम्बेडकरनगर, दोहरीघाट, बलिया, छपरा आदि से गुजरती है, लेकिन बहराइच और गोंडा में इसका तांडव सबसे ज्यादा होता है। यहां भयावह कटान से हजारों किसान प्रतिवर्ष बेघर हो जाते हैं। यह सच है कि पिछले दो दशकों से ज्यादा समय से एल्गिन चरसड़ी से बाढ़ की समस्या तो खत्म नहीं हुई, लेकिन जनता के पैसोंं की बर्बादी और लूटखसोट जमकर हुई। बाढ़ से निपटने के लिए हर साल करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी स्थ्तिि जस की तस बनी हुई है।

14 करोड़ से बना तटबंध

घाघरा की कटान व फैलाव को रोकने के लिए 2005 में तत्कालीन सपा सरकार ने घाघरा नदी पर एल्गिन-चरसड़ी तटबंध के निर्माण को मंजूरी दी थी। 14 करोड़ की लागत से तटबंध का निर्माण होने से गोंडा के 82, बाराबंकी के 11 व बहराइच जिले के एक सहित 94 गांवों की 19217 हेक्टेयर क्षेत्रफल को सुरक्षित किया गया था। इस बार योगी सरकार ने दावा किया था कि इस बांध से जिले के 175 गांवों के लाखों लोगों की सुरक्षा होगी और लाखों हेक्टेयर फसल को भी बचाया जा सकेगा, लेकिन यह तटबंध इस साल भी टूट गया है। 52 किमी लम्बा यह बांध अब तक पांच बार टूट चुका है। एक माह पूर्व निरीक्षण करने आए सिचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने 300 करोड़ रुपए के घोटाले की बात कही थी और घोटाले की जांच के आदेश दिए हैं।

दस साल में मरम्मत पर 80 करोड़ खर्च

14 करोड़ की लागत से बने बांध पर 80 करोड़ से ज्यादा मरम्मत पर खर्च हो चुके हैं। वर्ष 2009 से अब तक एल्गिन-चरसड़ी तटबंध की मरम्मत पर खर्च का जो विवरण मिला है उसके अनुसार 2009 में 8 करोड़ 58 लाख, 2010 में 9 करोड़ 23 लाख, 2011 में 12 करोड़ 68 लाख, 2012 में 9 करोड़ 46 लाख, 2013 में 9 करोड़ 92 लाख, 2014 में 11 करोड़ 40 लाख, 2015 में 10 करोड़ 84 लाख, 2016 में 5 करोड़ 83 लाख रुपए खर्च हुए हैं। 2017 में इस बार फिर बांध की मरम्मत के लिए 68 करोड़ का टेंडर डाला जाना था जो किन्हीं कारणों से नहीं डाला जा सका।

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सांसद ने की मुख्यमंत्री से शिकायत

सिंचाई विभाग के आला अधिकारियों के कारनामे की शिकायत क्षेत्रीय सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से की है। उन्होंने कहा कि अप्रैल में निविदा प्रक्रिया को पूरा करके बाढ़ से पूर्व मरम्मत कर तबाही से बचाया जा सकता था। सांसद ने बाढ़ से नष्ट हुई हजारों हेक्टेयर फसल और बीस हजार आबादी की बर्बादी के लिए सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता भानु प्रताप सिंह और अधीक्षण अभियंता आरके सिंह को उत्तरदायी ठहराते हुए जांच की मांग की है।

काश बांध न बना होता

यहां के किसान और गांव के लोग मानते हैं कि अगर यह बांध न बना होता तो उनकी जिंदगी खुशहाल रहती। बांध न रहने पर पानी फैलता और निकल जाता, लेकिन अब इसके कटने पर पानी बहाव के साथ आता है और उनका सबकुछ बहा ले जाता है। एल्गिन-चरसड़ी बांध बनने के बाद से अब तक 25 लोगों की मौत हो चुकी है। 2012 और 13 में इस बांध के टूटने से क्रमश: 13 और 12 लोग बह गए थे। तटबंध पर निवास कर रहे लोगों का कहना है कि बाढ़ आने पर नेता व अफसर दिखाई देते हैं मगर बाद में कोई सुधि नहीं लेता।

केंद्रीय टीम का दौरा भी बेनतीजा

केंद्र सरकार की एक टीम ने दिसम्बर 2016 में बांध एवं गांवों का निरीक्षण किया तथा नदी की धारा मोडऩे के साथ ही उसका एरिया बढ़ाने की रिपोर्ट तैयार की। वित्त मंत्रालय भारत सरकार के सहायक निदेशक जीके मिश्रा एवं उप्र सरकार की ओर से एनएचएआई के अधिशासी अभियंता दिग्विजय मिश्रा ने अपर जिलाधिकारी त्रिलोकी सिंह, सिंचाई विभाग बाढ़ खंड के अधिकारियों ने एल्गिन-चरसड़ी बांध एवं आसपास के बाढ़ प्रभावित गांवों का भी निरीक्षण किया था। टीम ने बांध को पुन: बनवाने के साथ ही नदी की धारा को मोडऩे एवं उसका एरिया बढ़ाने की योजना को लागू करने में आ रही समस्याओं को देखा तथा नदी में पानी बढऩे से पूर्व कार्ययोजना तैयार कर कार्य कराने पर जोर दिया। बांध का एरिया बढ़ाने पर प्रभावित होने वाले गांवों को सूचीबद्घ किया गया, लेकिन इसका भी कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया।

साइफन की कमी बनी मुसीबत

सिंचाई विभाग बाढ़ खंड के एक बड़े अधिकारी की मानें तो तटबंध गलत जगह यानी नदी की पेटी में बन गया है। क्षेत्र को जल प्लावन व तटबंध कटने की स्थिति में गांवों को बचाने के लिए प्रत्येक दो किमी पर एक साइफन का निर्माण कराया जाना चाहिए था परंतु ऐसा न करके परसपुर के भौरीगंज से चंदापुर किटौली तक 17 किमी की दूरी में मात्र दो साइफन एक चरसड़ी में व दूसरा नंदौर में सरयू नदी के किनारे बनाया गया। वही चंदापुर-किटौली से घाघरा घाट तक 37 किमी के बीच घाघरा नदी के किनारे बहुअन मदार मांझा, कमियार व रायपुर के बीच मात्र तीन साइफन बनाया गया जो ऊंट के मुंह मे जीरा साबित हुआ और किसानों की मुसीबत बढ़ गई। बीते वर्ष नदियों को गहरा करने के लिए विदेश से मंगाई गई ड्रेजर मशीन का कोई फायदा नहीं मिला। महज कुछ घंटे चलने के बाद मशीन खराब हो गई। न तो मशीन ठीक हुई और न ही तटबंध बचाया जा सका।

तटबंध से खत्म हुआ घाघरा व सरयू का संगम

एल्गिन चरसड़ी तटबंध ने सरयू व घाघरा नदी का संगम भी खत्म कर दिया है। तटबंध में साइफन न होने से ये दिक्कतें आई हैं। सरयू नदी लापरवाही के चलते नदी से नाला बन गई। घाघरा नदी से एक धारा निकलकर पसका में सरयू नदी में मिली थी। इस कारण पसका को दो नदियों के संगम स्थल होने का गौरव प्राप्त था। वहीं घाघरा की तरह सरयू नदी में भी हमेशा जलस्तर बढ़ा रहता था। संगम समाप्त होने से पसका में पौष मास में संगम तट पर कल्पवास करने वाले श्रद्घालुओं की संख्या कम हुई। घाघरा का पानी न आ पाने से सरयू नदी का बहाव भी प्रभावित हुआ और यह नदी नाला बन गई। दोनों नदियों का संगम अब पसका से पांच किमी दूर परसपुर के चंदापुर किटौली गांव के पास हो गया। इस स्थान से दोनों नदियां मिलकर सफर तय करने लगीं। अगर साइफन बना दिया जाता तो सरयू नदी की यह दुर्दशा न होती।

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इस बार बाढ़ की विभीषिका को थामने की तैयारियों को विभाग के ही अधिकारियों ने ही तबाह करने का ताना-बाना बुन डाला। 68 करोड़ रुपए की बंदरबांट का मामला जब अपने हिसाब से मैनेज नहीं हो पाया तो बार-बार टेंडर निरस्त कर दिया गया। बाढ़ से निपटने के लिए सिर्फ दो महीना ही था, किन्तु जो तैयारियां होनी चाहिए थीं, उस पर पानी फिर गया। एल्गिन ब्रिज से सटे चरसड़ी तटबंध की करीब 11 किलोमीटर तक की दूरी को सबसे ज्यादा खतरा था। सिंचाई विभाग पंद्रहवें वृत्त के अधीक्षण अभियंता कार्यालय ने इस हालत को पहचाना और उसके सुधार की योजना तैयार की। इसके तहत बोल्डर पिचिंग और नियो बैग का काम प्रस्तावित हुआ, जिसमें बांध को सुरक्षित करने के लिए वहां भारी पत्थरों को जमाने और पत्थरों को एक-दूसरे से जोडऩे की योजना थी। इस मरम्मत पर 68 करोड़ की योजना तैयार कर सिंचाई विभाग ने ई-टेंडरिंग की बिड-सबमिशन नोटिस प्रमुख अखबारों में प्रकाशित कराई। इसके तहत 16 से 21 अप्रैल-17 तक टेंडर आमंत्रित किये गये थे। नोटिस के तहत इन टेंडरों को 22 अप्रैल को खोला जाना था। कई कंपनियों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई मगर जब 22 तारीख को लोग अधीक्षण अभियंता कार्यालय पहुंचे तो पता चला कि यह टेंडर ही निरस्त कर दिया गया है। इससे कई फर्मों के लोग भौचक्क रह गए। एक फर्म के प्रतिनिधि ने अपना नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि यह करतूत विभाग के ही एक अधिकारी की है। वे यह काम अपने चहेते ठेकेदार को देना चाहते थे, लेकिन इसी बीच योगी सरकार ने ई-टेंडर की व्यवस्था लागू कर दी। बात न बनने पर मुख्य अभियंता सिंचाई बीपी सिंह ने तीन बार टेंडर प्रक्रिया निरस्त कर दी। बाद में जुलाई में निविदा प्रक्रिया पूरी हुई किन्तु तब तक बरसात शुरू हो चुकी थी। इसलिए मरम्मत का कार्य नहीं हो सका।

रिटायर अभियंता को कर दिया सस्पेंड

बीते वर्ष सपा सरकार ने तो एल्गिन-चरसड़ी बांध के टूटने पर गजब की कार्रवाई की। एक ऐसे इंजीनियर को सस्पेंड कर दिया गया जो मई 2016 में ही रिटायर हो चुका था जबकि यह बांध आठ अगस्त से लेकर 12 अगस्त तक कई तरह से टूटा। प्रमुख अभियंता सिंचाई एसके वर्मा की ओर से जारी निलम्बन आदेश में मई में ही रिटायर हो चुके बाढ़ खण्ड के अवर अभियंता प्रभाकर सिंह को सस्पेंड कर दिया गया। इतना ही नहीं दूसरे जिस इंजीनियर को सस्पेंड किया गया है, उन्होंने बांध के संवेदनशील हिस्से की जिम्मेदारी जून में संभाली थी। ऐसे में जून से पहले इसकी जिम्मेदारी निभा रहे इंजीनियरों पर कोई कार्रवाई न किया जाना किसी के गले नहीं उतरा। बांध टूटने के मामले में बाढ़ खंड के जिन दो इंजीनियरों को सस्पेंड किया गया, वे दोनों अवर अभियंता के रूप में नियुक्त रहे हैं। वैसे यहां से दो प्रमुख अभियंता, दो मुख्य अभियंता व दो अधीक्षण अभियंता समेत 13 अभियंताओं पर कार्रवाई की रिपोर्ट तैयार कर शासन को भेजी गई थी।

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