लखनऊ : अगर आप मछली खाने के शौकीन हैं तो इस बात का ख्याल जरूर रखें कि प्रदूषित पानी की मछलियां न खानी पड़ें। इन मछलियों से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो सकती है। वैज्ञानिकों के शोध में यह निष्कर्ष सामने आया है। औद्योगिक और घरेलू कचरे में मिले आर्सेनिक, लेड, क्रोमियम, फ्लोराइड, स्ट्रांशियम सरीखी धातुओं वाले प्रदूषित पानी में रहने वाली मछलियां कैंसर के साथ-साथ कई बीमारियों की भी वजह बन सकती हैं।
प्रदूषित पानी की मछलियां गुर्दा, लीवर तथ तंत्रिका तंत्र की बीमारियों की भी वजह
रूहेलखंड विश्वविद्यालय के एनीमल साइंस विभाग की प्रो. नीलिमा गुप्ता ने जिले की रामगंगा, नकटिया व देवरनिया नदी के प्रदूषित पानी में रहने वाली मछलियों पर चार साल तक शोध के बाद यह पता चला है कि तमाम मछलियों में कैंसर के लक्षण पाए गए। प्रो. नीलिमा गुप्ता ने मछलियों की ‘बायोप्सी’ तो नहीं कराई पर कैंसर के मरीजों में जिस तरह के लक्षण पाए जाते हैं, उस तरह के लक्षण इन नदियों के प्रदूषित पानी की मछलियों में भी मिले हैं। कैटफिश, मांगुर, सिंघी, कतला रोहू, मछलियों पर अध्ययन किया। मछलियों का ब्लड पैरामीटर, वजन सब चेक किया तो पाया कि साफ पानी में रहने वाली मछलियों में इस तरह के लक्षण नहीं होते हैं। बरेली में नकटिया, देवरनिया नदी का पानी सर्वाधिक प्रदूषित है। उन्होंने प्रदूषित और प्रदूषण रहित क्षेत्र के पानी की मछलियों के अलग-अलग सैंपल लिए। प्रदूषित पानी में रहने वाली मछलियों में ट्रिपैनोसोमा नाम का परजीवी प्रोटोजन पाया गया, जो दक्षिण अफ्रीका, युगांडा और केन्या की नदियों की मछलियों में मिलता है। इस रोग से ग्रसित मछलियों के नियमित सेवन से मनुष्य निद्रा रोग का शिकार हो जाता है। उसके कोमा में भी जाने का खतरा बना रहता है। बीस फीसदी मछलियों में अल्सरेटिव सिंड्रोम (कैंसर के लक्षण) पाए गए। लखनऊ के एक निजी अस्पताल के चिकित्सक डॉ. संजीव के मुताबिक औद्योगिक कचरे में आर्सेनिक, लेड,क्रोमियम, स्ट्रांशियम और फ्लोराइड पाए जाते हैं। पानी में इनके घुलने से बीओडी (बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड) कम हो जाती है। जिससे मछलियां मरने लगती हैं। जबकि घरेलू कचरे में पारे की मात्रा बहुतायत होती है। इन धातुओं के मछलियों पर अलग-अलग प्रभाव होते हैं। फिर लंबे समय तक इन धातुओं के संपर्क में रहने वाली मछलियों को खाने वालों पर भी इनका असर होता है।
बच्चों के सीखने की क्षमता इन मछलियों को खाने से होती है कम
डॉ. संजीव के मुताबिक, ‘पारे की अधिकता वाले प्रदूषित पानी में रहने वाली मछलियों को खाने से गर्भवती महिलाओं के बच्चों के विकलांग होने और हीमोग्लोबिन कम होने का अंदेशा रहता है।’ वैज्ञानिकों की मानें तो आर्सेनिक की अधिकता वाले पानी की मछलियां खाने से गुर्दे खराब हो जाते हैं। आर्सेनिक डायरिया का भी खतरा बना रहता है। त्वचा की बीमारी शुरू जो जाती है। त्वचा में पाया जाने वाला मैनोलीन पर भी आर्सेनिक प्रदूषित पानी में रहने वाली मछलियों के खाने से असर होता है। यह तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित करती है। जानकारों के मुताबिक जिस-जिस पानी में शीशा अधिक मिला होता है उनमें रहने वाली मछलियां खाने से पेट दर्द, सिर दर्द, उलझन की बीमारी होने का खतरा रहता है। लंबे समय तक शीशा मिश्रित पानी में रही मछलियां लीवर और गुर्दा भी खराब करती हैं। बच्चों के सीखने की क्षमता इन मछलियों को खाने से कम होती है। ये मछलियां श्वेत और लाल रक्त कणिकाओं पर असर करती हैं। नए शोधों ने यह भी साबित कर किया है कि पारे की अधिकतर वाले प्रदूषित पानी में रहने वाली मछलियां खाने से तंत्रिका तंत्र गड़बड़ाने का अंदेशा बना रहता है। कैडमियम और क्रोमियम की अधिकता वाले प्रदूषित पानी की मछलियां कैंसर की वजह बनती हैं।