बहराइच: बाढ़ पीड़ित इलाकों में हालात काफी खराब होते दिख रहे हैं। लोगों के घरों में पानी भरा हुआ है। किसी ने सड़क तो किसी ने तटबंध पर शरण ली है। स्थिति काफी नाजुक दिख रही। अफरा-तफरी का आलम है। नाव नहीं मिली तो गैस सिलेंडर को बांधकर नाव बना लिया। उसी से लोग आवागमन कर रहे हैं। किसी तरह जिंदगी घिसट रही है। लोगों के पास सिर्फ तन का ही कपड़ा बचा है। सबसे खराब स्थिति बरुआबेहड़, बौंडी और तपेसिपाह गांव की है।
यहां तो गैस सिलेंडर को बना लिया नाव
महसी का बौंडी गांव घाघरा नदी के मुहाने पर बसा हुआ है। नदी और तटबंध के बीच यह गांव स्थित है। गांव से सटकर नदी बह रही है। नदी उफनाने के बाद गांव में पांचदिन से चार से पांच फुट पानी भरा हुआ है। यहां पर 10 नावों की दरकरार थी। लेकिन सिर्फ एक नाव मुहैया हो सकी। ऐसे में बौंडी निवासी रामधनी और उनके पड़ोसी पप्पू ने गैस सिलेंडर को आपस में बांधकर नाव बना दी। उसी से परिवार के लोग तटबंध पर पहुंचकर राहत सहायता लेते हैं। परिवार जैसे-तैसे गुजर रहा है।
मचान पर बनाते हैं भोजन
विकास खंड जरवल का ग्राम तपेसिपाह भी बाढ़ की चपेट में हैं। इस गांव में २३ मकान हैं। सभी घरों में तीन से चार फुट पानी है। गांव के लोगों ने खडं़जे पर शरण ली है। जिन्हें खडंजे पर स्थान नहीं मिला है। उन्होंने मचान बना ली है। हरिद्वार ने बताया कि मचान पर तीन दिन से कभी खिचड़ी तो कभी गुलाथी बनाकर बच्चों की भूख मिटाने की कोशिश कर रहे हैं।
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तटबंध की झाड़ियों में मिला सहारा
मिहींपुरवा के सीमावर्ती सर्राकला गांव में भी बाढ़ से त्राहि-त्राहि मची हुई है। मकान पानी में डूबे हुए हैं। यहां पर एक भी मकान ऐसा नहीं है, जहां लोग रह सकें। आधी-अधूरी गृहस्थी समेटकर चार दिन से लोग तटबंध पर झाड़ियों के बीच खुले आसमान तले गुजर-बसर कर रहे हैं। काफी विषम परिस्थितियां हैं। गांव निवासी मोहन, बुधई और गिरधारी का कहना है कि दो दिन पहले ही लंच पैकेट मिले थे। उसके बाद कोई हाल पूछने नहीं आया।
नाव नहीं मिली तो सिर से ढो रहे डूबी गृहस्थी
कैसरगंज के रेवढ़ा, गांव के लोग नाव न मिलने के चलते बाढ़ में डूबी गृहस्थी को सिर पर ढो रहे हैं। गांव निवासी राजेंद्र और सुलेमान ने बताया कि तीन दिन से नाव की मांग कर रहे हैं। लेकिन कोई भी अधिकारी सुन नहीं रहा है। ऐसे में किसी तरह परिवार को सुरक्षित निकाला। अब डूबी हुई गृहस्थी को सहेजने का प्रयास कर रहे हैं।