सपा में शामिल होंगे पूर्व केंद्रीय मंत्री सलीम शेरवानी, भाजपा की बढ़ी मुश्किलें...
बदायूं लोकसभा सीट को समाजवादी पार्टी की पारंपरिक सीट माना जाता है। सपा के संस्थापक व संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने इसे सपा के गढ़ के तौर पर तैयार किया था और बाद में धर्मेंद्र सिंह यादव को अपनी विरासत के तौर पर सौंप दिया।
लखनऊ: समाजवादी पार्टी ने बदायूं लोकसभा सीट पर अपना समीकरण दुरुस्त कर लिया है। पार्टी मंगलवार को बदायूं के पूर्व सांसद व केंद्रीय मंत्री सलीम शेरवानी को अपना बनाने जा रही है। सलीम शेरवानी ने पिछला लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था और सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र सिंह यादव को अपनी सीट गंवानी पड़ गई थी।
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बदायूं लोकसभा सीट को समाजवादी पार्टी की पारंपरिक सीट माना जाता है
बदायूं लोकसभा सीट को समाजवादी पार्टी की पारंपरिक सीट माना जाता है। सपा के संस्थापक व संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने इसे सपा के गढ़ के तौर पर तैयार किया था और बाद में धर्मेंद्र सिंह यादव को अपनी विरासत के तौर पर सौंप दिया।धर्मेंद्र यादव भी 2009 और 2014 में इस सीट से सांसद बनने में कामयाब रहे लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इसे सपा से छीन लिया। सपा की प्रत्याशी संघमित्रा मौर्य के मैदान में आने के बाद उन्हें मिली शिकस्त की वजह कांग्रेस प्रत्याशी सलीम इकबाल शेरवानी के साथ हुए मतों के विभाजन को माना जाता है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री सलीम शेरवानी का बदायूं में अच्छा रसूख है। वह पांच बार सांसद रहे हैं। पहली बार 1984 मे बदायूं से लोकसभा सांसद हुए थे सलीम शेरवानी उसके बाद 1996,98,99, व 2004 में सांसद बने । 2019 की गलती को सुधारते हुए अब सपा ने सलीम शेरवानी से हाथ मिला लिया है। बताया जा रहा है कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव मंगलवार की दोपहर में उन्हें पार्टी कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में सदस्यता दिलाएंगे।
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भाजपा की बढ़ेगी मुश्किल
सलीम शेरवानी के सपा का दामन थामने से भाजपा की परेशानी बढ़ जाएगी। लोकसभा की इस सीट पर अल्पसंख्यक मतों की तादाद अच्छी खासी है। यादव-मुस्लिम गठजोड ही अब तक सपा को इस सीट पर जीत का स्वाद चखाता रहा है लेकिन पिछले चुनाव में जब कांग्रेस की ओर से सलीम शेरवानी मैदान में उतर पडे तो सपा की सारी रणनीति बेअसर हो गई।
कांग्रेस का प्रत्याशी मैदान में आने के बाद सपा ने नाराजगी भी जताई थी लेकिन कांग्रेस ने यह कहकर पल्ला झाड लिया कि वह मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव और डिंपल यादव का समर्थन कर रही है। सपा के एक सीट पर समझौते के बदले में वह तीन सीट पर प्रत्याशी न उतारकर अपना फर्ज पूरा कर चुकी है। अगर सपा को उसके साथ समझौता करना था तो पहले ही गठबंधन में शामिल करना था।
अखिलेश तिवारी
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