Ghazipur Loksabha Election 2024: गाजीपुर में सपा और भाजपा में सीधा मुकाबला, अफजाल भूना रहे भाई का सहानुभूति

Ghazipur Loksabha Election Result Analysis: यहां के चुनाव में भाजपा नेताओं की जनसभा से लेकर नुक्कड़ सभाओं तक माफिया मुख्तार अंसारी का नाम छाया हुआ है।

Written By :  Sandip Kumar Mishra
Update: 2024-05-30 09:59 GMT

Ghazipur Loksabha Election Result Analysisपूर्वांचल के माफिया मुख्तार अंसारी की जेल में मौत के बाद गाजीपुर लोकसभा सीट पर देश भर की निगाहे हैं। गाजीपुर लोकसभा सीट पर सपा की ओर से माफिया मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी फिर से चुनावी मैदान में उतरें हैं, जो कि 2019 में रेल राज्य मंत्री रहे मनोज सिन्हा को हराकर सांसद बने थे। वो मुस्लिम वोटों और सहानुभूति फैक्टर के भरोसे हैट्रिक लगाने की तैयारी में हैं। लेकिन इस बार भाजपा की ओर से चुनावी रण में उतरे पारसनाथ राय इस सीट पर अंसारी परिवार को मात देने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पारसनाथ राय शिक्षक हैं, दशकों से राष्ट्रीनय स्वरयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा जम्मू कश्मीथर के उपराज्यीपाल मनोज सिन्हा के करीबी भी हैं। वहीं बसपा ने डॉ. उमेश कुमार सिंह को उम्मीदवार बनाया है। यहां के चुनाव में इस बार भाजपा नेताओं की जनसभा से लेकर नुक्कड़ सभाओं तक माफिया मुख्तार अंसारी का नाम छाया हुआ है। पीएम मोदी और सीएम योगी बिना नाम लिए, तो केंद्रीय मंत्री नाम लेकर मुख्तार अंसारी की चर्चा कर रहे हैं। वहीं विपक्षी दल चुनाव में विकास, अग्निवीर, परिवर्तन, रोजगार, उद्योग समेत जातिगत मुद्दों की बात कर रहे हैं। लेकिन यहां मुख्तार अंसारी फैक्टर सबसे अधिक प्रभावी है। इस बार यहां लड़ाई आमने सामने की देखने को मिल रही है। बसपा के सामने इस सीट पर लड़ाई में बने रहने की चुनौती है। 

भाजपा उम्मीदवार को इस पर भरोसा


भाजपा के उम्मीदवार पारसनाथ राय को अपने साफ छवि के साथ पीएम मोदी द्वारा चलाई जा रहे जनहित योजनाओं को लेकर भरोसा है। वहीं सीएम योगी द्वारा प्रदेश में स्थापित लॉ एंड ऑर्डर और माफियाओं के घर पर चलाए जा रहे बुलडोजर के अलावा यहां के पूर्व सांसद व रेल राज्यमंत्री रहे मनोज सिन्हा के कार्यकाल के बाद रूके पड़े विकास कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए भी लोगों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रहे हैं। बता दें कि लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा का वोट शेयर 31 प्रतिशत था और मनोज सिन्हा सांसद बने। 2019 में भाजपा का वोट शेयर बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया था। पर भाजपा इस सीट पर जीत नहीं सकी। पारसनाथ राय नए प्रत्याशी हैं। इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती 2019 में मनोज सिन्हा को मिले 4.46 लाख वोटों को पाना है। यही वोट उन्हें फाइट में दिखाएगा। गाजीपुर में कोई बड़ा चुनावी मुद्दा ज्यादा असर कारक नहीं है। विकास की चर्चा है। लेकिन चुनावी बयार में जातिवाद ज़्यादा नज़र आता है। रोजगार जैसे विषय गायब हैं। भाजपा के लिए एक सबसे बड़ा चैलेंज क्षत्रिय मतदाता की नाराजगी को दूर करना है, इसलिए भाजपा अपने पारंपरिक मतदाताओं को सुरक्षित करने की कोशिश कर रही है।

सपा उम्मीदवार इन मुद्दों से रिझा रहे मतदाताओं को


सपा उम्मीदवार अफजाल अंसारी लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा के मनोज सिन्हा को हराकर सांसद बने थे। तब वे बसपा में थे। सपा के साथ गठबंधन था। यूपी के सबसे पिछड़ा इलाका होने के बावजूद यहां बिरादरी फर्स्ट, दल सेकेंड और मुद्दा लास्ट है। गाजीपुर में सपा की स्थिति मजबूत है। पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के सहारे अफजाल अंसारी हैट्रिक लगाने की तैयारी में हैं। अफजाल इस चुनाव में अगर जीतते हैं तो मनोज सिन्हा के बाद दूसरे ऐसे सांसद होंगे, जो तीसरी बार लोकसभा पहुंचेंगे। साथ ही चौथे ऐसे सांसद बनेंगे, जो लगातार दो बार इस सीट पर जीत दर्ज करेंगे। बता दें कि बीते साल अप्रैल में गाजीपुर की एक अदालत ने अफजाल अंसारी को 4 साल जेल की सजा सुनाई थी। उन्हें सांसद पद के अयोग्य घोषित कर दिया था। दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा को निलंबित कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को निर्देश दिया था कि वह अफजाल अंसारी के मामले को 30 जून, 2024 तक हल करे। उस पर भी सभी की नजरें टिकी हुई हैं। इसी के चलते अफजाल अंसारी अपनी बेटी नुसरत अंसारी के साथ जनता के बीच जाकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। नुसरत अंसारी भी निर्दलीय उम्मीदवार हैं। सजा पर रोक के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में अफजाल ने 7 दिन का समय मांग लिया है, ताकि चुनाव हो सके। अगर कोर्ट अफजाल अंसारी के खिलाफ फैसला सुनाता है तो 1 जून को गाजीपुर में मतदान से पहले चुनाव प्रक्रिया में अफजाल अयोग्य घोषित हो सकते थे। राजनीतिक जानकारों की मानें तो फैसले के असमंजस को लेकर ही अफजाल अंसारी ने अपनी बेटी नुसरत अंसारी को गाजीपुर सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा है।

छात्र राजनीति से निकले हैं बसपा उम्मीदवार डॉ. उमेश कुमार सिंह


बसपा उम्मीदवार डॉ. उमेश कुमार सिंह काशी हिंदू विश्वविद्यालय से विज्ञान वर्ग से स्नातक कर एलएलबी और एलएलएम करते हुए छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे। 1991-92 में वह बीएचयू के छात्र संघ महामंत्री चुने गए। लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि विषय में नेट की परीक्षा पास कर पीएचडी की। इस दौरान उन्होंने उत्तर भारत में पटना से लेकर दिल्ली तक विद्यार्थियों के मुद्दों पर छात्र युवा संघर्ष मोर्चा बनाकर आंदोलन किया। छात्र जीवन के बाद उन्होंने उच्चतम न्यायालय, दिल्ली में अधिवक्ता की भूमिका में कुछ समय बिताया फिर, उसके बाद वह पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के साथ जनमोर्चा में भी लगे रहे। जब देश में अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली के रामलीला मैदान में राष्ट्रव्यापी आंदोलन का आगाज हुआ तो अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण, वीके सिंह, आनंद कुमार, योगेंद्र यादव, किरण बेदी के साथ इस आंदोलन की कोर टीम में शामिल रहे। लोकसभा चुनाव 2014 में वाराणसी में नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे अरविंद केजरीवाल का प्रचार कर रहे थे। हालांकि अरविंद केजरीवाल ने बिहार प्रांत का चुनाव प्रभारी बनाया। लेकिन उन्होंने जल्द ही आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे दिया। डॉ. उमेश कुमार सिंह को अपने पार्टी के कोर वोटर्स के साथ स्वजातीय पर भरोसा है।

गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में चुनावी मुद्दे

गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में महंगाई और रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है। अफजाल पांच साल सांसद रहे । लेकिन यहां के लोगों के लिए कुछ खास नहीं कर पाए। वे पांच साल के कार्यकाल में अपने खिलाफ अदालतों में चल रहे मुकदमों में ही व्यस्त रहे। सजा होने, जेल जाने, सदस्यता समाप्त होने और फिर बहाली होने तक पांच साल बीता दिया। फिर भी कोर्ट में सुनवाई जारी है। यहां के लोगों को ऐसे सांसद की तलाश है जो कारखाना लगा सके, ताकि रोजगार के लिए युवाओं का पलायन न करना पड़े। इसके अलावा बंद पड़ी नंदगंज चीनी मिल और बहादुरगंज कताई मिल फिर से शुरू करा सके। कैश क्रॉप गन्नेा की खेती बंद होने से किसान बेहाल हैं। विश्व विद्यालय और एयरपोर्ट न होना भी बड़ा मुद्दा हैं।

गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण

गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण की बात करें तो यहां 2.70 लाख मुस्लिम तो 4 लाख के आस-पास दलित मतदाता हैं। इसके अलावा यादव करीब 4.50 लाख और पीछड़े वर्ग के मतदाता भी 4 लाख के करीब हैं। वहीं 2 लाख भूमिहार, 1.75 लाख राजपूत और 1 लाख वैश्य हैं। इस बार के चुनाव में यहां की सियासी ऊंट किस ओर करवट लेगा यह तो 4 जून को पता चलेगा।

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