गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण की फैक्ट्रियां मंदी की लपेटे में

Update:2023-08-28 14:35 IST
गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण की फैक्ट्रियां मंदी की लपेटे में

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: मुख्यमंत्री के जिले गोरखपुर में औद्योगिक विकास के भविष्य को लेकर उम्मीदें भले ही बेशुमार हों, लेकिन वर्तमान की जमीनी हकीकत चिंताएं बढ़ाने वाली हैं। गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) की फैक्ट्रियां मंदी के लपेटे में हैं। फैक्ट्रियों में काम के घंटों में कमी हो रही है। प्रोडक्शन घटाया जा रहा है। कई फैक्ट्रियों में मजदूरों की 30 फीसदी तक छटनी हो चुकी है। रोजमर्रा की जरूरत वाली वस्तुओं की भी मांग कम होने से परेशान उद्यमी दो राहे पर खड़े नजर आ रहे हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि अच्छे दिनों का इंतजार कब तक करें। स्थिति यह है कि मंदी से टूटे उद्यमी बैंक से मंजूर लोन के बाद भी उद्योग शुरू करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।

96 गांवों में अधिग्रहण का नोटिफिकेशन जारी

गीडा को लेकर प्रदेश सरकार के प्रयासों से उम्मीदें बेशुमार हैं। मसलन, गीडा में औद्योगिक विकास को लेकर पिछले दिनों 38 प्लाटों का आवंटन हुआ। अफसरों का दावा है कि नवम्बर तक 150 एकड़ जमीन का अधिग्रहण होने से करीब 50 उद्यमियों को फैक्ट्री लगाने को जमीन की उपलब्धता हो जाएगी। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे को जोडऩे वाले गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस वे के दोनों तरफ औद्योगिक गलियारा विकसित करने के लिए 10 हजार एकड़ जमीन अधिग्रहित की जाएगी। प्रदेश सरकार ने 11 अक्तूबर को इसके लिए 400 करोड़ रुपये जारी भी कर दिया है। गोरखपुर के जिलाधिकारी ने गोला, सहजनवा और खजनी में 96 गांवों में जमीन अधिग्रहण को लेकर नोटीफिकेशन भी जारी कर दिया है।

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महंगी बिजली से उद्यमी परेशान

इन्वेस्टर्स समिट में तमाम सुविधाओं का दावा करने वाली सरकार की नीतियों ने उद्यमियों के भरोसे की कमर तोड़ दी है। चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष एके अग्रवाल कहते हैं कि देश में सबसे महंगी बिजली उत्तर प्रदेश में है। उद्यमियों को 7 से 8 रुपये प्रति यूनिट बिजली की दर से बिजली मूल्य अदा करना पड़ रहा है। सर्वाधिक दिक्कत फिक्स चार्ज से हैं। 100 से अधिक फैक्ट्रियों को अपनी कमाई बड़ा हिस्सा फिक्स चार्ज के रूप में बिजली निगम को देना पड़ रहा है। उद्यमी ओमप्रकाश जालान कहते हैं कि प्रदेश सरकार को भी पंजाब और उत्तराखंड सरकार की तरह उद्यमियों को सुविधाएं देनी होंगी। बिजली मूल्य बड़ी समस्या बनी हुई है। कंपनियों के टर्न ओवर को देखते हुए फिक्स चार्ज तय होता तो उद्यमियों को कुछ राहत होती।

गीडा की फैक्ट्रियों में आधा हो गया उत्पादन

मंदी में वस्तुओं की कम मांग, बिजली मूल्य में बढ़ोतरी और न्यूनतम मजदूरी बढऩे से गीडा के उद्यमियों की कमर टूट गई है। मांग कम होने का नतीजा है कि रोजमर्रा की जरुरतों का उत्पादन करने वाली इकाइयों में भी उत्पादन आधा रह गया है। उद्यमियों ने उत्पादन घटाने के साथ मजदूरों की छटनी की है। थोड़ा बहुत उत्पादन इस उम्मीद में जारी रखे हुए हैं कि शायद आने वाले दिनों में मंदी के बादल आने वाले दिनों में छट जाएं।

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नहीं खुल रहीं नई फैक्ट्रियां

वर्ष 1992 में गीडा में पहली फैक्ट्री स्थापित हुई थी। गीडा के 228 से अधिक फैक्ट्रियों में 2000 करोड़ से अधिक का निवेश हो चुका है। प्रदेश सरकार के निवेश के दावों के उलट गीडा में वह फैक्ट्रियां भी स्थापित नहीं हो रही हैं जिनकी औपचारिकता पूरी हो गई है। केमिकल की फैक्ट्री लगाने वाले एक उद्यमी ने मंदी को देखते हुए फैक्ट्री स्थापित करने की योजना को आगे बढ़ा दिया है। वहीं पेंट की फैक्ट्री लगाने वाले एक उद्यमी बैंक से ऋण मंजूर होने के बाद भी सुस्त पड़े हुए हैं। वे बताते हैं कि देश की प्रमुख पेंट कंपनियां शहर से लेकर गांव-कस्बों में छोटी-छोटी दुकानों तक अपना उत्पाद पहुंचा दे रही हैं। लेकिन यहां काम ही शुरू नहीं हो पा रहा है।

 

उत्पादन लागत बढ़ी, मांग हुई कम

गीडा में पहली फैक्ट्री लगाने वाले आरएन सिंह का कहना है कि मैं नट-बोल्ट और रेलवे की जरूरतों के पार्ट बनाता हूं। 37 साल के सफर में ऐसी दुर्दशा नहीं देखी है। गीडा में एक ब्रांडेड कंपनी की बिस्किट कंपनी में उत्पादन क्षमता से 35 फीसदी कम उत्पादन हो रहा है। उद्यमी अशोक अग्रवाल का कहना है कि जीएसटी से लेकर बिजली आदि के दामों में बढ़ोतरी होने से दिक्कत बढ़ी है। पहले 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक के बिस्किट पर कोई टैक्स नहीं था। अब 18 फीसदी जीएसटी देना पड़ रहा है। बिस्किट के पैकेट की कीमतें बढ़ी है, वहीं वजन कम हुआ है। उद्यमी कहते हैं कि उत्पादन लागत बढ़ रही है और मांग कम होने से मजदूरी देना मुश्किल हो रहा है।

चीनी उत्पादों से मुकाबला मुश्किल

गीडा में धागा बनाने वाली फैक्ट्रियां चीन से मुकाबला करने में खुद को अक्षम पा रही हैं। उद्यमी एसके अग्रवाल का कहना है कि चीन और भारत में धागे के दाम में काफी अंतर आ गया है। सरकार ने चीनी धागों पर किसी प्रकार की इम्पोर्ट ड्यूटी नहीं लगाई है जिससे चीनी उत्पादों से मुकाबला करना मुश्किल है। यहां डेनिम की लागत 120 रुपये मीटर है, वहीं चीन से 80 से 90 रुपये प्रति मीटर वाली डेनिम का आयात हो रहा है। युवा उद्यमी निखिल जालान का कहना है कि विदेशों से काफी कम मूल्य पर धागों के आयात होने से मुकाबला करना मुश्किल है। जैसे-तैसे उत्पादन जारी रखा गया है, लेकिन एक-दो महीने स्थिति ऐसी रही तो फैक्ट्री चलाना मुमकिन नहीं होगा। गीडा में हार्डवेयर की पहली फैक्ट्री लगाने वाले आरएन सिंह का कहना है कि मांग में 50 फीसदी तक कमी दिख रही है। पहले तीन शिफ्टों में काम होता था। मांग में कमी से कई दिनों तक दो शिफ्ट में काम हुआ और अब एक शिफ्ट में काम हो रहा है। वहीं 12 करोड़ का निवेश कर एल्मुनियम का पार्ट बनाने वाले उद्यमी आकाश जालान की फैक्ट्री में क्षमता से 60 फीसदी कम उत्पादन हो रहा है। आकाश ने इन्वेस्टर्स समिट के प्रदेश सरकार के तमाम सुविधाओं के दावे के बाद उद्यम स्थापित किया था।

सरिया उद्योग में बंदी के कगार पर

गोरखपुर का स्टील उद्योग देश में दखल रखता है मगर वर्तमान परिस्थितियों में सरिया उद्योग मंदी के कारण बंद होने की कगार पर है। सारिया उद्योग में पिछले वर्ष की तुलना में 25 फीसदी तक उत्पादन घट गया है। प्रमुख उद्यमी ओमप्रकाश जालान का कहना है कि मांग में 35 फीसदी तक कमी के चलते प्रोडक्शन के घंटों को कम किया गया है। पिछले साल की तुलना में सरिया की कीमतों में भी 30 फीसदी तक की कमी आई है। फैक्ट्री की स्थिति का अंदाजा बिजली बिल से हो जा रहा है। बिजली मूल्य में बढ़ोतरी के बाद भी बिल कम हुआ है। चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष एसके अग्रवाल का कहना है कि हमारी मांग थी कि बिजली मूल्य को पांच रुपये किया जाए, लेकिन प्रदेश सरकार ने इसे कम करने के बजाए साढ़े सात रुपये प्रति यूनिट कर दिया है। पूर्वांचल समेत प्रदेश में उद्योगों को संकट से उबारना है तो सरकार को बिजली दरों में कमी करनी चाहिए। लद्यु और मध्यम उद्योग लगाने वाले उद्यमियों को व्यक्तिगत आयकर में भी छूट देनी चाहिए।

दिवाली से उम्मीदें

इन्वेस्टर्स समिट के बाद डॉ.आरिफ साबिर ने अपने भाइयों के साथ मिलकर डिजाइनर फर्नीचर उद्योग में करीब 25 करोड़ का निवेश किया है। शुरुआती विस्तार के चलते उन्हें नुकसान तो नहीं है, पर जिस प्रगति कह उम्मीद थी वह नहीं दिख रहा है। उद्यमी डॉ.आरिफ साबिर मंदी को वैश्विक मानते हैं। उनका कहना है कि दिवाली के बाजार को लेकर उत्पादन किया जा रहा है। फर्निचर लोगों की जरूरतों का हिस्सा है। ऐसे में महंगे फर्निचर की डिमांड भले ही कम हो, रोजमर्रा की जरूरतों का फर्निचर खूब बिक रहा है। हालांकि उद्यमी सरकार की नीति को लेकर परेशान है। वह कहते हैं कि गीडा को अन्य प्रदेशों से मुकाबला करना है जहां बिजली से लेकर कई प्रकार के टैक्स में छूट दी जा रही है। सरकार को फिक्स चार्ज में कमी करनी चाहिए। ऐसा नहीं होता है तो उत्पादन लागत में बढ़ोतरी होगी।

करोड़ों का निवेश करने वाले फंसे

गोरखपुर-बस्ती मंडल में कागज का कप-प्लेट बनाने वाली 700 से अधिक मशीनें लगी हैं पर चोरी-छिपे हो रहे प्लास्टिक के उत्पादों के बाजार में पहुंचने से कागज से बने उत्पादों की मांग जोर नहीं पकड़ पा रही है। कारोबारी हितेष अग्रवाल का कहना है कि एक मशीन लगाने में 8 से 10 लाख रुपये का खर्च आता है। तमाम ऐसे कारोबारी हैं जिन्होंने एक साथ 10 से 15 मशीनें लगा ली हैं। वह बैंकों की किस्त तक जमा करने की स्थिति में नहीं है। परतावल में पांच मशीनें लगाने वाले पुनीत वर्मा का कहना है कि मांग नहीं होने से मशीनें क्षमता से आधी भी नहीं चल रही हैं। बिजली विभाग प्रत्येक महीने 75 हजार रुपये का बिल भेज रहा है। पूछने पर अधिकारी बता रहे हैं कि यह फिक्स चार्ज है। फैक्ट्री बंद भी हो गई तो इसे देना होगा। इस उम्मीद में फैक्ट्री नहीं बंद कर रहे हैं कि शायद प्लास्टिक पर प्रभावी अंकुश लग जाए।

फैक्ट्रियों पर प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की मार

गीडा के स्थापना के समय ही प्रशासन ने उद्यमियों को कॉमन इन्फलूएंस ट्रीटमेंट प्लांट सीईटीपी लगाने का भरोसा दिया था। चार दशक का वक्त गुजरने को है, पर सीईटीपी सिर्फ कागजों तक सीमित है। गीडा प्रशासन ने 78 करोड़ की लागत से 15 एमएलडी क्षमता का सीईटीपी लगाने का प्रस्ताव नमामि गंगे परियोजना के तहत केन्द्र सरकार को भेजा था। केन्द्र के हाथ खड़े करने के बाद गीडा प्रशासन अपने फंड से 17 करोड़ रुपये देने को राजी हुआ है। 20 करोड़ प्रदेश सरकार दे रही है और शेष रकम की मांग केन्द्र सरकार से की गई है। उधर, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी की कड़ी फटकार के बाद प्रदूषण बोर्ड ने 30 से अधिक फैक्ट्रियों पर करोड़ों का जुर्माना लगा दिया है। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने गीडा की फैक्ट्रियों के प्रदूषण मानकों के आधार पर उन्हें चार श्रेणियों में बांटा है। श्वेत श्रेणी में सिर्फ 33 फैक्ट्रियां हैं। चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के उपाध्यक्ष आरएन सिंह का कहना है कि जो कंपनियां पांच साल में 25 लाख रुपये की भी कमाई नहीं करती हैं, उन पर 30 लाख का जुर्माना लगाया जा रहा है। सरकारी विभाग खुद को इंस्पेक्टर राज से मुक्त नहीं कर पा रहे हैं।

 

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