अलविदा अप्पा : गिरिजा देवी ने जो वृत्त रचा वह सूना हो गया

गिरिजा देवी का जन्म, 8 मई 1929 को, वाराणसी में एक भूमिहार जमींदार रामदेव राय के घर हुआ था। उनके पिता हारमोनियम बजाया करते थे एवं उन्होंने गिरिजा देवी जी को संगीत सिखाया।

Update:2017-10-28 14:47 IST
अलविदा अप्पा : गिरिजा देवी ने जो वृत्त रचा वह सूना हो गया

संजय तिवारी

काशी की शास्त्रीय परंपरा की एक बड़ी कड़ी टूट गई। ठुमरी और दादर के साथ चैता और टप्पा में गुल, बैत, नक़्श, रुबाई, धरू, कौल कलवाना और राग रागिनियों की अनगिन मोतियों की माला बिखर गयी। उपशास्त्रीय परंपरा में रसूलनबाई, बड़ी मोतीबाई, सिद्धेश्वरी देवी और निर्मला देवी के साथ गिरिजादेवी ने जो वृत्त रचा वह सूना हो गया। अप्पा नहीं रही। सुर साम्राज्ञी लता जी ने अपनी इस मित्र को खोने पर बहुत कुछ कहा है। दुनिया के स्वर साधको के लिए गहन शोक है। बनारस की मस्त और अल्हड हवाएं रुक गई हैं। गंगा की लहरों में उदास ठहराव है। मणिकर्णिका की सभी मणियां किसी प्रतीक्षा में हैं। अप्पा को कैसे विदा करें ? खुद में समग्र बनारस ही तो थीं वह।

गिरिजा देवी का जन्म, 8 मई 1929 को, वाराणसी में एक भूमिहार जमींदार रामदेव राय के घर हुआ था। उनके पिता हारमोनियम बजाया करते थे एवं उन्होंने गिरिजा देवी जी को संगीत सिखाया। कालांतर में इन्होंने गायक और सारंगी वादक सरजू प्रसाद मिश्रा पांच साल की उम्र से ख्याल और टप्पा गायन की शिक्षा लेना शुरू की। नौ वर्ष की आयु में, फिल्म याद रहे में अभिनय भी किया और अपने गुरु श्री चंद मिश्रा के सानिध्य में संगीत की विभिन्न शैलियों की पढ़ाई जारी रखी।

संगीत की शिक्षा उन्होंने कबीर चौरा स्थित अपने गुरु के घर में प्राप्त की। उनके गुरु के वंशज आज भी यहां रहते हैं। इसी कबीर चौरा में पं. कंठे महाराज, पं. किशन महाराज, हनुमान प्रसाद, बड़े रामदास, राम सहाय, राजन-साजन मिश्र जैसे कई प्रसिद्ध शास्त्रीय गायकों, संगीतकारों और कई अन्य फनकारों का परिवार निवास करता है। उनका पूरा जीवन व गायन गंगा के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा। वह जब पंद्रह वर्ष की थी तो एक व्यापारी मधुसूदन जैन से विवाह कर लिया। वह भी संगीत और कविता के प्रेमी थे। पति से समर्थन पाने के लिहाज से भाग्यशाली थी। शादी के एक साल बाद एक बच्ची थी। पति ने संगीत के भविष्य का समर्थन करना जारी रखा।

गिरिजा देवी ने गायन की सार्वजनिक शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो इलाहाबाद पर 1949 से की। 1946 में उनकी शादी हो गयी। लेकिन, उन्हें अपनी मां और दादी से विरोध का सामना करना पड़ा क्योंकि यह परंपरागत रूप से माना जाता था कि कोई उच्च वर्ग की महिला को सार्वजनिक रूप से गायन का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। गिरिजा देवी ने दूसरों के लिए निजी तौर पर प्रदर्शन नहीं करने के लिए सहमती दी थी, लेकिन 1951 में बिहार में उन्होंने अपना पहला सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम दिया। श्री चंद मिश्रा के साथ, 1960 (मृत्यु पूर्व )के पूर्वार्ध तक अध्ययनरत रहीं।

1980 के दशक में कोलकाता में आईटीसी संगीत रिसर्च एकेडमी और 1990 के दशक के दौरान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संगीत संकाय के एक सदस्य के रूप में काम किया। उन्होंने संगीत विरासत को संरक्षित करने के लिए कई छात्रों को पढ़ाया। 2009 के पूर्व वे अक्सर गायन के प्रदर्शन दौरे किया करती थीं। देवी बनारस घराने से गाती थीं और पूरबी आंग ठुमरी (जिसका दर्जा बढ़ने व तरक्की में मदद की) शैली परंपरा का प्रदर्शन करती थीं।

संगीत और संगीतकारों के न्यू ग्रोव शब्दकोश में कहा गया है कि गिरिजा देवी अपने गायन शैली में अर्द्ध शास्त्रीय गायन बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाने के क्षेत्रीय विशेषताओं के साथ उसके शास्त्रीय प्रशिक्षण को जोड़ती है।

वह स्वयं अपनी जीवनी में ही लिखती हैं - अपने जीवन वृत्तांत में ठुमरी साम्राज्ञी लिखती हैं कि मैंने पूरे भारत में यात्र की और रास्ते में मुझे पं. रविशंकर, अली अकबर और अन्य महान समकालीन कलाकारों का साथ मिला। वे सभी मेरे अच्छे दोस्त बनते गए। हमने एक-दूसरे के साथ अपने संगीत को साझा किया। मैंने अपने जीवन के सबसे दर्दनाक क्षणों में से एक का सामना किया, मैंने अपना पति खो दिया। उस बिंदु तक मुङो अपने दम पर जीवन का प्रबंधन कभी नहीं करना पड़ता था। यहां तक कि साधारण चीजें, जैसे बिलों का भुगतान मेरी जिम्मेदारी नहीं थी। अचानक यह जि़म्मेदारियां मेरी थीं, मैंने प्रदर्शन रोक दिया। साल बीत गए, लेकिन मेरे दोस्तों और प्रशंसकों ने मुङो इस तरह से पीड़ित नहीं देखा। उन्होंने मुङो प्रदर्शन करने को किसी तरह आश्वस्त किया। तब मंच पर वापस आई और फिर मैंने गायन में कविता व गीतों के महत्व को समझने के लिए खुद को समर्पित किया। रस, भावना की अभिव्यक्ति, मेरी रचनाओं का प्राथमिक ध्यान बन गया। मैंने प्यार के विभिन्न रूपों को अपने कठिन परिश्रम से गायिकी के रूप में प्रस्तुत किया। कृष्ण की कहानियों पर आधारित मेरी ठुमरी मेरे अभ्यास का केंद्र बिंदु बन गया। मैंने ठुमरी गायन के पूरे रंग को बदलने का फैसला किया। ठुमरी को एक माध्यम के रूप में सोचा था, जिससे मैं खुद को अभिव्यक्त कर सकती हूं। प्रेम, लालसा और भक्ति की भावनाएं ठुमरी का एक अभिन्न हिस्सा हैं और मैंने सोचा कि सही प्रकार के संगीत के साथ, मैं गीत को जीवित कर सकती हूं। यह संभव है कि गानों को एक भौतिक रूप दिया जाए।

अप्पा के प्रामाणिक जीवनी लेखक कला समीक्षक यतीन्द्र मिश्र लिखते हैं - ''ठुमरी बिना महफ़िलों का रंग सीखे आ ही नहीं सकती। आपको नायिका के मनोभावों से गुजरकर ही मानिनी या अभिसारिका के भावों को सीखना या समझना होगा, तब कहीं ठुमरी या दादरा सफल हो पाएगी. बिना बजड़े (पानी पर सजी धजी नौका) का तहज़ीब सीखे कौन बुढ़वा-मंगल में गा पाएगा? इनमें गुल, बैत, नक़्श, रुबाई, धरू, कौल कलवाना और बाक़ी ज़रूरी चीजें शामिल हैं. गिरिजा देवी इस मामले में अनूठी कलाकार हैं कि संभवत: वे ही अकेली ऐसी गायिका होंगी, जो बनारस की इन दुर्लभ गायिकी के रूपों को सीखकर प्रदर्शित भी कर सकीं हैं। उपशास्त्रीय संगीत के बड़े चौगान में वे अपनी पूर्ववर्ती गायिकाओं मसलन- रसूलनबाई, बड़ी मोतीबाई, सिद्धेश्वरी देवी और निर्मला देवी के साथ मिलकर एक आलोक-वृत्त बनाती हैं, जिसमें बनारस का रस बूंद-बूंद भीना हुआ सुवासित मिलता है। गिरिजा देवी ठुमरी की रानी तो थीं ही साथ ही 'अलंकार संगीत स्कूल' की संस्थापक श्रीमती ममता भार्गव, जिनके भारतीय शास्त्रीय संगीत स्कूल ने सैकड़ों मील की दूरी से छात्रों को आकर्षित किया है, की गुरु भी मानी जाती थीं।

अप्पा को मिले थे ये पुरस्कार

पद्म श्री (1972)

पद्म भूषण (1989)

पद्म विभूषण (2016)

संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1977)

संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप (2010)

महा संगीत सम्मान पुरस्कार (2012)

संगीत सम्मान पुरस्कार (डोवर लेन संगीत सम्मेलन)

GIMA पुरस्कार 2012 (लाइफटाइम अचीवमेंट)

Tanariri पुरस्कार

प्रणाम अप्पा !

आपकी डोलिया कौन उठा पायेगा अप्पा जी? चारों कहाँर मिलकर उठाएं भी, तो भी ठुमरी, दादरा, कजरी और चैती को कौन उठा पायेगा? किसमें सामर्थ्य कि मणिकर्णिका से कह सकें,थोड़ा कम बहा कर ले जाना..थोड़ा सा छोड़ देना हमारी गिरिजा मां को..शायद अग्नि और जल मिलकर थोड़ा छोड़ दें अपनी लीक पर ज्योति की मानिंद ठुमरी के सनातन प्रवाह को....

यतीन्द्र मिश्र, गिरिजा देवी के प्रामाणिक जीवनीकार

संगीत मर्मज्ञकाशी की शास्त्रीय संगीत परंपरा की एकमात्र संवाहिका थीं पद्मविभूषण गिरिजी देवी। गुरु-शिष्य परंपरा को उन्होंने जीवंत रखा। शास्त्र से लोक तक की संगीत परंपरा उनके पास थी। अपने शिष्यों को गायन की शिक्षा देकर उन्होंने अपनी विरासत को संवारने का प्रयास किया है.

पंडित राजेश्वर आचार्य

मेरी तो मां चली गईं। मुझे एक शिष्या होने के अलावा एक बेटी होने का भी सौभाग्य मिला था। हमें डर लगता था कि ऐसा होगा, लेकिन अप्पा इतना उत्साहित, जिंदादिल, बहादुर और ऊर्जावान थीं कि कई बार मृत्यु को मात दे चुकी थीं। बाईपास सर्जरी करा चुकी थीं, दिल का दौरा भी पड़ा, लेकिन साधना के सुर मद्धम नहीं पड़े। वह कहती हैं कि साधकों की अंतिम परिपाटी चली गईं। उनका रोम-रोम संगीत और बनारस को समर्पित था।

लोकगायिका मालिनी अवस्थी

गिरिजा देवी बनारस की शान थीं। दिग्गज संगीत साधकों जैसे कंठे महराज, पंडित रविशंकर, लच्छू महराज, गोदई महराज, किशन महराज आदि नक्षत्र की अंतिम कड़ी थीं। तुलसी घाट पर संगीत समारोह के ठीक पहले एक उनका सम्मान समारोह हुआ था। जब हमने उन्हें संकटमोचन संगीत समारोह में आने के लिए कहा तो बोलीं ‘काहें न आईब’। हमारे बाबा प्रख्यात पखावज वादक पंडित अमरनाथ मिश्र जी को भईया कहती थीं। उन्होंने कोलकाता जाने के बाद भी बनारसीपन नहीं छोड़ा था। किसी भी बनारसी से मिलने पर वह बनारसी लहजे में ही बात करती थीं। उनकी शिष्यों की लंबी परंपरा है। उन्होंने सर्वाधिक शिष्य तैयार किए थे। यही वजह है कि उनकी गायकी लंबे समय तक कायम रहेगी। दुनिया में बनारस के संगीत और गायकी की जो लोकप्रियता है उसमें गिरिजा देवी का बड़ा योगदान रहा।

-प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र, महंत, संकटमोचन मंदिर

गिरिजा देवी के साथ ही एक युग का अंत हो गया, लेकिन उनकी गायिकी जिंदा रहेगी।

पंडित राजन साजन मिश्र

वह मेरी बड़ी बहन की तरह थीं। उन्होंने बनारस घराने को एक नए मुकाम तक पहुंचाया था। बनारस घराने में उनकी जगह कोई और नहीं ले सकता। गिरिजा देवी को भारत रत्न दिया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश सरकार उनके नाम पर एक संगीत अकादमी की स्थापना करे।

पं. छन्नू लाल मिश्र

गिरिजा देवी बहुत बड़ी हस्ती थीं। वह बनारस संगीत की अभिभावक की तरह थीं। हम उनसे प्रेरणा लेते थे।

कलाविद् अशोक कपूर

अप्पा जी बनारस घराने की गायकी की तपस्या की प्रतिमूर्ति थीं। गायकी उनकी साधना थी और सांस को बांधने का उनके अंदर जो दम था वो बेजोड़ था। उन्होंने कई बार कहा कि सोमा मैं तुमसे कुछ भी नहीं लूंगी, तुम सिर्फ मेरे पास आ जाओ। उन्होंने जितना प्यार दिया उतना संगीत जगत में किसी और ने नहीं दिया।

पद्मश्री सोमा घोष

सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि

देर रात ट्विटर के शीर्ष ट्रेंड में भी गिरिजा देवी शामिल रहीं। पीएम नरेंद्र मोदी, प्रेसिडेंट रामनाथ कोविंद, पूर्व प्रेसिडेंट प्रणव मुखर्जी, सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर, जावेद अख्तर, पंकज उधास, प्रोसेनजित चटर्जी, शर्मिष्ठा मुखर्जी, अनुपम खेर, शुभा मुद्गल, शंकर महादेवन, अमजद अली खान जैसे कलाकारों ने भी भावभीनी श्रद्धांजलि दी। सोशल मीडिया पर ठुमरी साम्राज्ञी को नमन करने और श्रद्धांजलि देने का दौर चलता रहा।

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