फिराक गोरखपुरी जयंती: 'लेने से ताजो-तख्त मिलता है, मांगे से भीख भी नहीं मिलती', जब फिराक ने गांधी को दिया संदेश

फिराक गोरखपुरी जयंती: फिराक गोरखपुरी ने प्रिंस ऑफ वेल्स के विरोध में 12 दिसम्बर 1920 को प्रदर्शन किया था। इसके लिए नैनी सेंट्रल जेल में उन्होंने डेढ़ वर्ष तक सजा काटी।

Update:2024-08-28 09:43 IST

फिराक गोरखपुरी फाइल फोटो (Pic: Social Media)

Gorakhpur News: आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो, जब भी उन को ध्यान आएगा तुम ने ‘फ़िराक़’ को देखा है। ये शेर रघुपति फिराक सहाय गोरखपुरी का है। शब्द-शब्द बयां कर रहा है कि फिराक यूं ही फिराक नहीं हैं। खुद लिखते हैं कि लोगों को फिराक को करीब से देखने का फख्र होगा। फिराक की जिंदगी के तमाम कही अनकही कहानियां हैं। महज 17 वर्ष की उम्र में उनकी पहली रचना प्रकाशित हुई। अंग्रेजी हुकूमत में डिप्टी कलक्टर बने और गांधी के असहयोग आंदोलन के लिए नौकरी से इस्तीफा दे दिया। आईसीएस में चयन की लिखित सूचना आई लेकिन राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण उन्हें लंदन नहीं भेजा गया।

विद्रोही तेवर के फिराक

28 अगस्त 1896 को जन्मे फिराक गोरखपुरी का जीवन विद्रोही तेवरों वाला रहा। गांधी के भाषण से प्रेरित होकर अंग्रेजी हुकूमत से अधिकारी का पद त्यागने वाले फिराक गोरखपुरी ने प्रिंस ऑफ वेल्स के विरोध में 12 दिसम्बर 1920 को प्रदर्शन किया था। इसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। नैनी सेंट्रल जेल में उन्होंने डेढ़ वर्ष तक सजा काटी। वहां से बाहर निकलने के बाद जवाहर लाल नेहरू उनसे मिले और आल इंडिया कांग्रेस कमेटी का अंडर सेक्रेटरी बना दिया। गांधी के असहयोग आंदोलन वापस लेने के साथ ही कांग्रेस के नरम दल और गरम दल के बीच टकराव भी उनके इस्तीफे का कारण था। वर्ष 1930 से वे अध्यापन के कार्य में लग गए। आजीवन शैक्षणिक व साहित्यिक गतिविधियों में संलिप्त रहे।

लेने से ताजो-तख्त मिलता है, मांगे से भीख भी नहीं मिलती

फिराक गोरखपुरी के शिष्य रहे साहित्यकार डॉ. रवीन्द्र श्रीवास्तव ‘जुगानी भाई’ कहते हैं, ‘फिराक गोरखपुरी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हैं तो नौकरी छोड़कर। कांग्रेस से विद्रोह करते हैं तो कांग्रेस छोड़ते हैं। जब देश का बंटवारा होने पर बड़े-बड़े उर्दू के साहित्यकार जब उस पार जाते हैं तब भी वे जूझते हुए कहते हैं.. पैसे का बंटवारा हो सकता है, जमीन का बंटवारा भी हो सकता है लेकिन भाषा और संस्कृति को कैसे बांटेंगे।’ जुगानी भाई बताते हैं, चौरीचौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस लिया तो असहमति जताने वालों में फिराक गोखपुरी का अंदाज सबसे अलहदा था।

कांग्रेस से इस्तीफा

उन्होंने गांधी को पत्र लिखा- बंदगी से कभी नहीं मिलती, इस तरह जिंदगी नहीं मिलती। लेने से ताजो-तख्त मिलता है, मांगे से भीख भी नहीं मिलती। इन पंक्तियों के बाद उन्होंने आगे लिखा- मैं कांग्रेस से इस्तीफा देता हूं। गोला क्षेत्र के बनवारपार गांव में जन्में फिराक गोरखपुरी ने आगरा विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विषय से एमए टॉप किया। आजीवन अंग्रेजी के शिक्षक रहे। डीडीयू में अंग्रेजी विभाग में आचार्य प्रो.अजय शुक्ला कहते हैं कि ‘फिराक की बेबाकी ही है कि वे कहते थे कि भारत में सिर्फ ढाई लोग अंग्रेजी जानते हैं। उनकी शख्सियत किसी को पंसद थी, किसी को नहीं। लेकिन उनके शेरों की कद्र हर किसी ने पूरी तबीयत से की।’

...मैं तो खुलेआम पीता हूं

मशहूर शायर रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी के शेरो शायरी को लेकर कई किस्से हैं, लेकिन राजनीतिक सफर में भी उनसे जुड़ा किस्सा बेहद रोचक है। वर्ष 1951 में हुए देश के पहले आम चुनाव में गोरखपुर साउथ की सीट पर फिराक के सामने गोरक्षपीठ के महंत दिग्विजयनाथ और कांग्रेस के सिंहासन सिंह मुकाबले में थे। चुनाव में विरोधी उनके शराब पीने की आदत को अपने-अपने तरीके से जनता के बीच परोस रहे थे। साहित्यकार रवीन्द्र श्रीवास्तव उर्फ जुगानी भाई ने आकाशवाणी के लिए फिराक द्वारा साक्षात्कार लिया था। जिसमें फिराक ने रोचक किस्से को बताया था। असल में, उरुवा बाजार की भरी सभा में फिराक ने शराब गटक कर सिंहासन सिंह के जीत की जमीन तैयार कर दी थी। चुनाव प्रचार के दौरान हुई एक घटना से फिराक खुद तो हारे लेकिन दिग्विजयनाथ को जीतने नहीं दिया।

सभा में पी शराब

जुगानी भाई बताते हैं कि, ‘चुनाव प्रचार के दौरान हिन्दू महासभा से चुनाव लड़ रहे दिग्विजयनाथ ने किसान मजदूर प्रजा पार्टी से लड़ रहे फिराक पर शराब पीने का आरोप लगा दिया था। चंद घंटे बाद फिराक ने उसी मैदान में सभा की और शराब की बोतल खोल सभी के सामने दो-तीन घूट गटक लिया। फिराक ने अपने अंदाज में कहा, ‘बंद कमरे में सभी शराब पीते हैं, मैं तो खुलेआम पीता हूं। यदि नहीं पीने वाले को ही वोट देना है तो कांग्रेस के सिंहासन सिंह को वोट दें। वह शराब नहीं पीते हैं।’ चुनाव परिणाम आया तो 9586 वोट पाने वाले फिराक अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। कांग्रेस के सिहांसन सिंह ने 57,450 मत हासिल जीत हासिल की तो महंत दिग्विजय नाथ को 25,678 वोटों पर संतोष करना पड़ा।  

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