Gorakhpur News: शराब की खाली टेट्रा पैकेट से बनाया बेंच, महापौर ने कहा- हम भी इस प्रयोग को अपनाएंगे

Gorakhpur News: गीडा में स्थापित शराब की फैक्ट्री इंडिया ग्लाईकॉल्स लिमिटेड की तरफ से खाली टेट्रा पैक से चार बेंच बनाई गई है।

Update: 2024-05-02 14:38 GMT

बेंच को देखते महापौर डॉ.मंगलेश श्रीवास्तव और पार्षद। (Pic: Newstrack)

Gorakhpur News: जिलाधिकारी कार्यालय से लेकर नगर निगम में फरियादियों के लिए बेंच या तो लकड़ी की होती है या फिर प्लास्टिक की। लेकिन अब गोरखपुर में जिलाधिकारी कार्यालय में फरियादी देशी शराब की खाली हुई टेट्रा पैकेट को रिसाइकिल कर बनाई गई बेंच पर बैठेंगे। गीडा में स्थापित शराब की फैक्ट्री इंडिया ग्लाईकॉल्स लिमिटेड की तरफ से खाली टेट्रा पैक से चार बेंच बनाई गई है। गुरुवार को महापौर से लेकर अधिकारियों की मौजूदगी में दो-दो बेंच नगर निगम और जिलाधिकारी कार्यालय में दिया गया।

टेट्रा पैक से बनाया बेंच

इंडिया ग्लाईकॉल्स लिमिटेड में बंटी-बबली ब्रांड से देसी शराब बनती है। गोरखपुर और आसपास के जिलों में इसी ब्रांड की डिमांड है। शौकीन जब देसी शराब को हलक में डालते हैं तो टेट्रा पैक को फेंक देते हैं। इसी टेट्रा पैक के अपशिष्ट से बेंच बनाया गया है। गुरुवार को आईजीएस के बिजनेस हेड एसके शुक्ल टेट्रा पैक के अपशिष्ट से बने चार बेन्च को जिलाधिकारी कार्यालय एवं नगर निगम कार्यालय को भेंट किया। इस बेंच पर अब फरियादी बैठेंगे।

नगर निगम भी करेगा ऐसी पहल

कार्यक्रम के दौरान महापौर डॉ मंगलेश कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि वेस्ट का उपयोग कैसे हो सकता है इसे लेकर आईजीएल ने मिसाल प्रस्तुत किया है। नगर निगम भी अब ऐसी पहल करेगा। हमारा भी प्रयास है कि वेस्ट का बेस्ट उपयोग हो। इस दौरान सिटी मजिस्ट्रेट मंगलेश दुबे, मुख्य राजस्व अधिकारी सुशील कुमार गोंड एवं अपर जिलाधिकारी नगर अंजनी सिंह ने आईजीएल के पहल की प्रसंशा की।

10 हजार टेट्रा पैक से तैयार हो रहा एक बेंच

आईजीएल के बिज़नेस हेड ने बताया की यह बेंच शराब के टेट्रा पैक के अपशिष्ट (कचड़े) से निर्मित किया गया। जो पूरी तरह इको फ्रैंडली है। एक बेन्च बनाने में लगभग 10000 अपशिष्ट टेट्रा पैकेट का उपयोग किया जाता है। एक बेंच बनाने में लगभग 85 किलोग्राम वेस्ट की खपत होती है। टेट्रा पैक को बनाने में मूल रूप से कागज, पॉली लेयर और एल्युमीनियम फॉयल का उपयोग होता है। टेट्रा पैक के उपयोग के बाद इसको कचड़े में डाल दिया जाता है। इससे पर्यावरण संरक्षण भी होता है।

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