Gorakhpur News: इतिहासकार प्रो.महेश कुमार शरण और DDU के पूर्व कुलपति प्रो.राधे मोहन मिश्रा का निधन
Gorakhpur News: दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो.राधे मोहन मिश्रा का दीवाली के दिन निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार सरयू तट पर शुक्रवार को किया गया।
Gorakhpur News: शिक्षा जगत से जुड़े दो दिग्गजों का 24 घंटे के अंतराल पर निधन हो गया। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के पूर्व वरिष्ठ राष्ट्रीय फेलो तथा भारतीय इतिहास संकलन समिति, गोरक्ष प्रांत के पूर्व अध्यक्ष प्रो. महेश कुमार शरण का शुक्रवार को तड़के निधन हो गया। वहीं दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो.राधे मोहन मिश्रा का दीवाली के दिन निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार सरयू तट पर शुक्रवार को किया गया।
प्रो. महेश कुमार शरण लंबे समय से बीमार चल रहे थे। शहर के पादरी बाजार स्थित आवास पर उन्होंने अंतिम सांसें लीं। वे 80 वर्ष के थे। उनके पुत्र मनीष शरण के अनुसार उनका अंतिम संस्कार शनिवार को राप्ती नदी स्थित राजघाट पर संपन्न होगा।
मूल रूप से बिहार के सीतामढ़ी जिले के रहने वाले प्रो.शरण की प्राथमिक शिक्षा दीक्षा सीतामढ़ी में ही पूर्ण हुई। मगध विश्वविद्यालय बोधगया से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद वर्ष 1966 से 1973 तक मगध विश्वविद्यालय बोधगया के स्नातकोत्तर प्राचीन भारतीय एवं एशियाई अध्ययन विभाग में अध्यापन किया। वर्ष 1973 से 1980 तक वह गया कॉलेज, गया में आचार्य एवं विभागाध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएं दीं। उन्हें वर्ष 2021 से 2023 तक के लिए भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा नेशनल फेलोशिप प्राप्त हुई। प्रोफेसर महेश कुमार शरण भारतीय इतिहास संकलन समिति, गोरक्ष प्रांत के वर्ष 2015 से 2019 तक अध्यक्ष रहे।
तीन टर्म डीडीयू के कुलपति रहे प्रो.मिश्र
प्रो. राधे मोहन मिश्र तीन बार विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। वर्ष 1999 से 2002 तक के कार्यकाल के लिए वे राजभवन द्वारा कुलपति नियुक्त हुए थे। उससे पहले 1990 के दशक में दो बार कार्यवाहक कुलपति रहे थे। वर्ष 1994 में तत्कालीन कुलपति विश्वंभर शरण पाठक के दो महीने की छुट्टी पर जाने के कारण कुलपति बने थे। उसी वर्ष प्रो. विश्वंभर शरण ने कुलपति पद से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद साढ़े तीन महीने तक कार्यवाहक कुलपति रहे थे। प्रो. हर्ष सिन्हा बताते हैं, प्रो. राधे मोहन 21वीं शताब्दी में विश्वविद्यालय के पहले कुलपति थे। प्रशासनिक दृढ़ता के कारण उन्हें ख्याति मिली। विश्वविद्यालय अराजकता के माहौल पर उन्होंने न सिर्फ काबू पाया बल्कि अनुशासन लाने में सफल रहे थे। कुलपति और भौतिकशास्त्री प्रो. पूनम टंडन ने कहा कि यह विश्वविद्यालय और विज्ञान की बड़ी क्षति है। विश्वविद्यालय की प्रगति और अनुशासन लाने में उनका बड़ा योगदान था।