Gorakhpur News: सावधान घरों में मौजूद है खतरनाक बैक्टीरिया, BRD मेडिकल कॉलेज की रिसर्च से हड़कंप, गाय और कुत्तों में इंसेफेलाइटिस जैसे रोग का खतरा

Gorakhpur News: गाय, भैंस, बकरी और कुत्ते के शरीर पर पाई जाने वाली किलनी (अठई) के खून में घातक बैक्टीरिया पाए जाते हैं। इन बैक्टीरिया से इंसेफेलाइटिस जैसे ही एक्यूट फेब्राइल इलनेस (एएफआई) रोग हो सकता है।;

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Update:2025-02-18 08:16 IST

Gorakhpur News: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दावा है कि साफ-सफाई के अभियान और डोर-टू-डोर हेल्थ डिमार्टमेंट के कैंपेन का नतीजा है कि मासूमों के लिए पूतना कहे जाने वाले इंसेफेलाइटिक को पूरी तरह काबू में कर लिया गया है। लेकिन अब घरों में पालतू जानवरों में इस रोग का खतरा दिख रहा है। घरों में पाले जाने वाले गाय, भैंस, बकरी और कुत्ते के शरीर पर पाई जाने वाली किलनी (अठई) के खून में घातक बैक्टीरिया पाए जाते हैं। इन बैक्टीरिया से इंसेफेलाइटिस जैसे ही एक्यूट फेब्राइल इलनेस (एएफआई) रोग हो सकता है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में स्थित आईसीएमआर के रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर के रिसर्च के बाद पशु वाड़ों के साफ सफाई पर सक्रियता का जोर है।

घरों में मौजूद हैं खतरनाक बैक्टीरिया

घरों में पाले जाने वाले गाय, भैंस, बकरी और कुत्ते से भी इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारी होने का खतरा है। आईसीएमआर के रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर की रिसर्च में यह सामने आया है। शोध में पता चला है कि रिकेट्सिया बैक्टीरिया शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचाता है। इस बैक्टीरिया के शरीर में पहुंचने से पहले बुखार होता है। इसके बाद जोड़ों में दर्द। अगर समय से इलाज नहीं हुआ तो यह लिवर, मस्तिष्क, किडनी को प्रभावित करता है। शोध में पता चला कि जिन किलनी के शरीर की बाहरी त्वचा कड़ी होती है, वे बेहद खतरनाक बैक्टीरिया की वाहक हैं। इन्हें हार्ड टिक या इक्सोडिडी कहते हैं। इस रिसर्च में 99 फीसदी हार्ड टिक (कड़ी त्वचा वाली किलनी) में ही खतरनाक बैक्टीरिया मिले।

ऐसे संभव है बचाव

जर्नल ऑफ अमेरिकन सोसायटी ऑफ मेडिकल एंटोमोलॉजी में प्रकाशित शोध की फाइंडिंग है कि पशुओं की नियमित सफाई करते रहने से इस खतरे से बचा जा सकता है। इस रिसर्च में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बृजरंजन मिश्रा के साथ डॉ. रजनीकांत, डॉ. नीरज कुमार, डॉ. अशोक पांडेय, डॉ. हीरावती देवल और डॉ. राजीव सिंह शामिल रहे। रिसर्च के लिए चरगांवा ब्लॉक के जंगल डुमरी व जंगल अयोध्या और भटहट ब्लॉक के करमहां और बरगदही गांवों के करीब 700 पालतू पशुओं के शरीर पर मिली किलनी के नमूने लिए गए। रिसर्च के दौरान 200 गाय, 200 भैंस, 200 बकरी और 40 कुत्तों के शरीर पर मिले 1778 किलनी ली गईं जिन्हें 17 पूल में रखा गया।

पशुओं की किलनी के खून और लार की हुई जांच

रिसर्च करने वाले डॉ. मिश्रा ने बताया कि शोध में चार तरह की किलनी मिली। 83.8 फीसदी रैपिसिफैलस माइक्रोप्लस, 7.1 फीसदी फहायलोमा कुमारी, 6.4 फीसदी रैपिसिफैलस सैंग्वीनियस और 2.4 फीसदी डर्मासेंटर आरोटस मिले हैं। जांच में 3.3 फीसदी में एनाप्लाज्मा बैक्टीरिया मिला। इससे बुखार के साथ झटके आने शुरू हो जाते हैं। रैपिसिफैलस माइक्रोप्लस में 1.6 फीसदी रिकेट्सिया बैक्टीरिया मिला। इससे बुखार, झटका के साथ ही मल्टी आर्गन फेल्योर होने लगता है। एईएस होने की आशंका 90 प्रतिशत तक हो जाती है। रैपिसिफैलस माइक्रोप्लस किलनी सिर्फ गाय के शरीर पर ही मिली।

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