Tarkulha Devi Mandir Ka Itihas: देवी मां के इस मंदिर में चढ़ाए जाते थे अंग्रेजों के सिर, स्वतंत्रता सेनानी बाबू बंधू सिंह से जुड़ी है इसकी कहानी
Tarkulha Devi Mandir Ka Itihas: स्वतंत्रता सेनानी बाबू बंधू सिंह देवी का इष्ट मानते थे। डुमरी रियासत से ताल्लुक रखने वाले बाबू बंधू सिंह गोरिल्ला युद्ध में पारंगत थे। उन्होंने अपनी इसी युद्धशैली के अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था।;
Tarkulha Devi Temple
Tarkulha Devi Mandir Ka Itihas: चैत्र नवरात्रि की शुरू हो चुकी है। नवरात्रि के पहले दिन भक्तों ने अपने घरों में कलश स्थापना कर मां शैलपुत्री की विधिवत आराधना की। मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। हर भक्त मां के दर्शन का उनका आशीर्वाद लेने को आतुर है। नवरात्रि का व्रत और पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
नवरात्रि पर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जनपद में स्थित तरकुलहा देवी मंदिर में भी भक्तों का तांता लगा हुआ है। इस मंदिर में लाखों की संख्या में भक्त दूर-दराज से दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर का इतिहास बेहद हैरान कर देने वाला है। साथ ही तरकुलहा देवी मंदिर की कहानी बाबू बंधू सिंह नाम के एक स्वतंत्रता सेनानी से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि बाबू बंधू सिंह ने यहां तरकुल के पेड़ के नीचे पिंड स्थापित कर माता की आराधना की थी।
देवी को इष्ट मानते थे बाबू बंधू सिंह
स्वतंत्रता सेनानी बाबू बंधू सिंह देवी का इष्ट मानते थे। डुमरी रियासत से ताल्लुक रखने वाले बाबू बंधू सिंह गोरिल्ला युद्ध में पारंगत थे। उन्होंने अपनी इसी युद्धशैली के अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। देश की आजादी में उनका काफी अहम रहा। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले यहां घना जंगल था। जंगल के किनारे से गर्रा नदी बहती थी। नदी के किनारे ही बाबू बंधू सिंह तरकुल के पेड़ के नीचे पिंड बनाकर माता की आराधना करते थे।
इस दौरान वहां अगर कोई भी अंग्रेज पहुंचता तो वह उसका सिर काटकर माता के चरणों में चढ़ा देते थे। इस तरह उन्होंने कई अंग्रेजों के सिर काटकर मां के चरणों में समर्पित कर दिया। अंग्रेजों को उस जंगल से भय होने लगा। उन्हें यह लगता था कि उस जंगल में जाने के बाद मौत निश्चित है। लेकिन बाद उन्हें पूरी बात का पता चला। तब अंग्रेजों ने बाबू बंधू सिंह की तलाश शुरू कर दी। लेकिन वह बंधू सिंह को ढूंढ भी नहीं सके। बाद में एक व्यापारी ने बंधू सिंह की अंग्रेजों से मुखबिरी कर दी। जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया।
सातवीं बार बाबू बंधू सिंह मिली फांसी
अंग्रेजी सरकार ने बाबू बंधू सिंह को फांसी की सजा सुना दी। लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब भी अंग्रेज उन्हें फांसी देने जाते तो वह नाकामयाब ही रहते है। यह सिलसिल छह बार चला। इसके बाद सातवीं बार अंग्रेज बाबू बंधू सिंह को तब फांसी दे सके। जब उन्होंने मां का ध्यान कर उनके चरणों में आने की गुहार लगायी और फांसी हो जाने का आग्रह किया। तब अंग्रेजों ने बाबू बंधू सिंह को अलीपुर चौराहे पर फांसी दे दी।
कहा जाता है कि जैसे ही बाबू बंधू सिंह को अंग्रेजों ने फांसी दी। उसी समय जंगल में लगे तरकुल के पेड़ जहां बाबू बंधू सिंह मां भगवती की आराधना करते थे। उस पेड़ का ऊपरी हिस्सा टूट कर जमीन पर गिर पड़ा और फिर पेड़ से खून का फव्वारा निकलने लगा। इस घटना ने अंग्रेजों को भी आश्चर्य में डाल दिया।
वहीं स्थानीय लोगों ने देवी मां की भक्तिभाव के साथ आराधना शुरू कर दिया और यहां एक मंदिर का निर्माण करवाया गया। तलकुलहा देवी मंदिर समिति की ओर से हर साल चैत्र रामनवमी पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में काफी दूर से लोग मां तरकुलहा देवी के दर्शन के लिए आते हैं।