Gorakhpur: जंगल की जमीन पर कब्जा करने वाले 56 लोगों का नाम खारिज, तरकुलहा मंदिर पर क्या होगा इसका असर?

Gorakhpur News: एसडीएम ने तरकुलहा मन्दिर और उसके आसपास की भूमि पर त्रुटिपूर्ण तरीके से दर्ज कास्तकारों के नाम को निरस्त करते हुए जंगल के नाम दर्ज करा दिया।

Update:2024-10-19 09:15 IST

जंगल की जमीन पर कब्जा करने वाले 56 लोगों का नाम खारिज   (photo: social media )

Gorakhpur News: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में देवरिया मार्ग पर प्रसिद्ध शक्तिपीठ देवी तरकुलहा मन्दिर और उसके आसपास स्थित 60.49 एकड़ भूमि को लेकर एसडीएम प्रशांत वर्मा ने जंगल की जमीन बताते हुए इसपर काबिज 56 खातेदारों के नाम को खारिज कर दिया है। जंगल की जमीन पर ही तरकुलहा देवी का मंदिर है। इसके साथ ही यहां 12 महीने मेले जैसा माहौल होता है। ऐसे में कब्जाधारकों के साथ ही लाखों श्रद्धालुओं के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।

एसडीएम ने उप्र राजस्व संहिता 2006 के धारा 32/38 के तहत 14 अक्टूबर को ऐतिहासिक आदेश दिया है। एसडीएम ने तरकुलहा मन्दिर और उसके आसपास की भूमि पर त्रुटिपूर्ण तरीके से दर्ज कास्तकारों के नाम को निरस्त करते हुए जंगल के नाम दर्ज करा दिया। खतौनी में यह भूमि अब जंगल खाते के नाम दर्ज हो गई है। इस आदेश के बाद त्रुटिपूर्ण इंद्राज से जंगल की भूमि पर कब्जा किए काश्तकारों में हड़कंप मच गया है। शासन के निर्देश पर सरकारी भूमि को अपने नाम दर्ज कराने वालों और उस पर कब्जा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए सरकारी जमीनों को वापस सरकारी खाते में दर्ज कर प्रशासन अपने कब्जे में ले रहा है। एसडीएम चौरीचौरा प्रशांत वर्मा का कहना है कि भूमि जंगल देवी तरकुलहा के नाम सही तरीके से दर्ज है। वन विभाग ने केस दर्ज कराया था। उनके केस व तहसीलदार की रिपोर्ट के आधार पर आदेश किया गया है। पूरी प्रक्रिया का पालन के बाद आदेश जारी किया गया है। जमींदारी के खाते की भूमि सरकार की मानी जाती है। भूमि सुरक्षित होने से क्षेत्र का विकास होगा।

वन विभाग ने जमीन पर किया था दावा

क्षेत्रीय वनाधिकारी ने 1323 फसली में गाटा संख्या 11, 12, 15, 16 कुल रकबा 60.49 एकड़ पर जंगल का नाम दर्ज होने का हवाला देते हुए उक्त भूमि को वर्तमान खतौनी में जंगल के नाम दर्ज करने की मांग की थी। राजस्व संहिता की धारा 32/38 के तहत दाखिल वाद में एसडीएम ने पत्रावली एवं उपलब्ध साक्ष्यों के अवलोकन के बाद सभी पक्षकारों को अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस जारी किया। नोटिस का पर्याप्त तामिला न होने पर समाचार पत्र में अदालती नोटिस का प्रकाशन भी कराया। इस मामले में तहसीलदार चौरीचौरा ने अपनी आख्या में कहा कि 1323 फसली में जमीन जंगल के नाम दर्ज है। खसरा में भी भूमि जंगल के नाम दर्ज है। लेकिन वर्तमान खतौनी फसली सन् 1427 से 1432 में जमीन तमाम काश्तकारों और अन्य सरकारी विभागों के नाम दर्ज है।

मेला संचालक से लेकर कब्जाधारकों ने आदेश को गलत बताया

तरकुलहा मंदिर परिसर में संचालित मेला के प्रमुख अविजित जायसवाल लवी का कहना है कि तरकुलहा का आदेश नियम विरुद्ध हुआ है। अभी कोर्ट की हड़ताल में फैसला कैसे किया गया? 56 लोगों के नाम खारिज हुआ है। सिस्टम के खिलाफ जाकर फैसला किया गया है। जब चौरीचौरा में न्यायालय ठप था तो आदेश क्यों किया गया था। आदेश के खिलाफ ऊपर के न्यायालय में अपील की जाएगी। भूमि पर काबिज विशाल जायसवाल का कहना है कि तरकुलहा प्रकरण मे जिस फसली वर्ष के आधार पर आदेश हुआ है, वह मालिकान उमराव के नाम दर्ज था। लेकिन उसे देवी तरकुलहा जंगल दिखाया गया है। कोर्ट के बहिष्कार के बीच केस का फैसला कर दिया गया, जो उचित नहीं है। कई गाटा संख्या को निकाला भी गया है। वन विभाग के नक्शा में देवी तरकुलहा का नाम नहीं था। बिना नोटिफिकेशन के जंगल के नाम भूमि को दर्ज कर दिया गया है। आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर करेंगे।


अनूठी है तरकुलहा मंदिर की परम्परा

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिला मुख्यालय से देवरिया रोड पर 22 वें किलोमीटर पर स्थित सुप्रसिद्ध तरकुलहा मंदिर अपनी अनूठी परम्परा के लिए जाना जाता है। यहां देवी को रोज 150 से 200 बकरों की बलि दिया जाता है। परिसर में ही हांडी में इस मांस को पकाकर प्रसाद के रूप में लोग ग्रहण करते हैं। अंग्रेजी हुकूमत में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बंधु सिंह यहां अंग्रेजों की बलि देकर देवी को प्रसन्न करते थे।

चौरीचौरा तहसील क्षेत्र के डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह से मंदिर का रिश्ता रहा है। बाबू बंधू सिंह ने अंग्रेजों का सिर कलम कर मां को चढ़ाते थे। जिसके बाद अंग्रजों ने बंधू सिंह को गिरफ्तार कर फांसी पर लटकाने का आदेश दे दिया। बताते हैं कि बंधू सिंह को सात बार फांसी देने की कोशिश हुई, हर बार फंटा टूट गया। तब बंधू सिंह ने मां तरकुलहा से अनुरोध किया कि हे मां मुझे अपने चरणों में ले लो। आठवीं बार बंधू सिंह ने स्वयं फांसी का फंदा अपने गले में डाला। इसके बाद उन्हें फांसी दी गई। कहा जाता है कि जैसे ही बंधू सिंह फांसी पर लटके इसके ठीक दूसरी तरफ तरकुलहा के पास स्थित तरकुल के पेड़ का ऊपरी हिस्सा टूट कर गिर गया। जिससे खून के फव्वारे निकलने लगे। बाद में भक्तों ने यहां मंदिर का निर्माण कराया। मां तरकुलहा देवी मंदिर स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी है। जंगल का क्षेत्र होने से यह स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के छिपने का सबसे मुफीद स्थान था। स्वतंत्रता आंदोलन में क्रान्तिकारियों के लिए अहम तरकुलहा मंदिर में लोग मनौती पूरा होने पर बकरे की बलि देते हैं। पुजारी बताते हैं कि बुधवार और शुक्रवार को 150 से 200 संख्या में बकरों की बलि दी जाती है। बाद में श्रद्धालु इस मांस को ही पका कर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। अपने में अनूठे आस्था के इस स्थल पर खाने-पीने के इंतजाम के चलते पूरे साल श्रद्धालु आते हैं।


मंदिर परिसर में हैं 500 से अधिक दुकानें

मेला के सरंक्षक रमेश राय बताते हैं कि ‘मंदिर के प्रति आस्था के साथ ही जंगलों के बीच स्थित देवी स्थान श्रद्धालुओं के लिए पिकनिक स्पॉट बन गया है। जहां बच्चों से लेकर महिलाएं तक पूजा अर्चना के बाद खाना पकाकर खाती हैं।’ हर महीने परिवार या दोस्तों के साथ आने वाले देवरिया जिले के अरविंद सिंह बताते हैं कि ‘मेला परिसर में उपला और लकड़ी पर बने खाने का स्वाद फाइव स्टॉर होटलों में भी नहीं मिल सकता। जैसे भी खाना पकाओ स्वाद बेजोड़ मिलता है।’ मेला प्रबंधन से जुड़े राजनाराण शाही का कहना है कि ‘मेला परिसर में स्थित 500 से अधिक दुकानों से 3000 से अधिक परिवारों की रोजी रोटी चल रही है। साल दर साल मेला परिसर का विस्तार हो रहा है। हर घर मेला की जरूरतों को देखते हुए सामान तैयार करता है।’

पूरे साल लगा रहता है मेला

परिसर में कुछ वर्षों पहले तक सिर्फ चैत्र नवरात्र में महीने भर का मेला लगता था। लेकिन अब यह देवी स्थल आस्था के साथ पिकनिक स्पॉट भी बन चुका है। जहां साल के 365 दिन पूर्वांचल के साथ ही सीमावर्ती बिहार और पड़ोसी मित्र राष्ट्र नेपाल से हजारों श्रद्धालु आते हैं। हर मौसम में गुलजार छोटी-बड़ी 500 दुकानों पर प्रतिदिन 30 से 50 लाख रुपए से अधिक का कारोबार होता है। चैत्र नवरात्र को गुजरे महीने भर से अधिक के वक्त के बाद भी यहां प्रसाद से लेकर रोजमर्रा की जरूरतों की छोटी-बड़ी 500 से अधिक दुकानें गुलजार हैं। यहां बच्चों के लिए ड्रैगन झूला है तो जादू दिखाने वाला कलाकार भी। दिन हो या रात पूर्वांचल के विभिन्न जिलों से लेकर बिहार और नेपाल नंबर की करीब 200 लग्जरी गाड़ियां हमेशा मेला परिसर में खड़ी रहती हैं। साल भर का मेला आसपास के लोगों के लिए रोजगार का जरिया भी बन गया है।

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