Gorakhpur News: बाल टीबी रोगियों को खोजने में मददगार बनेंगी स्टॉफ नर्स, 100 दिन का अभियान

Gorakhpur News: जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ गणेश यादव ने बताया कि स्टॉफ नर्सेज को बच्चों में टीबी के लक्षणों की पहचान, उपचार, टीबी जांच के महत्व और प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी गई।;

Update:2025-03-02 18:25 IST

Gorakhpur News (Image From Social Media)

Gorakhpur News: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के सरकारी और निजी अस्पतालों पर तैनात स्टॉफ नर्सेज बाल टीबी रोगियों को खोजने में मददगार बनेंगी। इसके लिए उन्हें वर्ल्ड हेल्थ पार्टनर संस्था के सहयोग से जिला क्षय रोग केंद्र में प्रशिक्षित किया गया है। जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ गणेश यादव ने बताया कि स्टॉफ नर्सेज को बच्चों में टीबी के लक्षणों की पहचान, उपचार, टीबी जांच के महत्व और प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी गई।

डीटीओ डॉ. यादव ने बताया कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आशुतोष कुमार दूबे के दिशा निर्देशन में मास्टर ट्रेनर डॉ. अरविंद उपाध्याय और डॉ. सुशील कुमार द्वारा सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और कई निजी अस्पतालों के नर्सेज को प्रशिक्षित किया गया। उन्हें चौदह वर्ष तक के बच्चों में गैस्ट्रिक एस्प्रेट एवं इन्ड्स स्पूटम की प्रक्रिया द्वारा सैम्पल निकालने की विधि के बारे में बताया गया है। उप जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ. विराट स्वरूप श्रीवास्तव, जिला परियोजना प्रबंधक संदीप कौशल, डब्ल्यूएचपी के समन्वयक रामेंद्र श्रीवास्तव, आकाश गोविंद राव, अनिता सिंह, पीपीएम समन्वयक अभय नारायण मिश्र, मिर्जा आफताब बेग और डीपीसी धर्मवीर प्रताप सिंह ने प्रशिक्षण में विशेष योगदान दिया।

100 दिवसीय टीबी उन्मूलन अभियान

डॉ. यादव ने बताया कि जिले में चल रहे 100 दिवसीय टीबी उन्मूलन अभियान के दौरान जनजागरूकता और प्रशिक्षण संबंधी विविध गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। इनके साथ ही नये टीबी मरीज भी खोजे जा रहे हैं। अभियान के दौरान जिले में 4163 नये मरीज ढूंढे जा चुके हैं। जिले में इस समय डीआर टीबी के 391 उपचाराधीन और डीएस टीबी के 9904 उपचाराधीन मरीज हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि अगर दो सप्ताह से अधिक की खांसी, पसीने के साथ बुखार, तेजी से वजन घटने, भूख न लगने, बलगम में खून आने, गले में गिल्टी जैसे लक्षण हों तो नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर टीबी की जांच अवश्य करवाएं। टीबी की शीघ्र जांच, पहचान और उपचार से यह बीमारी पूरी तरह से ठीक हो जाती है। बच्चों में इसकी समय से पहचान बेहद जरूरी है।

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