गवर्नर ने चार विधेयकों को दी मंजूरी, विधानमंडल से हुए थे पास
‘उत्तर प्रदेश विनियोग (2018-2019 का द्वितीय अनुपूरक) विधेयक 2018’ के माध्यम से वर्तमान वित्तीय वर्ष 2018-19 में विभिन्न सेवाओं और प्रयोजनों के लिये राज्य की समेकित निधि से रूपये 8054,49,27,000/- (रूपये आठ हजार चैवन करोड़ उनचास लाख सत्ताइस हजार) मात्र निकाला जाना प्रस्तावित है।
लखनऊ: गवर्नर रामनाईक ने राज्य विधान मण्डल से पारित चार विधेयकों को मंजूरी दे दी है। इनमें उत्तर प्रदेश विनियोग (2018-2019 का द्वितीय अनुपूरक) विधेयक 2018, उत्तर प्रदेश शीरा नियंत्रण (तृतीय संशोधन) विधेयक 2018, उत्तर प्रदेश जल सम्भरण तथा सीवर व्यवस्था (संशोधन) विधेयक 2018 और उत्तर प्रदेश माल और सेवा कर (संशोधन) विधेयक 2018 शामिल है।
‘उत्तर प्रदेश विनियोग (2018-2019 का द्वितीय अनुपूरक) विधेयक 2018’ के माध्यम से वर्तमान वित्तीय वर्ष 2018-19 में विभिन्न सेवाओं और प्रयोजनों के लिये राज्य की समेकित निधि से रूपये 8054,49,27,000/- (रूपये आठ हजार चैवन करोड़ उनचास लाख सत्ताइस हजार) मात्र निकाला जाना प्रस्तावित है।
ये भी पढ़ें— केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर का बड़ा बयान कहा राम मंदिर पर लगातार सुनवाई करें सुप्रीम कोर्ट
‘उत्तर प्रदेश शीरा नियंत्रण (तृतीय संशोधन) विधेयक 2018 के माध्यम से पूर्व में अधिनियमित उत्तर प्रदेश शीरा नियंत्रण अधिनियम 1964 की कतिपय धाराओं में संशोधन किया गया है। राज्य में गन्ना के अत्यधिक उत्पादन के मामले में शीरा के अपव्यय को रोकने और चीनी मिलों में शीरा की सीमित भण्डारण क्षमता को देखते हुए अन्य देशों को प्रशासनिक प्रभारों के आधार पर अतिशेष शीरा निर्यात हेतु अनुज्ञात करने के लिये अधिनियम में संशोधन किया गया है।
ये भी पढ़ें— छत्तीसगढ़ : अधिग्रहित भूमि किसानों को वापस करेंगे सीएम बघेल
उत्तर प्रदेश जल सम्भरण तथा सीवर व्यवस्था (संशोधन) विधेयक 2018 द्वारा पूर्व में अधिनियमित मूल अधिनियम उत्तर प्रदेश जल सम्भरण तथा सीवर व्यवस्था अधिनियम 1975 की धारा 7 की उपधारा (3) को निकाल दिया गया है। वर्ष 2007 में मूल अधिनियम उत्तर प्रदेश जल सम्भरण तथा सीवर व्यवस्था अधिनियम 1975 में धारा 7 की उपधारा (3) बढ़ायी गयी थी कि निगम को समस्त प्रयोजनों के लिये स्थानीय प्राधिकरण न कि राज्य सरकार द्वारा स्वामित्व प्राप्त कम्पनी या निगम समझा जायेगा और निगम के अध्यक्ष का पद लाभ का पद नहीं समझा जायेगा तथा उसके पास निगम का कोई प्रबन्धकीय कृत्य नहीं होगा। वर्ष 2007 में बढ़ायी गई उक्त उपधारा से मूल अधिनियम में उपबन्धित शक्तियों का प्रयोग तथा कर्तव्यों का सम्पादन करना व्यवहारिक रूप से कठिन हो गया था अतः संशोधन के माध्यम से वर्ष 2007 में बढ़ायी गयी धारा 7 की उपधारा (3) को निकाल दिया गया है।
ये भी पढ़ें— केंद्र सरकार ओडिशा के चौतरफा विकास के लिए प्रतिबद्ध : मोदी
‘उत्तर प्रदेश माल और सेवा कर (संशोधन) विधेयक 2018’ के माध्यम से उत्तर प्रदेश में पूर्व से अधिनियमित ‘उत्तर प्रदेश माल और सेवा कर अधिनियम 2017’ की कतिपय धाराओं में संशोधन किया गया है। ‘केन्द्रीय माल और सेवा कर (संशोधन) अधिनियम 2018’ और ‘उत्तर प्रदेश माल और सेवा कर अधिनियम 2017’ के प्रावधानों में एकरूपता बनाये रखने के उद्देश्य व तात्कालिकता को देखते हुए सरकार के प्रस्ताव में राज्यपाल ने अक्टूबर 2018 में अध्यादेश प्रख्यापित किया गया था। ‘उत्तर प्रदेश माल और सेवा कर (संशोधन) विधेयक 2018’ द्वारा उक्त अध्यादेश को प्रतिस्थापित किया गया है।