लखनऊ: राजभवन और संसदीय कार्य मंत्री आजम खान के बीच महीनों से तल्खी बने नगर निगम और नगर पालिका संशोधन विधेयक अब प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के ऑफिस में पहुंच गये हैं। राज्यपाल राम नाइक ने इसे लोकतंत्र की भावना के खिलाफ बताते हुए इसे राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पास फैसले के लिए भेज दिया है। राज्यपाल नाइक ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी इसकी जानकारी दे दी है।
इन क्लॉज पर ऐतराज
-प्रेसिडेंट को भेजे गए दोनों विधेयक हैं- उत्तर प्रदेश नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2015 और उत्तर प्रदेश नगरपालिका विधि (संशोधन) विधेयक, 2015
-राज्यपाल राम नाइक ने पाया कि इन दोनों बिलों के कुछ प्रॉविजन डेमोक्रैटिक स्पिरिट के खिलाफ है।
-प्रपोज्ड बिल के तहत नगर निगम अधिनियम, 1959 में नई धारा 16-ए जोड़ी गयी है, इसके जरिए सरकार नगर निगमों के मेयर और नगर पालिका चैयरमैन के खिलाफ शिकायत पर शो कॉज नोटिस जारी कर सकती है।
-जवाब से सैटिस्फाई न होने पर सरकार मेयर और चैयरमैन की सभी ऐडमिनिस्ट्रेटिव और फाइनेंशियल पॉवर पर रोक लगा सकती है और इनका चार्ज नगर निगमों के कमिश्नर और नगर पालिका के ईओ को सौंप सकती है।
नैचुरल जस्टिस के खिलाफ
-शिकायत के बाद राज्य सरकार मेयर या चेयरमैन के खिलाफ जांच बैठाएगी, लेकिन जांच की प्रक्रिया क्या होगी इसकी चर्चा विधेयक में नहीं है।
-राज्यपाल ने जांच से पहले ही मेयर और चैयरमैन को दोषी ठहराये जाने पर सवाल उठाए हैं और 74वें संशोधन की स्पिरिट और नैचुरल जस्टिस के खिलाफ बताया है।
- इसी तरह उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम,1959 की मौजूदा धारा 107 की जगह नई धारा 107 लाकर कर्मचारियों के अप्वाइंटमेंट और ट्रांसफर के राइट्स राज्य सरकार को दे दिये गये है।
पेंडिंग हैं अभी ये बिल
बता दें कि राजभवन में 7 बिल राज्यपाल की मंजूरी के लिए पेंडिंग थे। इनमें 5 का निस्तारण कर दिया गया है। फिलहाल उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग (संशोधन) विधेयक, 2015 और उत्तर प्रदेश लोक आयुक्त एवं उप लोक आयुक्त (संशोधन) विधेयक, 2015 पेंडिंग हैं।