लखनऊ: दिल्ली में एक मरीज की जान बचाने के लिए यूपी पुलिस ने बुधवार को ग्रीन कॉरीडोर बनाया। एक ब्रेन डेड महिला के लीवर को महज 24 मिनट में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) से अमौसी एयरपोर्ट पहुंचा दिया। लीवर को यहां से एयर एंबुलेंस के जरिए दिल्ली ले जाया गया। दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड बिलिअरी साइंसेज में प्रत्यारोपण किया गया।
24 मिनट में केजीएमयू से एयरपोर्ट
-केजीएमयू से अमौसी एयरपोर्ट के बीच 28 किलोमीटर दूरी है। ये दूरी नापने में आमतौर पर एक घंटा लग जाता है।
-लेकिन पुलिस ने ग्रीन कॉरीडोर तैयार करके महज 24 मिनट में एंबुलेंस को एयरपोर्ट पहुंचा दिया।
-एंबुलेंस की अवरेज स्पीड 86 किलोमीटर प्रतिघंटा और अधिकतम 90 रही।
ये था रूट
-ग्रीन कॉरीडोर बनाने के लिए केजीएमयू से हजरतगंज, राजभवन, अहिमामऊ और शहीदपथ होते हुए एयरपोर्ट ले जाने का रूट मैप तैयार किया गया।
-हर चेक प्वाइंट और चौराहों पर दो-दो पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी। सीओ और एसपी स्तर के अधिकारी भी मुस्तैद रहे।
-एंबुलेंस में एक इंटरसेप्टर लगी थी, जो ट्रैफिक को क्लीयर करते हुए आगे बढ़ रही थी।
पीजीआई ने कर दिया था इनकार
-डॉ. अभिजीत चंद्रा ने बताया- हमने सबसे पहले पीजीआई से इस बारे में संपर्क किया, लेकिन पीजीआई ने साफ इनकार कर दिया।
-इसके बाद हमने दिल्ली के आईएलबीएस से संपर्क किया।
किसने किया डोनेट
-लीवर डोनेट ब्रेन डेड महिला के भाई डॉ. आलोक सक्सेना ने किया है, जो स्वास्थ्य विभाग की डिस्पेंसरी में तैनात हैं।
-त्रिवेणीनगर निवासी 55 वर्षीय महिला विनीता सक्सेना किडनी की मरीज थी।
-विनीता सक्सेना नवोदय विद्यालय कानपुर देहात में शिक्षिका थीं।
-अविवाहित होने की वजह से वह अपने भाई डॉ. आलोक कुमार के साथ रहती थीं।
-बीते गुरुवार रात एक बजे के दौरान सांस लेने में दिक्कत की वजह से उन्हें अलीगंज स्थित नीरा नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था।
-वहां पर 72 घंटे तक वेंटीलेटर पर रहने के दौरान उनका ब्रेन डेड हो गया।
-ब्रेन डेड होने के बाद डॉक्टरी पेशे से जुड़े होने की वजह से ऑर्गन ट्रांसप्लांट के महत्व को देखते हुए डॉ. आलोक ने ऑर्गन डोनेट का निर्णय लिया।
विशेष बॉक्स में रखकर ले जाया गया लीवर
-लीवर निकालने के बाद उसे एक स्पेशल बॉक्स में रखा गया।
-इस बॉक्स में ऑर्गन प्री-जर्वेटिव सॉल्यूशन और बर्फ के मिश्रण में लीवर को रखा गया।
-ऑर्गन डोनेट के बाद लीवर की 6 घंटे और किडनी की 24 घंटे की लाइफ होती है।
एसपी ट्रैफिक बोले-मेरा अब तक का सबसे अच्छा काम
एसपी ट्रैफिक हबीबुल हसन ने newztrack.com से कहा- ये मेरी अब तक की ड्यूटी का सबसे अच्छा काम रहा है। किसी की जान बचाने से बढ़कर कोई और काम नहीं हो सकता है। हमें इसके बारे में 3: 45 पर सूचना मिली। हमने तुरंत अलग-अलग थानों की पुलिस से कोऑर्डिनेट किया। सभी के सहयोग से ग्रीन कॉरीडोर को सफल बनाया।
हम यह दूरी 20 मिनट में भी तय कर सकते थे, लेकिन डॉक्टरों ने 90 किमी/घंटे से अधिक स्पीड के लिए मना कर दिया।
क्या होता है ग्रीन कॉरीडोर
-ग्रीन कॉरीडोर मानव अंग को एक निश्चित समय के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए बनाया जाता है।
-यह आपात स्थिति में किसी मरीज की जान बचाने के लिए या ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए तैयार किया जाता है।
-इसमें पुलिस उस पूरे रूट को खाली करवाती है, जिसमें से एंबुलेंस को गुजरना होता है।
-एंबुलेंस के आगे पुलिस की गाड़ी चलती है। इसे रूट को ग्रीन कॉरीडोर का नाम दिया जाता है।
पहले भी बनाया जा चुका है ग्रीन कॉरीडोर
-केजीएमयू के ऑर्गन ट्रांसप्लांट टीम के डॉ. मनमीत सिंह के मुताबिक, 2015 में एक मरीज प्रमोद साहनी जिसका ब्रेन मृत घोषित हो चुका था।
-उसका कॉर्निया, किडनी और लीवर दिल्ली में एक मरीज को प्रत्यर्पित किया जाना था।
-इसके लिए मरीज के पिता राम नयन और भाई तैयार हो गए थे और उन्होंने लिखित अपनी सहमति दी थी।
-इसके बाद पुलिस से संपर्क कर ग्रीन कॉरीडोर बनाकर भेजा गया था।