Guest House Kand Secrets: पूर्व UP के DGP पुलिस प्रमुख ओ.पी. सिंह ने अपनी किताब में गेस्ट हाउस कांड के कई पोशीदा राज खोले
UP Guest House Kand Secrets: इस किताब में ओ. पी. सिंह ने राज्य के सबसे पेचीदे गेस्ट हाउस कांड का सच उजागर किया है।
UP Guest House Kand Secrets: इन दिनों सेवा निवृत्ति के बाद अपने सेवाकाल के दौरान हुई बातों को संस्मरण के तौर पर किताब में परोसने का दौर तेज हो चला है। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे और पूर्व राजनयिक अजय बिसारिया की किताब ने राष्ट्रीय स्तर पर कोलाहल मचा रखा है। तो उत्तर प्रदेश की सियासत में राज्य के पूर्व पुलिस प्रमुख ओ.पी. सिंह की किताब भी कम सुर्ख़ियाँ नहीं बटोर रही है।
इस किताब में ओ. पी. सिंह ने राज्य के सबसे पेचीदे गेस्ट हाउस कांड का सच उजागर किया है। इस कांड में बसपा नेत्री मायावती ने अपने उस समय के गठबंधन के साथी समाजवादी पार्टी के नेताओं पर अपनी हत्या करने का आरोप लगाया था। सूबे में दलित व पिछड़ों की सियासत के गठबंधन की गाँठें भी इस कांड से इस कदर खुलीं कि दोनों एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे। उसी समय भाजपा ने मायावती को समर्थन देकर सरकार बनवा दी।और अपनी सोशल इंजीनियरिंग की बहुत दिनों से लिखी जा रही इबारत को पूरा कर दिखा दिया।
नरवणे की किताब ‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी' और अजय बिसारिया की किताब ‘एंगर मैनेजमेंट: द ट्रबल्ड डिप्लोमेटिक रिलेशनशिप बिटविन इंडिया एंड पाकिस्तान है। जबकि ओ.पी. सिंह की किताब का नाम
“क्राइम, ग्रिम एंड गम्प्शन: केस फाइल्स ऑफ एन आईपीएस ऑफिसर’’ है। इस किताब के माध्यम से ओ.पी. सिंह ने इस कांड को लिंक कर उन्हें खलनायक बनाने की साज़िशों का पर्दाफ़ाश किया है।अपनी किताब के’ सुनामी वर्ष’ नामक अध्याय के तहत ‘गेस्ट हाउस’ कांड का उन्होंने खुलासा किया है।यह कांड 1995 में लखनऊ के मीराबाई गेस्ट हाउस में गठित हुआ था। इस चर्चित कांड की पीड़िता बसपा सुप्रीमो मायावती ने आरोप लगाया था कि समाजवादी पार्टी के समर्थकों ने उन्हें घेर कर उनके साथ अभद्रता के अलावा जान तक लेने की कोशिश की।
वह लिखते हैं कि अपराह्न करीब दो बजे उन्हें मीरा बाई मार्ग स्थित गेस्ट हाउस में कुछ ‘गैरकानूनी तत्वों द्वारा गड़बड़ी’ को लेकर पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) का फोन आया। वह शाम 5.20 बजे जिलाधिकारी व अन्य अधिकारियों के साथ मौके पर पहुंचे। सुइट संख्या 1 और 2 में उस समय मायावती रह रही थीं। उस समय वह गेस्टहाउस में अपने विधायकों से मुलाकात कर रही थीं । बता रही थीं कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सरकार से समर्थन वापस ले लिया है।
उन्होंने लिखा है ,’ बिजली आपूर्ति बंद होने और टेलीफोन लाइनें काट दिए जाने के कारण स्थिति काफी अस्पष्ट थी। पूरी तरह अराजकता की स्थिति थी।’ उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे ‘सुनिश्चित करें कि सुइट्स एक और दो में कड़ी सुरक्षा हो।’ अचानक हंगामा शुरू हो गया । पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। सिंह ने लिखा है कि हालात सामान्य होने तक वह गेस्ट हाउस में ही रहे।
गेस्ट हाउस के घटनाक्रम को लेकर ‘कहानियां और अफवाहें’ तेजी से फैलने लगीं, जिनमें परिसर में एक एलपीजी सिलेंडर लाने की अफवाह भी शामिल थी। लेकिन हक़ीक़त यह थी कि ,’ ‘मायावती ने चाय पीने की इच्छा व्यक्त की और संपदा अधिकारी द्वारा सूचित किए जाने के बाद कि रसोई गैस नहीं है, पड़ोस से एक सिलेंडर की व्यवस्था की गई।सिलेंडर को रसोई क्षेत्र की ओर लुढ़का कर ले जाते देख और उससे हुई खड़खड़ की आवाज से यह अफवाह फैल गई कि मायावती को आग लगाने की कोशिश की गईं।’
अभी तो शुरूआत थी। हैरान करने वाली और घटनाएं अभी होनी बाकी थीं। मायावती ने उसी दिन राज्यपाल को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया कि गेस्ट हाउस में एकत्र हुए सपा सदस्यों ने हमला किया। कुछ बसपा कार्यकर्ताओं को ‘पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारियों की नाक के नीचे’ उठाकर ले गए।
पूर्व डीजीपी ने अपने संस्मरण में लिखा, ‘एक पुलिस अधिकारी के तौर पर मैं फिर से दो राजनीतिक दलों के बीच शक्ति प्रदर्शन के खेल में लगाए जा रहे आरोप-प्रत्यारोप में फंस गया।’ राज्यपाल ने उसी रात मुलायम सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया। मायावती को नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। ओ.पी. सिंह को नयी सरकार ने चार जून, 1995 को निलंबित कर दिया। वह लिखते हैं, ‘केवल मुझे ही क्यों? हम चार लोग थे (गेस्ट हाउस में)। मेरे अलावा तीन, डीएम, एडीएम (सिटी) और एसपी (सिटी) और केवल मुझे निलंबित किया गया। यह स्पष्ट था कि मुझे निशाना बनाया गया था।’
सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी लिखते हैं कि यह उनके ‘कायर वरिष्ठों’ और सहकर्मियों द्वारा उनके साथ ‘बिरादरी से बाहर’ किए जाने के व्यवहार की शुरुआत थी। उन्होंने लिखा है, ‘एक बार फिर,नेताओं से ज्यादा मेरे वरिष्ठों और उनके कायराना व्यवहार ने मुझे निराश किया। मैं अपने निलंबन के बाद एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी से मिलने गया। मैं उस समय की उनकी भाव-भंगिमा को कभी नहीं भूल सका।वह अपने कार्यालय में मुझे देखकर परेशान हो गए। उन्होंने यह जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि मैं वहां बिन बुलाया मेहमान था। उन दिनों मायावती का इतना खौफ था कि कोई भी अधिकारी मेरे साथ दिखना नहीं चाहता था। रातोंरात मुझे बिरादरी से बाहर कर दिया गया।’ उन्होंने यह भी बताया कि कैसे उनके वरिष्ठ अधिकारी ने ‘उन्हें सचमुच अपने कार्यालय से बाहर निकाल दिया था।'
सिंह ने अपने संस्मरण में उल्लेख किया है कि उन पर गेस्ट हाउस कांड को लेकर दो प्राथमिकी दर्ज की गई और ‘उनमें से प्रत्येक में मुझे खलनायक नामित किया गया था, खलनायक जो मायावती के खिलाफ द्वेष पाल रहा था और विधायकों के अपहरण में शामिल था।'कुछ महीने बाद सरकार ने उन्हें सेवा में बहाल कर दिया। उनके खिलाफ मामले भी वापस ले लिये गये।
सिंह बताते हैं कि उस घटना के तीन साल बाद उन्हें आज़मगढ़ में मायावती से मिलने का मौका मिला। तब वह आज़मगढ़ रेंज के उप महानिरीक्षक (डीआईजी)पद पर तैनात थे। उन्होंने मायावती से कहा,‘लंबे समय से मैं इस दिन का इंतजार कर रहा था । महोदया कि आपसे मिलकर स्थिति स्पष्ट करूं। पूरे सम्मान के साथ, मैं आपसे सीधे कुछ पूछना चाहता हूं।’
मायावती ने जवाब दिया,‘आप पूछिए। वह अपनी बड़ी बड़ी आंखों से सीधे मुझे देख रही थीं । जो स्पष्ट संकेत था कि वह ध्यान से मेरी बात सुनने वाली थीं।’सिंह लिखते हैं कि कांपती आवाज के साथ उन्होंने खुद को संभाला और पूछा कि दो जून 1995 के उस मनहूस दिन पर उनकी क्या गलती थी? उन्होंने मायावती से कहा, ‘मैडम, क्यों? मुझे क्यों निलंबित किया गया? मैं एक गैर राजनीतिक अधिकारी हूं। मेरा पूरा सर्विस रिकॉर्ड इसकी तसदीक कर देगा…।’
सिंह लिखते हैं मैंने पूछा,‘क्या सजा सही काम करने का इनाम थी…’ मैं फिर रुक गया। मैं कांप रहा था। मैंने खुद को संभालने के लिए अपनी आंखें नीचे कर लीं। इस दौरान मायावती ने एक शब्द भी नहीं कहा। अब तक मुझे लगने लगा था कि मुझे ‘स्पष्ट उत्तर नहीं मिलेगा।’ सिंह कहते हैं कि उन्हें उत्तर नहीं मिला और वह वहां से चले गए।
सिंह ने किताब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली की भी प्रशंसा की है। किताब में उनके कार्यकाल की अन्य घटनाओं का भी उल्लेख किया गया है, जिनमें नेपाल की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के ‘तराई’ क्षेत्रों में खालिस्तानी आतंकवाद से निपटना भी शामिल है।
भारतीय पुलिस सेवा के 1983 बैच के अधिकारी ओ.पी. सिंह मूल रूप से बिहार के गया के निवासी हैं। पुलिस में अपनी 37 साल की सेवा के बाद जनवरी 2020 में सेवानिवृत्त हुए थे। इस दौरान उन्होंने दो केंद्रीय बलों सीआईएसएफ और एनडीआरएफ का भी नेतृत्व किया।