Hamirpur: पन्द्रह वर्षो के बाद फिर बने सूखे जैसे हालात, खरीफ की फसलों में बोने में आएगी दिक्कत
Hamirpur: जनपद में ठीक पन्द्रह वर्ष पूर्व इस तरह के हालात बने थे और खरीफ की फसलें बोने के बाद सूख गई थी। जो थोड़ी बहुत बची थी। वह कटाई होने के पूर्व ही खेतों में सुख कर कांटा हो गई थी।
Hamirpur: जनपद में ठीक पन्द्रह वर्ष पूर्व इस तरह के हालात बने थे और खरीफ की फसलें बोने के बाद सूख गई थी। जो थोड़ी बहुत बची थी। वह कटाई होने के पूर्व ही खेतों में सुख कर कांटा हो गई थी। प्रकृति का यह मंजर देख कर करीब एक दर्जन किसान फांसी पर झूल गए थे। 2007 के सूखे का मंजर आज तक किसानों के जेहन में जिंदा है।
2007 में जनपद में पड़ा था भीषण सूखा
वर्ष 2007 में जनपद में भीषण सूखा पड़ा था। इस सूखे ने बुवाई होते ही तिल की फसल को लील लिया था। उर्द,अरहर,ज्वार, मूंग की फसलें अक्टूबर में कटने के पूर्व ही पानी के अभाव में खेतों में सूखकर कांटा हो गई थी। फसलों की यह दुर्गति देखकर करीब एक दर्जन किसानों ने आत्महत्या कर ली थी। आत्महत्या की ज्यादातर घटनाएं पचखुरा बुजुर्ग, पत्योरा, टेढ़ा,चन्दपुरवा बुजुर्ग, इंगोहटा, विदोखर, कलौलीजार आदि गांवों में हुई थी। इस वर्ष खरीफ में बोई गई फसलों को करारा झटका लगा था। इन फसलों से किसानों को कुछ हासिल नहीं हो सका था। किसान प्रकृति के इस कहर से मन मसोस कर रह गया।
सूखे के भीषण हालातों को देखकर ने दी कई छूट
सूखे के भीषण हालातों को देखकर मौजूदा सरकार ने किसानों के हितों को ध्यान में रखकर गहरी बोरिंग में भारी छूट प्रदान की थी और पूरे क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में गहरी बोरिंग हुई थी। जो आज भी बरकरार है अथवा यह कहा जाए कि उसी वर्ष से गहरी बोरिंग का चलन बढ़ा था। तब से किसान गहरी बोरिंग की करा रहा है। उस समय गहरी बोरिंग में विद्युत कनेक्शन में भी भारी छूट प्रदान की गई थी। कनेक्शन के नाम पर महज कुछ ही जमा कराया गया था।
इस वर्ष भी 2007 जैसे हालात बन रहे हैं। खरीफ की फसलों को बोने का समय 15 जुलाई तक होता है। अगर हो जाती है तो ठीक वरना बेकार ही माना जाता है। इस वर्ष अभी तक पूरे क्षेत्र में फसलों के बोने लायक बारिश नहीं हुई है। यही वजह है कि पूरे क्षेत्र में कहीं भी किसी तरह की बुवाई नहीं हो सकी। अगर 15 जुलाई के पूर्व फसलों के बोने के लायक बारिश नहीं हुई तो खरीफ की फसल किसानों के हाथ से फिसलती जाएगी। यहां पर खरीफ की फसलों में सर्वाधिक ज्वार,अरहर,मूंग,तिल, उर्द की फसलें होती हैं। इसके बाद फसलों को बोना किसान बेमानी समझता है।
दशकों बाद आषाढ़ मास में बारिश नहीं: किसान
प्रगतिशील किसान संतोष सिंह,दुलीचंद विश्वकर्मा, राजाराम, राधेश्याम तिवारी ने बताया कि दशकों बाद ऐसा होने जा रहा है कि यह आषाढ़ मास में बारिश नहीं हुई है और किसान खरीफ की फसलें बोने से वंचित हुआ जा रहा है। यह हालत किसानों के हित में नहीं है। खरीफ की फसलें किसानों के हाथ से फिसलने से किसानों की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा सकती है।