Harishankar Tiwari News: जेल में बन्द फिर भी जीता चुनाव, ऐसा था हरिशंकर तिवारी का रसूख

Pandit Harishankar Tiwari: विधायक बनने से पहले से ही हरिशंकर तिवारी का गोरखपुर में डंका बजता था। ये वह दौर था जब जेपी की क्रांति ने छात्रसंघ की राजनीति को नई दिशा दे दी थी। उस वक्त हरिशंकर तिवारी गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र नेता के रूप में एक बड़ा नाम बनकर उभरे थे।

Update: 2023-05-16 21:30 GMT
Harishankar Tiwari News (File Pic: Newstrack)

Pandit Harishankar Tiwari: 1985 में गोरखपुर की चिल्लूपार विधानसभा सीट अचानक सुर्खियों में आ गई थी। वजह थी इस सीट पर एक ऐसे शख्स का जीत जाना जो उस वक्त जेल में बंद था। संभवतः भारतीय राजनीति में ये पहला मामला था जब किसी ने जेल से चुनाव लड़कर जीत दर्ज की थी। ये शख्स थे हरिशंकर तिवारी। इस जीत के साथ शुरू हुई राजनीति के एक नए स्वरूप - बाहुबल की।

छात्र राजनीति से शुरुआत

विधायक बनने से पहले से ही हरिशंकर तिवारी का गोरखपुर में डंका बजता था। ये वह दौर था जब जेपी की क्रांति ने छात्रसंघ की राजनीति को नई दिशा दे दी थी। उस वक्त हरिशंकर तिवारी गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र नेता के रूप में एक बड़ा नाम बनकर उभरे थे। लेकिन छात्रसंघ की राजनीति सिर्फ कॉलेज तक ही सीमित नहीं थी बल्कि परिसर से बाहर भी फैली हुई थी। उस दौरान हरिशंकर तिवारी के प्रतिद्वंद्वी थे बलवंत सिंह का गुट। दोनों गुटों में अक्सर भिड़ंत होती रहती। बलंवत सिंह को उस समय एक और ठाकुर वीरेंद्र प्रताप शाही का पूरा सहयोग था। वहीं से इसे ठाकुर बनाम ब्राह्मण गुटों की लड़ाई का नाम दिया गया। धीरे-धीरे हरिशंकर तिवारी ने लोगों के बीच भी अपनी पैठ बनाना शुरू कर दिया था। उस दौरान उनके खिलाफ दर्जनों केस दर्ज हो चुके थे लेकिन उनकी एक छवि रॉबिनहुड की थी। लोगों की आर्थिक मदद करना, उनकी परेशानियों को सुनना, जनता दरबार लगाने जैसी चीज़ें भी हरिशंकर तिवारी से जुड़ी रहीं और इसी का फायदा उन्हें राजनीति में मिला।

22 साल रहे विधायक

हरिशंकर तिवारी की लोकप्रियता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि चिल्लूपार सीट से वह 22 साल तक लगातार विधायक चुने गए। हरिशंकर तिवारी की एक खूबी ये भी रही कि वह लगभग हर दल के साथ उनके रिश्ते करीबी रहे। भाजपा, सपा, बसपा - जिसकी भी सरकार रही, हरिशंकर तिवारी मंत्री बनते रहे। 2007 के बाद हरिशंकर तिवारी का राजनीतिक ग्राफ नीचे आने लगा। 2012 में भी वह चुनाव हार गए। हालांकि 2017 में उन्होंने बीएसपी सीट से अपने बेटे विनय शंकर तिवारी को टिकट दिलवाई और खुद भी जीत गए।

राजनीति में परिवार

हरिशंकर तिवारी के पुत्र भीष्म शंकर तिवारी संत 2009 में कबीर नगर सीट से बसपा सांसद रहे। एक अन्य पुत्र, विनय शंकर तिवारी 2018 से 2022 तक चिल्लूपार से विधायक रहे। हरिशंकर के भतीजे गणेश शंकर पांडे महाराजगंज से विधायक थे। 2010 में उन्होंने लगातार चौथी बार एमएलसी चुनाव जीता।

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