HC: सरकारी जमीन का मुआवजा फर्जी लोगों को बांटने के मामले पर सरकार पेश करे प्रगति रिपोर्ट

हाई कोर्ट ने गोमतीनगर विस्तार में गोमती नदी से लगी सरकारी जमीनों का मुआवजा एमएलसी मजहर अली खान उर्फ बुक्कल नवाब समेत तमाम निजी लोगों को बांटे जाने के मामले में एक बार फिर से सख्त रुख अख्तियार करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि पूर्व आदेश के अनुपालन में जांच कर प्रगति रिपोर्ट 20 फरवरी को कोर्ट के सामने पेश की जाए।

Update: 2017-02-07 20:16 GMT

लखनऊ: हाई कोर्ट ने गोमतीनगर विस्तार में गोमती नदी से लगी सरकारी जमीनों का मुआवजा सपा एमएलसी मजहर अली खान उर्फ बुक्कल नवाब समेत तमाम निजी लोगों को बांटे जाने के मामले में एक बार फिर से सख्त रुख अख्तियार करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि पूर्व आदेश के अनुपालन में जांच कर प्रगति रिपोर्ट 20 फरवरी को कोर्ट के सामने पेश की जाए।

इससे पहले कोर्ट के आदेश पर प्रमुख सचिव राजस्व अरविंद कुमार व्यक्गित रूप से पेश हुए। उन्होंने हलफनामा पेश कर बिना शर्त माफी मांगी। झूठा हलफनामा देने पर मुख्य सचिव राहुल भटनागर की ओर से भी बिना शर्त माफी मांगी गई। जिस पर जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस राकेश श्रीवास्तव की बेंच ने कहा कि इस मसले पर अभी और विचार की जरूरत है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव राजस्व को अगली सुनवाई को भी पेश होने का आदेश दिया है।

पिछली सुनवाई पर बेंच ने मुख्य सचिव से पूछा था कि वे बताएं कि झूठा हलफनामा देने पर क्यों न उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए। कोर्ट ने प्रमुख सचिव (राजस्व) को भी मंगलवार (7 फरवरी) को तलब कर उनसे पूछा था कि कोर्ट के आदेश के पालन में देरी के लिए क्यों न उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाए।

बता दिन कि बेंच हरीश चंद्र वर्मा की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। जिस पर उसके वकील अनु प्रताप सिंह का कहना था कि गोमतीनगर विस्तार क्षेत्र में द्वितीय गोमती बैराज से ला मार्टिनियर तक प्रस्तावित रिंग रोड योजना के लिए अधिग्रहित की जा रही भूमि का मुआवजा सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी लोगों को बांटे जा रहे हैं।

कोर्ट ने 26 अक्टूबर 2016 को आरोपों को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार को 10 दिन के अंदर हाई पावर कमेटी बनाकर 03 महीने में जांच कराने और 30 जनवरी 2017 को रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए थे, लेकिन 30 जनवरी को मामले की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि कुछ दिनों पहले ही कमेटी बनाई गई है इसलिए अभी रिपोर्ट देने के लिए वक्त चाहिए।

इस पर कोर्ट ने 30 जनवरी को मुख्य सचिव को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा कि इस देरी का जिम्मेदार कौन है ? मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने 02 फरवरी को दाखिल अपने हलफनामे में छोटे अधिकारियों के नाम लेकर कमेटी बनाने की जिम्मेदारी चार विभागों राजस्व, आवास व नगर योजना, नगर विकास और विधि विभाग की बताते हुए 03 अधिकारियों को देरी का जिम्मेदार ठहराया।

जिन 03 अधिकारियों के नाम मुख्य सचिव के हलफनामे में दिए गए थे उनमें आवास व नगर योजना विभाग के विशेष सचिव शिव जनम चौधरी, नगर विकास के विशेष सचिव शैलेंद्र कुमार सिंह और राजस्व विभाग के विशेष सचिव शिव श्याम मिश्रा शामिल थे। इन अधिकारियों ने भी कोर्ट के समक्ष शपथ पत्र दाखिल किए।

कोर्ट ने पाया था कि विधि विभाग के किसी अधिकारी का मुख्य सचिव के शपथ पत्र में जिक्र नहीं है। वहीं कोर्ट ने इन अधिकारियों से पूछा कि क्या कोर्ट के 26 अक्टूबर 2016 के आदेश के अनुसार वे कमेटी के गठन के लिए जिम्मेदार हैं। इस पर तीनों ही अधिकारियों ने नहीं में जवाब दिया। कोर्ट ने कहा था कि मुख्य सचिव का बयान कि ये अधिकारी देरी के लिए जिम्मेदार हैं, सही नहीं है।

उन्होंने उन अधिकारियों के नाम क्यों नहीं बताए, जो वास्तव में जिम्मेदार हैं। कोर्ट ने कहा कि मुख्य सचिव ने अपने शपथ पत्र में झूठा बयान क्यों दिया और झूठा शपथ पत्र देने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा- 340 के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए। कोर्ट ने प्रमुख सचिव, राजस्व से भी पूछा था कि वह अग्रिम सुनवाई पर उपस्थित होकर बताएं कि कमेटी के गठन में देरी के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए।

इस आदेश के अनुक्रम में प्रमुख सचिव राजस्व कोर्ट में हाजिर हुए। याची के वकील अनु प्रताप सिंह ने बताया कि राज्य सरकार ने हाई केार्ट के 02 फरवरी के आदेश के खिलाफ सुप्रीम केार्ट में एसएलपी दाखिल की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

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