Varanasi News: नवसाधना कला केन्द्र का 26वां दीक्षांत समारोह का भव्य आयोजन के साथ संपन्न,
Varanasi News: संगीत और नृत्य कला मनुष्य के आत्म की अप्रतिम अभिव्यक्ति है। संगीत से ही जीवन में लय और समरसता आती है। यह कहना है मुख्य अतिथि लखनऊ धर्म प्रान्त के बिशप जेराल्ड माथियास का।;
नवसाधना कला केन्द्र का 26वां दीक्षांत समारोह का भव्य आयोजन के साथ संपन्न (Photo- Social Media)
Varanasi News: संगीत और नृत्य कला मनुष्य के आत्म की अप्रतिम अभिव्यक्ति है। संगीत से ही जीवन में लय और समरसता आती है। यह कहना है मुख्य अतिथि लखनऊ धर्म प्रान्त के बिशप जेराल्ड माथियास का। वे सोमवार को शिवपुर-तरना स्थित नवसाधना कला केन्द्र के 26वें दीक्षांत समारोह में कलासाधकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कला की साधना से ही हमें जीवन के अर्थ का पता चलता है।
अभ्यास के लिए कठिन परिश्रम करना ही पड़ता है। कलासाधकों को जीवन पर्यंत अभ्यास करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। विशिष्ट अतिथि प्रिंटानिया के संस्थापक अल्बर्ट डिसूजा ने कलासाधकों को नृत्य-संगीत के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ते रहने, गुरु भक्ति और ज्ञान पर पूर्ण विश्वास करने की नसीहत दीं।
नवसाधना कला केन्द्र का 26वां दीक्षांत समारोह
अध्यक्षता कर रहे वाराणसी धर्मप्रान्त के धर्माध्यक्ष बिशप यूजिन जोसेफ ने कहा कि भरतनाट्यम और गायन के प्रति रुचि और समर्पण होना अत्यन्त आवश्यक है। उन्होंने कलासाधकों को संगीत के आध्यात्मिक पक्ष के साथ रागों के महत्व को आत्मसात करने को कहा। अतिथियों का स्वागत करते हुए नवसाधना कला केन्द्र के प्राचार्य डॉ. फादर फ्रांसिस डि’सूजा ने कहा कि हमें सत्य को स्वीकर करना चाहिए। नवसाधना के गुरुजन और कलासाधकों की कड़ी मेहनत इसे संभव बनाती है। नवसाधना गुरु-शिष्य परम्परा को निरंतर आगे बढ़ा रहा है। उन्होंने सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया।
नवसाधना कला केन्द्र का 26वां दीक्षांत समारोह
शिक्षा-दीक्षांत का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन एवं शोभायात्रा के साथ वृहदारण्यक उपनिषद के श्लोक ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ से हुआ। इसे कलासाधक महिमा जेम्स, सिस्टर सलीमा, आशीष पीटर, अमन ने प्रस्तुत किया। हारमोनियम पर संगत अनिकेत ने किया। दीक्षांत के कलासाधकों ने ज्ञान को निरंतरता प्रदान करने की शपथ लीं।
शास्त्रीय गायन से किया मुग्ध
बीपीए अष्टम सेमेस्टर के कलासाधक दुर्गा, अनुज और आशुतोष ने हिन्दुस्तानी संगीत के राग विहाग में गायन प्रस्तुत किया। रात्रि के द्वितीय पहर में गाए जाने वाले औडव सम्पूर्ण जाति के एक ताल में निबद्ध इस राग के बोल ‘मुरली को अधर धरे’ की मधुरता को साधकों ने प्रस्तुत कर सौन्दर्य बिखेरा। इसके बाद अद्धा ताल में ‘दीनन के रखवार प्रभु जी तुम’ प्रस्तुत कर सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया। अंत में द्रुत तीन ताल में निबद्ध तराना प्रस्तुत कर ढेरों तालिया बटोरीं। तबले पर गुरु अनंग गुप्ता, तानपुरा पर महिमा जेम्स, हारमोनियम पर अनिकेत ने संगत किया। बंदिश रचना व संगीत संयोजन प्रो. गोविंद वर्मा ने किया।
नवसाधना कला केन्द्र का 26वां दीक्षांत समारोह
पुष्पांजलि से तिल्लाना तक थिरके पांव
शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम् की प्रस्तुति संगीतमय ‘पुष्पांजलि’ से हुई। साधकों ने राग गंभीर नट्टै, आदि ताल में डॉ. कलामण्डलम लता के नृत्य संयोजन एवं मदुरै टी सेतुरामण के संगीत में निबद्ध पुष्पांजलि प्रस्तुत किया। नृत्यांगनाओं ने करतल ध्वनि के बीच प्रार्थना और पुष्प वर्षा से प्रत्येक का वंदन किया।
अगली कड़ी में नृत्यांगनाओं ने राग शंकरा वर्णम, ताल आदि में निबद्ध पोन्नैया पिल्लई के संगीत, नृत्य रचना मैलापुर गौरी अम्मा रचित ‘मनवी वर्णम’ प्रस्तुत किया। नृत्य में नायिका महादेव को अपना स्वामी मानते हुए बात न सुनने का उलाहना देती है, वह अपने लिखे प्रेम के पत्र और रुप श्रृंगार को विविध आकर्षक मुद्राओं से व्यक्त करती है। भगवान शिव से मिलन के विरह में तप रही नायिका संसार को भूल बैठी है, भंवरे की गुंजन और पक्षियों का कलरव भी उन्हें सुनाई नहीं देता है। इसके बाद वे महादेव को राजाओं का राजा कहते हुए उनके मनमोहक स्वरुप का वर्णन करती है। वृहदेश्वर के गले में सर्पों की माला और चंद्र को धारण करने वाले शशि शेखर के सुंदर मुख को देख कर उनके तंजावुर में होने की बात कहती है। कामदेव के पंच बाणों से घायल बिरही अपने नायक भगवान शिव को पाने को आतुर दिखती है। नृत्यांगनाएं विरह वेदना के कष्ट और उनके मुंह फेर लेने पर उनके स्वरुप श्रृंगार के विप्रलंभ तथा उत्तान दोनों रुपों, पल्लवी-अनुपल्लवी, वादी-संवादी व आरोह-अवरोह तथा चरणम् की प्रस्तुति सबके मन को मोह लेती है।
नवसाधना कला केन्द्र का 26वां दीक्षांत समारोह
इसके बाद साधकों ने राग यमुना कल्याणी, ताल आदि में प्रो. बी राममूर्ति राव के संयोजन में ‘सरस्वती भजन्’ प्रस्तुत किया। भजन के बोल ‘नाचत नाचत आई सरस्वती, गावत गावत सुमधुर गान’ पर नृत्यांगनाओं ने पल्लवी, अनुपल्लवी, मुत्तई स्वरम्, चित्तई स्वरम्, चरणम् को प्रस्तुत किया। इसमें त्रिकाल जाति और पूर्वांगम और उत्तरांगम को बखूबी प्रस्तुत किया गया। भक्ति रस से भरे इस नृत्य में नृत्यांगनाओं के पदचलन व अंग संचालन व सौन्दर्य का भावपूर्ण आभामय नृत्याभिनय दिखा।
अगली कड़ी में नृत्यांगनाओं ने राग खमास्, ताल आदि में सुब्रमण्यम अय्यर के संगीत एवं कला क्षेत्र की डॉ. विद्यालक्ष्मी के नृत्य संयोजन में निबद्ध पल्लवी, अनुपल्लवी और चरणम् के साथ ‘तिल्लाना’ प्रस्तुत किया। भगवान वेंकटेश से विरह और मिलन के भाव को चेहरे और हस्त मुद्राओं के माध्यम से प्रस्तुत कर सभी के मन को मोह लिया, फिर मंगलम करते हुए नृत्य का समापन किया।
नृत्यांगनाओं की भाव भंगिमा व पद संचालन व नृत्य क्षमता की सभी ने सराहना की। नृत्य संयोजन करते हुए नाट्वंगम् पर प्रो. मीरा माधवन, कर्नाटिक गायन में भाग्यलक्ष्मी गुरुवायुर, मृदंगम पर प्रो. राकेश एडविन और वायलिन पर हेमंत कुमार ने संगत किया। साधकों में अंजलि प्रजापति, आरती, बॉबी कुमारी, इन्दु, कनिष्का अग्रहरि, नेहा रजक, रेखा कुजुर, साक्षी कैथवार, श्वेता शुक्ला, तन्नु, विनीता केवट शामिल थीं।
नृत्य नाटिका से जीवन-विजय का संदेश
बीपीए के नृत्य साधकों ने ‘आनंद ताण्डव’ नृत्य प्रस्तुत कर बुराई पर अच्छाई की जीत और ईसा के पुनरुत्थान के दृष्टांत को प्रस्तुत कर भक्ति की धारा बहा दीं। फादर एस. जोसफ के निर्देशन और प्रो. प्रार्थना सिंह के नृत्य निर्देशन में बाइबिल की कथा को भरतनाट्यम नृत्य शैली में प्रस्तुत किया गया। इसे आराधना, प्रीति खरका, मोनिका, ज्योति, अल्पना, सुहानी, प्रीति जॉन, मेघा, रेनु, अनुजा, शोभा, रोनिता, अल्मा, सिस्टर अलीशा, ने प्रस्तुत कर सभी को हर्ष से भर दिया। गायन दुर्गा रावत ने किया।
प्रिंटानिया पुरस्कार 2025
परंपरागत सर्जनात्मकता के विशेष योगदान हेतु प्रिंटानिया के संस्थापक अल्बर्ट डिसूजा द्वारा प्रिंटानिया पुरस्कार के लिए चयनित प्रख्यात कथक नर्तक पंडित विशाल कृष्ण और बनारस घराने के प्रसिद्ध तबला वादक पंडित पूरन महाराज को प्रिंटानिया पुरस्कार-2025 से सम्मानित किया गया। गुरुजनों को धर्माध्यक्ष वाराणसी और कलासाधकों को मुख्य अतिथि ने सम्मानित किया।
मंच संचालन प्रो. डॉ. राम सुधार सिंह ने किया। कॉलेज लीडर नेहा रजक ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समारोह में प्राचार्य फादर डॉ. फ्रांसिस डि’सूजा, उपप्राचार्य सिस्टर सरला, सिस्टर मंजू, सिस्टर लूसी, फादर रोजन सेबास्टियन, प्रो. गोविन्द वर्मा, प्रो. अनंग गुप्ता, प्रो. कामिनी मोहन, प्रो. राकेश एडविन, प्रो. प्रार्थना सिंह, प्रो. मीरा माधवन, समेत सभी कलासाधक मौजूद रहे।