हाईकोर्ट में पैरवी के लिए वकीलों का पैनल बनाने को लेकर येागी सरकार संशय में
लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में 201 नए सरकारी वकीलों की नियुक्ति के रिव्यू का मामला खिंचता चला जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक योगी सरकार यह तय नहीं कर पा रही है कि सपा एवं बसपा शासनकाल के जिन सरकारी वकीलों को हटाने के बाद फिर से सरकार की पैरवी के लिए नई सूची में जगह दे दी गयी थी उन्हें भाजपा व संघ के दबाव में हटाया जाए या नहीं। हालांकि महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने सोमवार को कोर्ट को बताया कि रिव्यू का काम पूरा हो चुका है और नई सूची जारी होने की प्रकिया में है। सिंह ने नयी सूची के लिए अदालत से फिर से तारीख बढ़वा ली।
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जस्टिस विक्रम नाथ व जस्टिस डी एस त्रिपाठी ने सेामवार को महाधिवक्ता से सवाल पूछा कि सरकारी वकीलों की लिस्ट के रिव्यू का क्या हुआ इस पर महाधिवक्ता ने कहा कि काम पूरा हो गया है और लिस्ट प्रेासेस में है। उन्होंने दशहरा के फौरन बाद की तारीख मांगी जिस पर कोर्ट ने 3 अक्टूबर की तारीख दे दी।
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स्थानीय वकील महेंद्र सिंह पवार ने जनहित याचिका दायर कर 7 जुलाई को योगी सरकार द्वारा जारी 201 सरकारी वकीलों की सूची को चुनौती दी थी। जिस पर बीते 21 जुलाई केा कोर्ट ने लिस्ट तैयार करने की प्रकिया में गंभीर खामी पायी थी कि लिस्ट पर विधि मंत्री और महाधिवक्ता के दस्तखत ही नही थे। कोर्ट ने कहा था कि लिस्ट कानून की नजर में टिकने वाली नहीं है। हांलाकि कोर्ट द्वारा सूची को रद कर देने की मंशा भांपते हुए महाधिवक्ता ने स्वंय कह दिया था कि सरकार खुद सूची का रिव्यू कर लेगी। पंरतु दो महीने के बाद सरकार रिव्यू का काम पूरा कर नयी लिस्ट नहीं जारी कर पाई। कोर्ट की तारीख नजदीक आते देख सरकार में कुछ हलचल मचती है और फिर अगली तारीख मिलते ही सब शांत हो जाता है।
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बतातें चलें कि 7 जुलाई की सूची में भाजपा व संघ से जुडे तमाम वकीलों की अनदेखी पर बवाल मच गया था। सूची में हाईकोर्ट में वकालत न करने वाले अनेक वकीलों को भी सरकारी वकील बना दिया गया था जिसके बाद कोर्ट में सरकार का पक्ष ठीक से न रख पाने पर कई अदालतों ने कठोर टिप्पणी भी की थी जो मीडिया की सुर्खिया बनीं।
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सरकार की ओर से की गयी यह पहली नियुक्तियां थी जिससे न तो पार्टी व संघ ही संतुष्ट हुए और न ही अदालतें। ऐसे लोग सरकारी वकील बना दिये गये थे जिनका नाम ही आन रोल में नहीं था। हांलाकि, हाई कोर्ट में एडवोकेट आनरोल मे रजिस्ट्रेशन 11 सितंबर से खुल गया है जिसके बाद आशंका जतायी जा रही है कि जिन नवनियुक्त सरकारी वकीलों के एओआर नहीं है वे एप्लाई करने के बाद सरकारी वकील बने रहने का दबाव बनाने लगेंगे।
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बेंच में करीब 428 सरकारी वकील थे जिनमें से करीब साढ़े तीन सौ को गत 7 जुलाई को सरकार ने हटा दिया था। हांलाकि सरकार ने एक ओर तो सपा व बसपा शासनकाल के सभी सरकारी वकीलेां केा हटा दिया लेकिन इसके साथ ही नई लिस्ट में चार दर्जन से अधिक को फिर से वापस ले लिया।
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इनमें अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता विनय भूषण को प्रमोट कर मुख्य स्थायी अधिवक्ता द्वितीय बना दिया गया। विनय भूषण सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण के भाई हैं और अयोध्या विवाद की सुनवाई के लिए बनी तीन सदस्यीय पीठ के सदस्य भी हैं। वहीं नई लिस्ट में सपा सरकार के एक पूर्व मंत्री के पुत्र सत्यांशु ओझा, राहुल शुक्ला, अभिनव एन त्रिपाठी, देवेश पाठक, पंकज नाथ, कमर हसन रिजवी व विवेक शुक्ला को अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता जैसे महत्वपूर्ण पद पर फिर से जगह दे दी गयी।
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पुरानी सरकार के करीब चार दर्जन सरकारी वकीलों को लिस्ट में जगह दी गयी थी। इनमें एलआर आफिस में तैनात एडिशनल एलआर रणधीर सिंह के सगे भाई रणविजय सिंह को प्रोन्नत कर स्टैडिंग कौसिंल बना दिया गया। वह पहले की सरकार में ब्रीफ होल्डर थे।
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पुराने सरकारी वकीलों को रिपीट करने व अपनों की उपेक्षा से भाजपा व संघ में काफी नाराजगी बतायी जा रही है। सूत्रों के अनुसार महाधिवक्ता लिस्ट बनाने में भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियेां के साथ संघ के क्षेत्रीय पदाधिकारियेां की भी अनदेखी कर रहे हैं जिसके चलते लिस्ट का मामला लटका पड़ा है जिस पर मुख्यमंत्री भी खासा असमंजस में हैं।