हिंदी भाषा के लिए क्यों न बनाया जाए आयोग, कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने गुरुवार (06 अप्रैल) को भारतीय संविधान में प्रदत्त हिंदी भाषा के लिए आयोग बनाए जाने की मांग पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। यह आदेश जस्टिस ए पी साही और जस्टिस संजय हरकौली की बेंच ने शैलेंद्र कुमार उपाध्याय की ओर से दाखिल एक विचाराधीन पुनर्विचार अर्जी पर पारित किया।
बता दें कि दिसंबर 2014 में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल कर यह मांग की गई थी। कोर्ट ने उक्त याचिका खारिज कर दी थी। जिसके बाद याचिकाकर्ता ने जनवरी 2015 में उक्त पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी थी।
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जनहित याचिका में संविधान के अनुच्छेद- 344(1) के प्रावधानों को पूरी तरह लागू किए जाने की मांग की गई है। जिसमें संविधान के प्रारंभ से पांच साल की समाप्ति पर और इसके बाद दस साल की समाप्ति पर एक आयोग गठित किए जाने का निर्देश है। जो अनुच्छेद- 344 (2) के अनुसार राष्ट्रपति को संघ के शासकीय कार्यों के लिए हिंदी भाषा के अधिकाधिक प्रयोग और संघ के सभी या कुछ शासकीय कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर निर्बंधन के संबंध में सिफारिश करेगा।
पूर्व में याचिका को कोर्ट ने यह कहकर खारिज कर दिया था कि 7 जून 1955 को यह आयोग बना दिया गया था। जिसने 31 जुलाई 1956 को अपनी रिपोर्ट भी दे दी थी। 30 सदस्यीय संसदीय समिति ने उक्त रिपोर्ट का परीक्षण भी किया था। जिसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति ने इसे दृष्टिगत रखते हुए 27 अप्रैल 1960 को आवश्यक आदेश भी पारित कर दिए थे। इसके बाद नई स्थिति और नए तथ्य न आने पर दस साल बाद आयोग का गठन नहीं किया गया।
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कोर्ट ने तब याचिका खारिज करते हुए कहा था चुंकि अगले आयोग का गठन न करने का निर्णय लिया गया। लिहाजा याची की मांग के संबंध में कोई राहत नहीं दी जा सकती। याची ने उक्त आदेश पर पुनर्विचार के लिए जनवरी 2015 में याचिका दाखिल की। जिस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को अपना पक्ष रखने के आदेश दिए हैं। मामले की अग्रिम सुनवाई 27 अप्रैल को होगी।