बार-बार मुकदमा दर्ज करने पर हाईकोर्ट सख्त, BSNL पर लगाया पांच लाख का हर्जाना

Update: 2016-11-30 15:17 GMT
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इलाहाबाद: बार-बार मुकदमा दायर करने को न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग मानते हुए हाईकोर्ट ने बीएसएनएल नोएडा पर पांच लाख रुपए का हर्जाना लगाया है। कोर्ट ने बीएसएनएल की याचिका खारिज कर दी है।

हाईकोर्ट ने कहा कि एक अधिकारी को नोएडा में बनाए रखने के लिए आईटीएस आदेश कुमार गुप्ता का मेरठ तबादला कर दिया गया। इसके खिलाफ केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) द्वारा रोक लगाए जाने पर बीएसएनएल ने याचिका दाखिल की। जब मुकदमे का अंतिम निर्णय होना था तो तबादला आदेश वापस ले लिया गया और दो दिन बाद दोबारा देहरादून भेजने का आदेश जारी हुआ। कैट ने इस आदेश पर भी नीति के खिलाफ होने के कारण रोक लगा दी।

बार-बार याचिका दाखिल की

बीएसएनएल ने फिर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कैट के आदेश को चुनौती दी। कोर्ट ने बीएसएनएल की ओर से बार-बार याचिका दाखिल करना और तबादला आदेश वापस लेकर पुनः तबादला करना और कैट द्वारा रोक लगाए जाने पर बार-बार हाईकोर्ट आने को न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग माना। हाईकोर्ट ने कहा, 'सरकारी विभागों के मुकदमे के बोझ को और बढ़ाने के लिए बेकार के मुकदमे दाखिल नहीं करने चाहिए।'

यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति केजे ठाकुर की खंडपीठ ने बीएसएनएल की याचिका पर दिया है।

ये है मामला

बीएसएनएल ने आईटीएस अधिकारी आदेश कुमार का एक बार तबादला निरस्त किया। इनके स्थान पर अरुण कुमार को तैनात किया गया। कैट ने तबादले पर रोक लगा दी, तो उनका दोबारा तबादला देहरादून कर दिया गया। फिर याची को दोबारा याचिका दाखिल करनी पड़ी। जबकि नियमानुसार चार साल में तबादला हो सकता है। जिसका पालन नहीं किया गया।

हाईकोर्ट ने इसे कानूनन दुर्भावना बताया

कोर्ट ने पाया कि बार-बार अर्जी और याचिका दाखिल कर बीएसएनएल ने अपने तबादले को कायम रखने की भरपूर कोशिश की। हाईकोर्ट ने इसे कानूनन दुर्भावना करार दिया और कहा कि गलत सलाह से याचिका दाखिल की गई। हाईकोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट में वैसे ही मुकदमों का पहाड़ है। लोगों को त्वरित न्याय देने की जिम्मेदारी है। ऐसे में सरकारी विभागों को व्यर्थ की याचिकाओं से बचना चाहिए।

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