हाईकोर्ट ने सूचना आयोग व मुख्य सूचना आयुक्त को जमकर फटकारा
जस्टिस देवेन्द्र कुमार अरोड़ा और जस्टिस अलोक माथुर की बेंच ने लखनऊ की समाजसेविका और आरटीआई कार्यकत्री उर्वशी शर्मा द्वारा अधिवक्ता शीतला प्रसाद त्रिपाठी और सौरभ कुमार श्रीवास्तव के मार्फत दायर की गई।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयोग में महिलाओं के उत्पीडन के मामलों की जांचों के लिए आतंरिक परिवाद समिति बनाए जाने की जगह बहानेबाजी करने पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए यूपी के सूचना आयोग और मुख्य सूचना आयुक्त को जमकर फटकारा।
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जस्टिस देवेन्द्र कुमार अरोड़ा और जस्टिस अलोक माथुर की बेंच ने लखनऊ की समाजसेविका और आरटीआई कार्यकत्री उर्वशी शर्मा द्वारा अधिवक्ता शीतला प्रसाद त्रिपाठी और सौरभ कुमार श्रीवास्तव के मार्फत दायर की गई। याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने सूचना आयोग और मुख्य सूचना आयुक्त के अधिवक्ताओं को सुनने के बाद सूचना आयोग को 24 घंटे का समय देते हुए सुप्रीम कोर्ट के द्वारा विशाखा मामले में दिए गए निर्देशों और महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीडन ( निवारण प्रतिषेध एवं प्रतितोष ) अधिनियम 2013 की धारा 4 के अनुपालन में आयोग में आतंरिक परिवाद समिति गठित करने के सम्बन्ध में की गई कार्यवाही पर जबाब मांगा है और मामले को फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
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जस्टिस देवेन्द्र कुमार अरोड़ा और जस्टिस अलोक माथुर की बेंच ने महिला अधिकारों के प्रति उदासीन रवैया रखने पर सूचना आयोग को जमकर फटकारते हुये व्यवस्था दी कि आयोग एक स्वायत्त संस्था है और इसीलिये आयोग द्वारा महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीडन ( निवारण प्रतिषेध एवं प्रतितोष ) अधिनियम 2013 के प्राविधानों का अनुपलान करने की अनिवार्यता है। न्यायालय ने यह भी कहा कि आयोग को इस सम्बन्ध में शासन से किसी भी प्रकार के स्पष्टीकरण को मांगने की आवश्यकता नहीं है।