वनकर्मियों को मिल रहे न्यूनतम वेतन रोकने पर अपर मुख्य सचिव को हलफनामा देने का निर्देश

Update:2018-08-20 20:57 IST

इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वन विभाग के दैनिक वेतन भोगी कर्मियों को दिये जा रहे न्यूनतम वेतन को वापस लेने के खिलाफ दाखिल याचिका पर अपर मुख्य सचिव वन विभाग से हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दिया जा रहा न्यूनतम वेतन एकपक्षीय ढंग से क्यों वापस ले लिया गया। कोर्ट ने यह भी पूछा है कि सुप्रीम कोर्ट के दो फरवरी 2016 के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक का वेतन भुगतान करने के आदेश को लागू किया जाए। कोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट के आदेश सभी प्राधिकारियों पर बाध्यकारी है। जवाब दाखिल करते समय इस बात को ध्यान में रखा जाए। याचिका की अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र ने मोहन स्वरूप व अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता पंकज श्रीवास्तव ने बहस की। इनका कहना है कि याचीगण 29 जून 1991 से लगभग 28 वर्षाें से वन विभाग में कार्यरत है। वन विभाग के नियमित कर्मचारियों के समान कार्य कर रहे हैं। तीन दशक से कार्य कर रहे दैनिक कर्मियों को अभी नियमित किया जाना बाकी है। याची का कहना है कि कर्मियों को 6ठें वेतन आयोग के अनुसार न्यूनतम वेतन दिया जा रहा था। 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए मार्च 17 से 18 हजार न्यूनतम वेतन चतुर्थ श्रेणी के बराबर भुगतान किया जाता रहा और अचानक मार्च 18 से बढ़ा हुए न्यूनतम वेतन यह कहते हुए रोक दिया गया कि सातवां वेतन आयोग केवल नियमित कर्मचारियों पर ही लागू होता है। इसे याचिका में चुनौती दी गयी। सुप्रीम कोर्ट ने पुत्ती लाल केस में वन विभाग में कार्यरत दैनिक कर्मियों को न्यूनतम वेतन देने का निर्देश दिया है। क्षेत्रीय वन अधिकारी महोफ वन पीलीभीत ने वेतन रोकते हुए सरकार से सलाह मांगी है कि सातवां वेतन आयोग का लाभ दैनिक कर्मियों को मिलेगा या नहीं। सरकार का अनुमोदन न होने से बढ़ा हुआ न्यूनतम वेतन रोक दिया गया है। कोर्ट ने कहा है कि प्रथम दृष्टया न्यूनतम वेतन न देना गलत है।

कोर्ट की अन्‍य खबरें

सी.टी.ई.टी. में बी.एड डिग्रीधारियों को मिलेगा मौका

इलाहाबाद: राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एन.सी.टी.ई.) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को आश्वासन दिया है कि तीन दिन के भीतर बी.एड डिग्रीधारकों को भी सी.टी.ई.टी. परीक्षा में शामिल करने की अधिसूचना जारी कर दी जायेगी। एन.सी.टी.ई. के इस कथन को देखते हुए न्यायमूर्ति डी.के.सिंह ने भानु प्रताप यादव व अन्य की याचिका निस्तारित कर दी है और कहा है कि यदि बी.एड डिग्रीधारक अभ्यर्थी अन्तिम तिथि तक आवेदन जमा कर देते हंै तो उनके आवेदन पर विचार किया जाए। सी.टी.ई.टी. परीक्षा विज्ञापन में बी.एड को अर्हता में शामिल नहीं किया गया था। जिसको लेकर भ्रम उत्पन्न हुआ। प्राइमरी स्कूलों में सहायक अध्यापकों की भर्ती की जा रही है जिसमें बी.एड वालों को बैठने न देने को लेकर याचिकाएं दाखिल की गयी। एन.सी.टी.ई. ने स्वयं आश्वासन दिया कि बी.एड को अर्ह मानने की अधिसूचना जारी की जायेगी।

पैरा मिलिट्री फोर्स भर्ती 2011

इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कर्मचारी चयन आयोग की 2011 की पैरा मिलिट्री फोर्स भर्ती में अनियमितता को लेकर दाखिल सैकड़ों याचिकाएं यह कहते हुए निस्तारित कर दिया है कि जिन अभ्यर्थियों ने अपनी श्रेणी में कट आॅफ मार्क से अधिक अंक अर्जित किये हैं, वे चार हफ्ते के भीतर आयोग को अपना प्रत्यावेदन दे और आयोग मेडिकल जांच में फिट पाये जाने पर तीन माह के भीतर नियुक्ति पर विचार करे। कोर्ट ने ऐसे अभ्यर्थियों जिन्होंने राज्य कोड, बार्डर कोड, नक्सल कोड, टाई कोड आदि में छेड़छाड़ कर गलत तरीके से नियुक्ति प्राप्त कर ली है, ऐसे मामलों में सुनवाई का मौका देते हुए साक्ष्यों पर विचार कर आयोग नियमानुसार कार्यवाही करे।

कोर्ट ने कहा है कि 28 नवम्बर 2011 को जारी कट आॅफ मार्क से अधिक अंक पाने वाले मेडिकल जांच में सफल अभ्यर्थी यदि आयोग को सम्पर्क करते हैं तो आयोग चार हफ्ते में जांच कर चार हफ्ते में ऐसे लोगों के दावे पर विचार कर निर्णय ले। कोर्ट ने ऐसे लोगों को अनुतोष देने से इन्कार कर दिया है, जिन्होंने कट आफ मार्क से कम अंक प्राप्त किये हैं।

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने अजीत सिंह व 54 अन्य सहित 500 से अधिक याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया है। याचिकाओं पर अधिवक्ता विजय गौतम व भारत सरकार के अपर सालीसिटर जनरल शशि प्रकाश व सहायक सालीसिटर जनरल ज्ञान प्रकाश सहित सैकड़ों वकीलों को सुनकर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। आयोग ने 2011 में पैरा मिलिट्री फोर्स के कांस्टेबलों की भर्ती शुरू की। परिणाम घोषित होने के बाद अनियमितता को लेकर याचिकाएं दाखिल हुई। कोर्ट ने लम्बी सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था। सोमवार को फैसला सुनाया गया। इस फैसले से जहां तमाम लोगों को राहत मिली है तो सैकड़ों को मायूसी। साथ ही घपले कर नियुक्त हुए लोगों पर गाज भी गिर सकती है।

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