वाह रे, KGMU: पहले कोरोना वार्ड में डॉक्टरों से कराई ड्यूटी, फिर दिया टका सा जवाब
केजीएमयू के डेंटल विभाग के चिकित्सकों का आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने लगभग सौ रेजीडेंट चिकित्सकों से कोरोना महामारी के दौरान काम कराया है, लेकिन चिकित्सकों को नियुक्ति देने से मना कर रहा है।
लखनऊ: किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय का ढंग अनोखा है। प्रदेश सरकार के स्पष्ट शासनादेश के आधार पर कोरोना संकट के दौर में रेजीडेंट डॉक्टरों से ड्यूटी तो करा ली लेकिन जब लाभ देने का अवसर आया तो टका सा जवाब देकर भगा दिया। विश्वविद्यालय प्रशासन के रवैये से हतप्रभ चिकित्सक अब मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री से न्याय की उम्मीद लगा रहे हैं।
ये भी पढ़ें: बिजली हुई महंगी: स्लैब का प्रस्ताव, गरीब उपभोक्ताओं के साथ अन्याय
प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा रजनीश दुबे ने 11 अगस्त को एक शासनादेश के माध्यम से महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा, केजीएमयू और सैफई आयुर्विज्ञान संस्थान समेत एसजीपीजीआई और डॉ राम मनोहर लोहिया संस्थान लखनऊ, राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान ग्रेटर नोएडा, सुपर स्पेशलियटी बाल चिकित्सालय एवं स्नातकोत्तर शैक्षणिक संस्थान के निदेशक , सभी मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य को अवगत कराया है कि 24 मार्च 2020 को प्रदेश सरकार ने कोविड-19 महामारी को आपदा घोषित किया है।
अत्यधिक चिकित्सकों की आवश्यकता
कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। इस सिलसिले में चिकित्सकों की अत्यधिक आवश्यकता है। इस संबंध में सरकार ने तय किया है कि जिन भी राजकीय या निजी शिक्षण संस्थानों में चिकित्सा शिक्षा ग्रहण कर रहे स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्र या छात्रा हैं उन्हें उसी विशिष्टिता में सीनियर रेजीडेंट के पद पर नियमानुसार अर्हता धारण करने की तिथि से नियुक्त करने की कार्रवाई की जाए।
नियुक्ति शर्तों का जिक्र करते हुए इस शासनादेश में कहा गया कि सभी क्लीनिकल एवं पैराक्लीनिकल में पैथालॉजी, माइक्रोबॉयोलॉजी विषयों में रिक्त सीनियर रेजीडेंट पदों पर एक वर्ष के लिए सीधे नियुक्ति दी जाए। जिस विभाग या विषय में रिक्त पदों के मुकाबले अधिक अभ्यर्थी वहां मेरिट को नियुक्ति का आधार बनाया जाए।
ये भी पढ़ें: PM मोदी ने प्रणब मुखर्जी के साथ शेयर की ये तस्वीर, बताया- विद्वान और स्टेट्समैन
शासनादेश के अनुसार सभी को नियुक्ति का अधिकार
केजीएमयू के डेंटल विभाग के चिकित्सकों का आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने लगभग एक सौ रेजीडेंट चिकित्सकों से कोरोना महामारी अवधि के छह माह के दौरान काम कराया है। शासनादेश के अनुसार सभी को नियुक्ति का अधिकार है। बीएचयू और एम्स समेत अन्य संस्थानों में दंत चिकित्सा विभाग के रेजीडेंट को भी अगले एक साल के लिए नियुक्ति दी गई है लेकिन केजीएमयू प्रशासन अपने दंत चिकित्सा विभाग के चिकित्सकों को नियुक्ति देने से मना कर रहा है।
प्रशासन का रवैया पूरी तरह मनमानी भरा है। नए कुलपति को भी पूरी जानकारी नहीं दी जा रही है। केजीएमयू प्रवक्ता डॉ संदीप तिवारी ने बताया कि शासनादेश के अनुसार रेजीडेंट चिकित्सकों की नियुक्ति की जा रही है लेकिन जिन विभागों में पहले से रेजीडेंट तैनात हैं वहां नई नियुक्ति सीमित है। जितने पद खाली हैं उन्हीं पर तैनात किया जा रहा है। शासनादेश में यह भी स्पष््रट किया गया है कि अन्य अभ्यर्थियों को नए खुले मेडिकल कॉलेज में भेजा जाए।
-अखिलेश तिवारी
ये भी पढ़ें: स्वास्थ्य मंत्रालय यूपी, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा में केंद्रीय टीमें भेजेगा