INDEPENDENCE DAY: अंग्रेजो से परेशान ग्रामीणों ने लगाई थी इस कोठी में आग
कानपुर: अंग्रेजो के आतंक से परेशान ग्रामीणों ने अंग्रेज अधिकारियों की इस कोठी को आग के हवाले कर दिया था। किसी तरह अधिकारी अपनी जान बचाकर भागे थे। इस घटना के बाद आसपास के लगभग चार सौ लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था और 11 महीने की जेल हुई थी। घाटमपुर तहसील के मोहम्मदपुर में अंग्रेजो की यह कोठी अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है। एक दर्जन से अधिक ग्रामीणों ने 15 अगस्त को कोठी जलाने की योजना बनाई थी और 23 अगस्त को चारो तरफ से घेर कर आग लगा दी थी।
बनवाई थी आलीशान कोठी
कानपुर शहर से 56 किलोमीटर दूर फतेहपुर जिले के बार्डर पर मोहम्मदपुर गांव है। इस गांव में 1900 में अंग्रेजो ने अपना बेस कैम्प बनाया था। इस कोठी में मुख्य रूप से अंग्रेज अफसर जैसे पुलिस के अधिकारी, नहर विभाग के अधिकारी तार बाबू के दफ्तर और आवास थे। इस आलीशान कोठी में उन्होंने दफ्तर और रहने के लिए रूम बनाया था। इसमें कई टार्चर रूम भी थे और साथ ही प्रार्थना के लिए चर्च और पीने के लिए कुआं था। इस कोठी के पास एक हजारो साल पुराना बरगद का पेड़ है जो अपने अंदर इतिहास को समेटे हुए है। अगर ग्रामीण को अंग्रेज सजा देते थे तो इसी बरगद में बांध कर उसे बेरहमी से पीटते थे। लगान नहीं दे पाने में असमर्थ किसानो की बरगद से बांध का पिटाई की जाती थी।
क्या कहते है ग्रामीण?
मोहम्मदपुर के ग्रामीण गौहला प्रसाद ने बताया कि जब अंग्रेजो की कोठी में आग लगाई गई तब हमारी उम्र 12 साल थी लेकिन मुझे वह घटना आज भी याद है। अंग्रेजो के वह जुल्म भी याद है जो हमारे भाइयों पर ढाए थे। 80 साल के यह बुजुर्ग बताते है कि इस कोठी में रहने वाले अंग्रेज टांडेल और ओवर सराय बहुत ही क्रूर थे। उन्होंने बताया कि पास की नहर से शौच क्रिया के लिए अगर ग्रामीण पानी इस्तेमाल किया तो उनसे लगान लिया जाता था, जुर्माना भरो या फिर जेल होती थी।
बैलगाड़ी पर बैठने पर मारते थे कोड़े
उन्होंने बताया कि अगर अंग्रेजो के सामने से बैल गाड़ी में बैठ कर निकले तो जानवरों को पकड़ कांजी हॉउस भेज देते थे और बदले में 20 कोड़े मारे जाते थे। अंग्रेज आसपास के गांवो में अपनी ताकत बढ़ा रहे थे और वह मजबूत हो रहे थे। अब अंग्रेज हर बात पर टैक्स लगा रहे थे। खेती में उनको अनाज चाहिए था, बिना उनकी अनुमति के अनाज बेचा तो उसमें भी जुर्माना देना होता था।
लगाया 5 सौ बीघे सिंचाई का कर
ग्रामीण राजाराम बताते है कि अंग्रेजो ने अपने बेस कैम्प पर एक पार्टी का आयोजन किया था। इसमें बिरहर गांव की एक नाचने वाली महिला को बुलाया था, लेकिन वह किसी कारणवश नहीं आ पाई। अगले दिन अंग्रेजो ने उसे नहर से पानी लेते हुए देख लिया। उस पर पांच सौ बीघे की सिंचाई का कर लगा दिया। कर देने में उसने असमर्थता जताई तो उसे जेल भेज दिया। इसके बाद उसे उस गांव से निकलवा दिया।उन्होंने बताया कि यहां पर बरगद का पेड़ लगा है आसपास के गांव से पकड़ कर लाए गए ग्रामीणों को बांध कर पीटते थे। इसके बाद कोठी के पास ही एक कमरा था वहा बंद करके रखते थे। अंग्रेज बंदियों से दिनभर काम कराते थे।
ग्रामीणों ने बनाया आग लगाने की योजना
बुजुर्ग बारातीलाल यादव बताते है अंग्रजो के जुल्म से एक दर्जन से अधिक गांव वाले परेशान थे। तभी मोहम्मदपुर ,बिरहर ,उमरा बरुई ,गौरी ,देवपूरा समेत कई गांव के लोगो ने मिलकर साल 1942 ,15 अगस्त को योजना बनाई कि अंग्रेजो की इस कोठी को घेर कर आग लगा देगें। 23 अगस्त को हजारो गांव वाले जमा हो गए और अंग्रेजो की कोठी की तरफ बढे, लेकिन अंग्रेजो के मुखबिरों ने उन्हें बता दिया की ग्रामीण आग लगाने आ रहे है कुछ अंग्रेज अफसर तो भाग गए। हजारों ग्रामीण जब कोठी पर पहुंचे और पूरी कोठी को आग के हवाले कर दिया उनके जो कमरे बने थे वहा भी आग लगा दी। जो अंग्रेज मिले उनको बरगद से बांध दिया गया।
चार सौ ग्रामीण को हुई जेल
कुछ ही देर में बड़ी संख्या में पुलिस आ गई उनको मुक्त कराया। अंग्रेजो ने चार सौ ग्रामीणों पर मुकदमा दर्ज कराया और उनको 11 माह की जेल हो गई। इसके बाद कोई अंग्रेज इस कोठी पर नहीं रूका और अंग्रेजो से आजादी मिल गई।