भारत पर्यावरण अनुकूल क्षेत्र में बिजली चालित वाहन उद्योग का नेतृत्व करने के लिए तैयार: डॉ. महेंद्र नाथ पांडे

भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कार बाजार है। निकट भविष्य में शीर्ष तीन में से एक होने की क्षमता रखता है। वर्ष 2030 तक लगभग 40 करोड़ लोगों को आवागमन संबंधी समाधान की आवश्यकता होगी।

Newstrack :  Network
Published By :  Deepak Kumar
Update:2021-12-01 22:31 IST

बिजली चालित वाहन उद्योग।  

भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कार बाजार है। निकट भविष्य में शीर्ष तीन में से एक होने की क्षमता रखता है। वर्ष 2030 तक लगभग 40 करोड़ लोगों को आवागमन संबंधी समाधान की आवश्यकता होगी। यह सिक्के का एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि देश को परिवहन-क्रांति की जरूरत है। महंगे, आयातित ईंधन द्वारा चालित तथा अवसंरचना विस्तार की समस्याओं को झेल रहे पहले से ही भीड़भाड़ वाले व उच्च वायु प्रदूषण से प्रभावित शहरों द्वारा और अधिक कारों को शामिल करना लगभग असंभव है। भारत के शहरों की 'साँसें थमने' लगेगी।

इस परिवहन क्रांति में कई घटक होंगे- 'पैदल चलने की बेहतर सुविधा', बेहतर सार्वजनिक परिवहन, रेलवे, सड़कें और बेहतर कारें। इनमें से कई 'बेहतर कारें' बिजली-चालित होंगी। परिवहन क्षेत्र (transport sector) में कार्बन उत्सर्जन में कमी (carbon emissions reduction) लाने की एक भरोसेमंद वैश्विक रणनीति रही है। बिजली-चालित वाहनों द्वारा आवागमन।

बिजली-चालित वाहनों (ईवी) को प्राथमिकता

भारत उन गिने-चुने देशों में से एक है, जो वैश्विक ईवी 30@30 अभियान का समर्थन करते हैं, जिसके तहत 2030 तक नए वाहनों की बिक्री में कम से कम 30 प्रतिशत हिस्सा बिजली-चालित वाहनों के होने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रधानमंत्री ने ग्लासगो में हाल ही में संपन्न जलवायु परिवर्तन (Climate change) पर कॉप26 में पांच तत्वों, 'पंचामृत' की बात कही है, जो इस सम्बन्ध में स्पष्ट प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) ने विभिन्न विचारों की रूपरेखा को सामने रखा, जैसे भारत की ऊर्जा जरूरतों का 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable energy) से पूरा किया जायेगा, 2030 तक कार्बन उत्सर्जन (carbon emissions) को 1 बिलियन टन तक कम किया जाएगा और 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल किया जायेगा। ये लक्ष्य हमारी भावी पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के लिए तय किए गए हैं, ताकि वे एक सुरक्षित और समृद्ध जीवन का आनंद ले सकें।

पेरिस समझौते (Paris Agreement) के तहत स्थापित वैश्विक जलवायु कार्यसूची में कार्बन उत्सर्जन (carbon emissions) को कम करने की बात कही गयी है, ताकि ग्लोबल वार्मिंग को सीमित किया जा सके। इसे ध्यान में रखते हुए बिजली-चालित वाहनों (ईवी) को प्राथमिकता दी जा रही है।

अनुमान है कि यह रणनीति, समग्र ऊर्जा सुरक्षा स्थिति में सुधार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, क्योंकि देश कच्चे तेल की कुल आवश्यकताओं का 80 प्रतिशत से अधिक आयात करता है, जिसकी लागत लगभग 100 बिलियन डॉलर है। उम्मीद है कि ईवी उद्योग, रोजगार सृजन के लिए स्थानीय ईवी विनिर्माण उद्योग में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। दूसरी ओर, ग्रिड को समर्थन करने वाली विभिन्न सेवाओं के माध्यम से, उम्मीद है कि ईवी उद्योग ग्रिड को मजबूती प्रदान करेगा तथा सुरक्षित और स्थिर ग्रिड संचालन को जारी रखते हुए उच्च नवीकरणीय ऊर्जा पहुंच को आसान बनाने में मदद करेगा।

आज वैश्विक विद्युत-परिचालित आवागमन क्रांति की परिभाषा बिजली-चालित वाहन (ईवी) के तेज विकास से दी जाती है। एक अनुमान के मुताबिक, आज बिकने वाली प्रत्येक सौ कारों में से दो बिजली-चालित होती हैं। इसे बिजली-चालित वाहनों (ईवी) की बिक्री में दर्ज की जा रही तेज वृद्धि से समझा जा सकता है, वर्ष 2020 के लिए ईवी की बिक्री 2.1 मिलियन तक पहुंच गई है।

2020 में ईवी की कुल संख्या 8.0 मिलियन थी, वैश्विक वाहन स्टॉक में ईवी का हिस्सा 1 प्रतिशत था, जबकि वैश्विक कार बिक्री में ईवी का हिस्सा 2.6 प्रतिशत दर्ज किया गया। वैश्विक स्तर पर बैटरी की गिरती लागत और बढ़ती प्रदर्शन क्षमता से पूरी दुनिया में ईवी की मांग को गति मिल रही है।   

यह अनुमान है कि 2020-30 तक भारत की बैटरी की कुल मांग ~900-1100 गीगावाट प्रति घंटा की हो जायेगी। लेकिन भारत में बैटरी की उत्पादक इकाइयों की अनुपस्थिति और इसकी बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए एकमात्र आयात पर निर्भरता के कारण चिंता बढ़ गई है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2021 में एक बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के लिथियम-आयन सेलों का आयात किया था। यह एक अलग बात है कि बिजली के क्षेत्र में यहां इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरी भंडारण की पैठ बहुत कम है। भारत के लिए जहां अभी इस अवसर को भुनाना बाकी है, वहीं वैश्विक उत्पादक बैटरी के उत्पादन पर अधिक दांव लगा रहे हैं और तेजी से गीगा-फैक्ट्रीज से हटकर टेरा-फैक्ट्रीज की ओर बढ़ रहे हैं।

उन्नत किस्म की बैटरियों के उत्पादन

हाल के प्रौद्योगिकी संबंधी व्यवधानों के बीच, ई-आवागमन और नवीकरणीय ऊर्जा (2030 तक 450 गीगावाट की ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य) को बढ़ावा देने से संबंधित सरकार की विभिन्न पहलों को देखते हुए बैटरी भंडारण के सामने देश में सतत विकास को बढ़ावा देने का एक बड़ा अवसर है।

प्रति व्यक्ति आय के बढ़ते स्तरों के साथ–साथ मोबाइल फोन, यूपीएस, लैपटॉप, पावर बैंक आदि के क्षेत्र में उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स सामग्रियों की जबरदस्त मांग हो रही है, जिनके लिए उन्नत किस्म की रासायनिक बैटरी की जरूरत होती है। यह परिस्थिति उन्नत किस्म की बैटरियों के उत्पादन को वैश्विक स्तर पर 21वीं सदी के सबसे बड़े आर्थिक अवसरों में से एक बनाती है।

भारत सरकार ने देश में बिजली-चालित वाहनों (ईवी) के इकोसिस्टम को विकसित करने और इसे बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई उपाय किए हैं। इन उपायों में उपभोक्ता पक्ष के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन से संबंधित पुनः प्रतिरूपित त्वरित संयोजन (फेम II) योजना (10,000 करोड़ रुपये) से लेकर आपूर्तिकर्ता पक्ष के लिए उन्नत रासायनिक सेल से संबंधित उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना (18,100 करोड़ रुपये) और अंत में इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माताओं के लिए ऑटो एवं ऑटोमोटिव से जुड़े घटकों के लिए हाल ही में शुरू की गई उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना (25,938 करोड़ रुपये) शामिल हैं।

इस प्रकार, अर्थव्यवस्था में एकीकरण के इन सभी अग्रगामी और पश्चगामी तंत्रों द्वारा आने वाले वर्षों में अधिक विकास हासिल किये जाने की उम्मीद है। यह भारत को पर्यावरण की दृष्टि से स्वच्छ बनाने, इलेक्ट्रिक वाहनों और हाइड्रोजन ईंधन सेल वाले वाहनों को अपनाने की दिशा में एक लंबी छलांग लगाने में सक्षम बनाएगा। इससे न सिर्फ देश को विदेशी मुद्रा की बचत करने में मदद मिलेगी, बल्कि यह भारत को बिजली-चालित वाहनों के निर्माण और कॉप24 पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते के बेहतर अनुपालन के मामले में एक वैश्विक अगुआ भी बनाएगा।

इन तीनों योजनाओं में कुल मिलाकर लगभग 1,00,000 करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद है, जोकि घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देगी और देश में पूर्ण घरेलू आपूर्ति श्रृंखला (domestic supply chain) के विकास एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ-साथ बिजली चालित वाहनों तथा बैटरी की मांग पैदा करने में सहायक साबित होगी। इस कार्यक्रम से तेल के आयात बिल में लगभग दो लाख करोड़ रुपये की कमी और लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये मूल्य के आयात बिल प्रतिस्थापन की परिकल्पना की गई है।

मुझे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निर्धारित दृष्टिकोण सार्वजनिक एजेंसियों और निजी उद्यमियों, दोनों को सहयोग की एक यात्रा शुरू करने के लिए प्रेरित करेगा जिससे देश को अकल्पनीय पैमाने पर लाभ होगा। 

(लेखक केंद्र सरकार में भारी उद्योग मंत्री डॉ. महेंद्र नाथ पांडे।)

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