Lucknow News: करुणा और प्रेम का आंगन बनाती हैं भारतीय भाषाएं- प्रो० अलका पांडेय
Lucknow News: प्रोफेसर रमेशधर द्विवेदी ने भारतीय भाषाओं के महत्व को बताते हुए कहा कि हम ऐसे क्षेत्र में हैं जहां उच्च शिक्षा के अंतर्गत हिंदी के ही विभिन्न भाषाओं को जानने वाले विद्यार्थी आते हैं।
Lucknow News: भाषा इतिहास और समाज के चुनाव को तोड़कर करुणा और प्रेम का आंगन बनाती हैं जिसमें हिंदी तथा अन्य सभी भारतीय भाषाओं की जड़ें स्थित हैं। यह भारतीय भाषाएं हमारी संस्कृति में भी है जिसमें सृजन की अपार क्षमता है उक्त बातें प्रोफेसर अलका पांडे ने विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान एवं हिंदी विभाग बीएसएनवी पीजी कॉलेज लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय भाषा उत्सव कार्यक्रम में कही। कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण के साथ हुआ।
अपने स्वागत और सम्बोधन में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर रमेशधर द्विवेदी ने भारतीय भाषाओं के महत्व को बताते हुए कहा कि हम ऐसे क्षेत्र में हैं जहां उच्च शिक्षा के अंतर्गत हिंदी के ही विभिन्न भाषाओं को जानने वाले विद्यार्थी आते हैं।
यदि हम इन सभी उप भाषाओं को थोड़ा-थोड़ा समझेंगे तो यह विद्यार्थियों के लिए अत्यंत हितकर होगा। संगोष्ठी के विषय से परिचित कराते हुए संयोजक डॉ प्रणव कुमार मिश्र ने कहा कि भारत एक बहुभाषी देश है।
भारतीय भाषाएं हमारे देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं भौगोलिक विविधताओं को अच्छी तरह अभिव्यक्त करती रही है । भाषा हमारी चिंतन को आकार देती है। मनुष्य का चिंतन उसके सामाजिक परिवेश से जुड़ा होता है।
सामाजिक परिवेश के परिष्कार और नवनिर्माण में हमारा चिंतन और तदनुरूप हमारी भाषा की महती भूमिका होती है। भारतीय चिंतन मानवतावादी, लोकमंगल तथा अध्यात्मिकता से स्पंदित रहा है जिसकी उदात्त अभिव्यक्ति भारतीय भाषाओं मे देखने को मिलती है जिससे भारतीय समाज मानवतावादी एवं सर्वमंगल को आत्मसात कर एक उदात्त समाज के निर्माण के प्रति सचेष्ट और अग्रसर रहता है।
भारतीय भाषाओं में अभिव्यक्त उदात्त आदर्शों से प्रेरित होकर हम कई सामाजिक एवं अमानवीय कुरीतियों से मुक्त होकर सर्व समावेशी समाज के नव निर्माण में सफल रहे हैं।
विद्या भारती के क्षेत्र संयोजक प्रोफेसर जय शंकर पांडे ने अपने वक्तव्य में यह बताया कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अधिक से अधिक भारतीय भाषाओं का उपयोग करने से सामाजिक सांस्कृतिक चेतना जागृत होगी और लोगों में राष्ट्रीय एकता सद्भाव और अखंडता का बोध होगा ।
इसक्रम हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष श्री डीके राय ने अपने संबोधन में बताया आज भाषाई अस्मिता पर संकट लोगों के राजनीतिक विद्वेष के कारण आया है। सभी भारतीय भाषाओं का समाज के नवनिर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है।सभी भारतीय भाषाएं अखंड भारत की संकल्पना को साकार करती हैं।
मुख्य अतिथि के रुप में सम्मिलित प्रोफेसर अलका पांडेय जी ने कहा कि भाषा; इतिहास और समाज की वर्जनाओं को तोड़कर करुणा और प्रेम का आंगन बनाती है। जिसमें हिन्दी तथा अन्य सभी भारतीय भाषाओं की जड़े स्थिति हैं।
ये भारतीय भाषायें हमारी सांस्कृतिक निधि हैं, जिनमें सृजन की अपार क्षमता है। भाषायी सीमाओं को तोड़ते हुए हम यह अनुभव करते हैं कि अपनी भाषा से अन्य भाषा और साहित्य का ज्ञान होना, तीसरी आँख या कान के प्राप्त होने जैसा है।
देश के विद्वान भाषाविदों एवं साहित्यकारों को उदारतापूर्ण आपसी सामंजस्य का परिचय का परिचय देना होगा और आपस में जोड़ने हेतु सेतु अर्थात संवाद सेतु भी स्थापित करना होगा। जब हम भारतीय एकता या सांस्कृतिक चेतना की विषय में सोचते हैं तो यहां प्रान्तीय विशिष्टताएं ऊपर की दृष्टिगत होती हैं अन्दर का सार अथवा चेतना एक है। मूल प्राणशक्ति में कोई अन्तर नहीं है।
कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संचालन डॉक्टर चंद्रमणि शर्मा ने किया। विभाग के सम्मानित शिक्षक प्रोफेसर सविता सक्सेना, श्री के सी चौरसिया तथा डॉ सीमा दुबे कार्यक्रम में अंत तक उपस्थित रहे।
इस दौरान महाविद्यालय के विविध विभागों के शिक्षक प्रोफेसर अनिल पांडे, प्रोफेसर डीके गुप्ता, प्रोफेसर गीता रानी , प्रोफेसर गोविंद कृष्ण मिश्र, डॉ मंजुल त्रिवेदी , डॉ स्नेह प्रताप सिंह इत्यादि गणमान्य शिक्षकों की की गरिमामय उपस्थिति रही।