नोएडा: जेपी इन्फ्राटेक के होम बायर्स अभूतपूर्व हालात का सामना कर रहे हैं। पहली बार कोई हाउसिग कंपनी दिवालियापन की दहलीज पर पहुंच चुकी है। होम बायर्स के लिए बड़ी ही विषम स्थिति है। अगर कोई स्टील कंपनी दिवालिया हो तो आमलोगों पर उसका असर बहुत ज्यादा नहीं होता, लेकिन जब कोई रियल एस्टेट कंपनी जो अभी घरों का निर्माण कर ही रही हो, वह दिवालिया हो तो स्थितियां चुनौतीपूर्ण बन जाती हैं खासकर बायर्स के लिए।
यही वजह है कि जेपी इन्फ्राटेक का मामला काफी गंभीर है क्योंकि इस मामले में अलग-अलग कानूनों और कुछ तो एक दूसरे के विरोधाभासी कानूनों की व्याख्या होगी जो भविष्य के ऐसे मामलों के लिए नजीर बनेगी। कानूनी सलाहकार व रियल स्टेट विषेज्ञय ने दी जानकारी।
कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल में अपना दावा ठोकें
नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) ने दिवालियापन की प्रक्रिया को देखने के लिए गुरुवार को एक इन्साल्वंसी प्रफेशनल की नियुक्ति कर दी है। जेपी प्रॉजेक्ट्स के बायर्स 24 अगस्त तक क्लेम कर सकते हैं। इन्साल्वंसी प्रफेशनल एक या दो दिनों में निर्धारित फॉर्म में क्लेम मंगाएगा।
ईएमआई चुकाना बंद न करें
अगर आपने बैंक से लोन लिया है और आपको घर के पजेशन का इंतजार है तो आपको ईएमआई चुकाना बंद नहीं करना चाहिए। विशेषज्ञों के मुताबिक इन्साल्वंसी प्रफेशनल कंपनी को पुनर्जीवित करने की कोशिश करेगा इसलिए बायर्स के लिए कुछ हद तक एक उम्मीद की किरण बाकी रहेगी। ईएमआई चुकाना बंद कर देने से न सिर्फ बायर्स की क्रेडिट रेटिग नेगेटिव होने का खतरा बढ़ेगा बल्कि दिवालियापन की प्रक्रिया के दौरान उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
रिवाइवल प्लान क्या है?
इन्साल्वंसी प्रफेशनल को 270 दिनों के भीतर हाउसिग स्कीम्स के लिए एक विश्वसनीय रिवाइवल प्लान बनाना होता है। इसके लिए उन्हें 90 अतिरिक्त दिनों का एक्सटेंशन भी मिल सकता है। रिवाइवल की समूची प्रक्रिया कोर्ट की देखरेख में होगी। रिवाइवल प्रक्रिया दूसरी कंपनियों की तरह सहज नहीं होने वाली। इसकी वजह है कि हजारों बायर्स ने कंपनी में निवेश किया है ऐसे में रिवाइवल इनके लिए काफी अहम है। अगर कंपनी की स्थिति नहीं सुधरती तो उसके कर्ज को चुकाने के लिए उसकी संपत्तियां बेची जाएंगी।
एक और विकल्प
अगर कंपनी रिवाइव नहीं होती है तो भी एक रास्ता है कि बैंक कंपनी के इक्विटी को खरीद लें। दिवालिया हुई कंपनी की संपत्तियों को बेचकर भी अच्छे पैसे नहीं जुटाए जा सकते क्योंकि संकटग्रस्त कंपनी की संपत्तियों के खरीदार औने-पौने दाम ही देना चाहेंगे। हालांकि बाद में इन संपत्तियों की अच्छी कीमत मिल सकती है। इसलिए बैंक कंपनी की संपत्तियों को बेचकर तत्काल अपना पैसा निकालने के बजाय कंपनी का इक्विटी खरीद सकते हैं। इस मामले में, बायर्स को अच्छी डील मिल सकती है क्योंकि बैंक भी प्रॉजेक्ट्स को रिवाइव करने की कोशिश करेंगे।
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लिक्विडेशन की सूरत में आपके क्या हैं अधिकार
अगर कंपनी रिवाइव नहीं होती तो उसे लिक्विडेट किया जाएगा यानी उसकी संपत्तियों को बेचकर कर्जदाताओं के पैसे चुकाए जाएंगे। हाउसिग कंपनी के मामले में स्थिति जटिल हो जाती है क्योंकि दूसरी कंपनियों में तो कर्जदाताओं को आसानी से क्लासिफाइड किया जा सकता है। लेकिन मौजूदा मामले में बायर्स ही कंपनी के वास्तविक कर्जदाता हैं लेकिन उन्हें एक सिक्यॉर्ड क्रेडिटर्स की तरह अधिकार प्राप्त नहीं होगा। होम बायर्स को बैंकों के बराबर तवज्जो नहीं दी जाएगी क्योंकि बैंक ही मुख्य कर्जदाता हैं। परिसंपत्तियों को बेचकर जो पैसे जुटेंगे उन्हें सबसे पहले बैंकों के बीच बांटा जाएगा और आखिर में अगर पैसे बचे तो होम बायर्स को दिया जाएगा।
देखें और इंतजार करें
चूंकि हजारों होम बायर्स का सीधे-सीधे हित जुड़ा है, इसलिए कोर्ट उनके प्रति सहानुभूति रख सकता है। यह अपनी तरह का पहला मामला है और इससे जुड़े बहुत सारे कानून हैं। इन कानूनों में कुछ तो एक दूसरे के विरोधाभासी हैं जिनकी कोर्ट द्बारा व्याख्या की जरूरत है। कोर्ट इस मामले में होम बायर्स के हितों को ध्यान में रखकर कोई फैसला कर सकता है। ऐसे में बायर्स के लिए सबसे अच्छी नीति 'वेट ऐंड वॉच' की है, साथ में उन्हें कानूनी मदद भी लेनी चाहिए।