Jhansi News: ICR ने तैयार की नैनो DAP, किसानों तक पहुंचाएगा इफको
Jhansi News: आमतौर पर किसान अपनी खाद्यान्न, दलहनी-तिलहनी व बागवानी फसलों में यूरिया व डीएपी का प्रयोग करते हैं। किसान को खाद सस्ते मिलते हैं इसलिए वे खेतों में इसका असंतुलित उपयोग करते हैं।
Jhansi News: देश के किसान अच्छी पैदावार लेने के लिए यूरिया के बाद डीएपी का सबसे ज्यादा प्रयोग करते हैं। अब आईसीएआर के वैज्ञानिकों ने नैनो डीएपी की खोज की है। पूरे देश में 3000 से अधिक स्थानों पर किया किए गए रिसर्च में नैनो डीएपी के उपयोग से फसलों की पैदावार में 27 फीसदी तक बढ़ोतरी पाई गई। ऐसे में यह बुंदेलखंड के किसानों के लिए बहुत लाभकारी साबित होगी। बुंदेलखंड में इफको किसानों तक नैनो डीएपी पहुंचाने का कार्य करेगा, जिससे बुंदेलखंड की फसलों के उत्पादन में वृद्धि हो सके।
आमतौर पर किसान अपनी खाद्यान्न, दलहनी-तिलहनी व बागवानी फसलों में यूरिया व डीएपी का प्रयोग करते हैं। किसान को खाद सस्ते मिलते हैं इसलिए वे खेतों में इसका असंतुलित उपयोग करते हैं। चूंकि यूरिया और डीएपी का भारत में उत्पादन न के बराबर होता है इसलिए इन्हें दक्षिण अफ्रीका, चीन, कनाडा से मंगाना पड़ता है। हालांकि दक्षिण अफ्रीका के सेनेगल में भारत के संयुक्त उपक्रम में डीएपी का उत्पादन किया जाता है, फिर भी डीएपी की एक बोरी 3000 रुपए की पड़ती है।
ऐसे में हर साल विदेशों से उर्वरक मंगाने में अरबों रुपए खर्च होते हैं। वहीं उर्वरक की जितनी कीमत नहीं होती है उससे ज्यादा उसकी सब्सिडी पर खर्च होते हैं। वहीं डीएपी के परिवहन और भंडारण में पैसा खर्च होता है। देश की कीमती पूंजी को विदेशों में जाता देख आईसीएआर के वैज्ञानिकों ने भारत में ही लंबे समय तक रिसर्च करके नैनो डीएपी को विकसित किया। इसके बाद पूरे देश के विभिन्न प्रांतों और क्षेत्रों के गांवों में जाकर किसानों के खेतों में इसका परीक्षण किया। लंबे परीक्षण के बाद जो रिजल्ट सामने आए वह भारत जैसे विकासशील देश के लिए बहुत चौंकाने वाले थे। परीक्षण में पाया गया कि विभिन्न फसलों में 2.4 से 27 प्रतिशत तक ज्यादा पैदावार हुई वहीं किसान की फसल निवेश के नाम पर बहुत कम पूंजी लगी। इससे किसान को कई गुना फायदा दिखाई दिया।
इफ्को के क्षेत्रीय प्रबंधक कृष्णा सिंह ने बताया कि भारतीय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थान के वैज्ञानिकों ने जिस नैनो डीएपी की खोज की है उससे किसानों और सरकार दोनों को बहुत फायदा मिलेगा। साथ ही देश की पूंजी विदेशों में जाने से बचेगी। बुंदेलखंड में इफ्को सहकारी समितियों, एग्री जंक्शन के अलावा इफ्को बाजार में नैनो डीएपी उपलब्ध है। वहीं इसको लेकर गांव-गांव कृषि गोष्ठियों में भारतीय वैज्ञानिकों की इस खोज की जानकारी दी जा रही है।
इन संस्थानों ने की रिसर्च
नैनो डीएपी की रिसर्च में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के कई प्रतिष्ठित संस्थान शामिल थे। जैसे कि भारत कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली, भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान हैदराबाद, भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान हैदराबाद, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर, केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान नागपुर, भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान बेंगलुरु और भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी शामिल रहे। इसका परीक्षण विभिन्न राज्य कृषि विश्वविद्यालयों जैसे कि तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय कोयंबटूर, प्रोफेसर जयशंकर तेलंगाना राज्य कृषि विश्वविद्यालय हैदराबाद, महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ राहुरी, डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ अकोला और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना में भी किया गया। इसके अलावा किसानों के खेतों में इसका स्पष्ट रूप से प्रदर्शन भी किया गया।
नाइट्रोजन और फास्फेट दोनों शामिल
वित्त मंत्री ने अंतरिम बजट 2024-25 में सभी कृषि-जलवायु क्षेत्रों में विभिन्न फसलों पर उर्वरक के रूप में नैनो डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट) के प्रयोग के विस्तार की घोषणा की है। दरअसल, डीएपी भारत में यूरिया के बाद दूसरी सर्वाधिक इस्तेमाल की जाने वाली खाद है। डीएपी को भारत में अधिक वरीयता दी जाती है क्योंकि इसमें नाइट्रोजन और फॉस्फोरस दोनों शामिल होते हैं। उल्लेखनीय है कि ये दोनों ही तत्त्व मैक्रोन्यूट्रिएंट्स हैं और पौधों के लिये आवश्यक 18 पोषक तत्त्वों का हिस्सा हैं। उल्लेखनीय है कि डीएपी में 18 प्रतिशत नाइट्रोजन और 46 प्रतिशत फॉस्फोरस होता है। इसका निर्माण उर्वरक संयंत्रों में नियंत्रित परिस्थितियों में फॉस्फोरिक एसिड के साथ अमोनिया की अभिक्रिया द्वारा किया जाता है।
इफको या इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड विश्व की सबसे बड़ी उर्वरक सहकारिता संस्था है। इफको में 40 हजार सहकारिताएं इसके सदस्य हैं। 3 नवम्बर 1967 को इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड का पंजीकरण एक बहुएकक सहकारी समिति के रूप में किया गया जोकि अब पूरे देश में फैल चुकी है।