Jhansi News: सौ से अधिक ट्रैकमैन पटरियों की बजाए अधिकारियों के बंगले पर दे रहे ड्यूटी

Jhansi News: रेलवे के अधिकारियों ने करीब सौ से अधिक ट्रैकमैन की ड्यूटी अपने बंगलों और दफ्तरों में लगा रखी है। इनमें कुछ ट्रैकमैन गाड़ी भी चला रहे हैं।;

Report :  Gaurav kushwaha
Update:2025-02-23 19:55 IST

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Jhansi News: रेल की पटरियों की देखरेख करने वाले 100 से अधिक ट्रैकमैन रेल की पटरियों की जगह अधिकारियों के बंगले में काम कर रहे हैं। जिन ट्रैकमैन पर रेल पटरियों की जिम्मेदारी है, उन्हें अधिकारियों ने पटरियों के बजाए अपने बंगले में तैनात कर रखा है। यही नहीं, कई ट्रैकमैन ऐसे भी हैं, जिन्हें दफ्तर में पदस्थ कर रखा है, तो कोई साहब की गाड़ी चला रहा है। इसकी जानकारी यहां पदस्थ अफसरों को पूरी तरह से हैं, मगर वे मूकदर्शक बने हुए हैं। रेल की पटरियों की सुरक्षा और उसकी देखरेख का काम ट्रैक मैंटेनर या गैंगमैन का होता है। हालांकि, रेलवे के पास इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है कि कितने गैंगमैन को अधिकारियों ने अपने निजी काम में लगा रखा है।

सूत्रों के मुताबिक रेलवे के अधिकारियों ने करीब सौ से अधिक ट्रैकमैन की ड्यूटी अपने बंगलों और दफ्तरों में लगा रखी है। इनमें कुछ ट्रैकमैन गाड़ी भी चला रहे हैं। झांसी रेल मंडल में ऐसे करीब 35 से अधिक अधिकारी हैं, जिन्होंने बड़ी संख्या में ट्रैक मैन को अपने बंगले और दफ्तर में निजी काम के लिए तैनात कर रखा है। इनमें इंजीनियरिंग, वाणिज्य विभाग, परिचालन विभाग, लेखा विभाग, कार्मिक विभाग के कई सारे अधिकारी शामिल हैं।

कोई माली बना, तो कोई बना है रसोइया

रेलवे अफसरों के बंगले में लगे ट्रैकमैन माली का काम कर रहे हैं या फिर रसोइया का। यही नहीं, मेम साहब तक को छोड़ने की ड्यूटी निभा रहे हैं। कई ट्रैकमैन ऑफिस की गाड़ी से बच्चे को स्कूल छोड़ने जा रहे हैं। इसके अलावा सब्जी लेने का काम ट्रैकमैन कर रहे हैं।

रेलवे बोर्ड के आदेशों को कर दिया दरकिनार

रेलवे के मुताबिक रेलवे को जितने ट्रैक मैंटेनर की जरुरत है, उसके आधे से भी कम मैंटेनर ही ट्रैक पर काम कर रहे हैं। इसी को देखते हुए पिछले साल रेलवे बोर्ड ने जोन को आदेश दिया था कि गैंगमैन और ट्रैकमैन को अधिकारियों के बंगले से मुक्त कर उनके असली काम पर लौटाया जाए, पर इन आदेशों का पालन अफसरों ने नहीं किया।

हादसों के शिकार हो जाते हैं ट्रैकमैन

हर साल ट्रैकमैन हादसों में घायल और अपाहिज हो जाते हैं। मानवीय आधार पर केवल इन्हीं घायल या दिव्यांग ट्रैकमैन को अधिकारियों के बंगले और दफ्तर में तैनात किया जाता है, ताकि उसे भारी वजन न उठाना पड़े, पर यहां तो बिना किसी वजह के ही ट्रैकमैन साहेब के घर हुजूरी कर रहे हैं।

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