Biography of Dhyan Chand: ध्यानचंद हॉकी के वो जादूगर, जिसनें अपनी स्टिक से दुनिया को नचाया:बृजेन्द्र यादव
Biography of Dhyan Chand: तीन ओलंपिक गोल्ड मेडल अपने नाम करने वाले मेजर ध्यान चंद को भारतीय हॉकी के एक दिग्गज के तौर पर जाना जाता है। ध्यान चंद के जन्मदिन पर भारत में खेल दिवस मनाया जाता है। हम सभी जानते हैं कि मेजर ध्यानचंद भारतीय हॉकी के एक दिग्गज खिलाड़ी थे।
Jhansi News: जिसने अपनी हॉकी की जादूगरी दिखाकर भारत देश पर राज करने वाले तानाशाह हिटलर के सामने उसी के देश को पराजित कर जब भारत देश का लोहा मनवाया था आज उस हॉकी के जादूगर का हम सब भारतीय बड़े गर्व के साथ उनका जन्म दिवस मना रहे हैं शायद कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है बात उस समय की है जब हम गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए थे और एक भारतीय महानायक ने हॉकी खेल के माध्यम से हमारे देश पर राज करने वाले सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को उसी के देश में जाकर शर्मसार कर दिया था वह थे हॉकी जादूगर मेजर ध्यानचंद 29 अगस्त को कई कहानियां दद्दा ध्यानचंद की समाचार पत्रों में और सोशल मीडिया पर देखने को मिलती हैं पर यह कहानी कुछ अलग हटकर लिखी गई है जो इस महान देश के साधारण परिवार में जन्मे व्यक्ति ने अपने खेल कौशल से विश्व पर राज करने वाले सर्वोत्तम राजा को उसी की सरजमीं पर उसके सम्मुख शर्मसार किया था।
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तीन ओलंपिक गोल्ड मेडल अपने नाम करने वाले मेजर ध्यान चंद को भारतीय हॉकी के एक दिग्गज के तौर पर जाना जाता है। ध्यान चंद के जन्मदिन पर भारत में खेल दिवस मनाया जाता है। हम सभी जानते हैं कि मेजर ध्यानचंद भारतीय हॉकी के एक दिग्गज खिलाड़ी थे। गोल करने की उनकी क्षमता और हॉकी स्टिक में गेंद को चिपकाकर सीधे गोल पोस्ट तक पहुंचाने में माहिर ध्यान चंद को उनकी इसी कला की वजह से 'जादूगर' भी कहा जाता था।
भारत में हॉकी की बात होते ही सबसे पहला नाम मेजर ध्यान चंद का ही आता है, एक ऐसी शख़्सियत जिसने सभी को अपना क़ायल बना दिया था। उनके हाथ में हॉकी स्टीक इस तरह घूमती थी जैसे मानों वह सुई में धागा पिरो रहे हों, यही कारण था कि उन्हें लोग हॉकी का जादूगर कहने लगे थे। 29 अगस्त 1905 में इलाहाबाद में जन्में मेजर ध्यान चंद के पिता समेश्वर सिंह थे जो इंग्लिश आर्मी में फ़ौजी थे। ध्यान चंद की मां का नाम श्रद्धा सिंह था, बहुत ही कम उम्र में ध्यान चंद ने हॉकी का रुख़ कर लिया था। अपने पिता की तरह वह भी 16 साल की उम्र में ही इंग्लिश आर्मी में भर्ती हो गए थे। इसके बाद वह अपना पसंदीदा खेल इंग्लिश आर्मी के लिए खेलते रहे। 1922 से 1926 के बीच में ध्यान चंद हर स्तर की आर्मी प्रतियोगिताओं में हॉकी टीम का हिस्सा रहे, वह बहुत ही प्यार से हॉकी स्टीक से गेंद को गोलकीपर से छकाते हुए नेट्स में पहुंचाते थे।
इस खेल ने ध्यान चंद को इस क़दर दिवाना बना दिया था कि काम से लौटने के बाद आधी रात को भी ध्यान चंद हॉकी खेलते रहते थे। वह चांद की रोशनी में हॉकी खेला करते थे, और लोगों ने उसी पर उनका नाम ध्यान चंद रखा, चंद मतलब भी चांद होता है।
भारतीय हॉकी टीम में एंट्री
यह ध्यान चंद के कमाल के खेल का नतीजा ही था कि 1926 में वह भारतीय आर्मी को लेकर न्यूज़ीलैंड दौरे पर गए। वहां उन्होंने धमाकेदार प्रदर्शन करते हुए 18 मैचों में जीत दर्ज की, सिर्फ़ दो मुक़ाबले ड्रॉ रहे और सिर्फ़ एक मैच में उनकी टीम को हार का सामना करन पड़ा। ध्यान चंद के उस प्रदर्शन को हर तरफ़ से तारीफ़ मिली और उनके पहले विदेशी दौरे से इंग्लिश आर्मी भी बहुत ख़ुश हुई। वापसी पर ध्यान चंद को इंग्लिश भारतीय आर्मी ने ‘लान्स नाइक’ नाम से नवाज़ा।
ध्यान चंद का प्रदर्शन सभी की नज़रों में लगातार था, और फिर 1928 में वह भारतीय हॉकी टीम का भी हिस्सा बने जो एम्सटर्डम ओलंपिक में हिस्सा लेने जा रही थी। ओलंपिक में हॉकी को पहली बार शामिल किया गया था, और तभी इंडियन हॉकी फ़ेडरेशन (IHF) की स्थापना भी की गई थी। इसके लिए IHF चाहता था कि वह सर्वश्रेष्ठ टीम को ओलंपिक के लिए भेजे और इसके लिए एक इंटर प्रोवेन्शियल टूर्नामेंट का आयोजन किया गया था। इस टूर्नामेंट में पांच राज्यों की टीम ने हिस्सा लिया, जिनमें पंजाब, बंगाल, राजपुताना, यूनाइटेड प्रोविंस (UP) और सेंट्रल प्रोविंस (CP) शामिल थे। ध्यान चंद ने मानो ये सोच लिया था कि इस टूर्नामेंट में सिर्फ़ अच्छा नहीं करना है बल्कि अपने खेल से चयनकर्ताओं और दर्शकों का दिल भी जीतना है। हॉकी स्टीक पर उनका नियंत्रण ऐसा था कि गेंद उनकी स्टीक से चिपक जाती थी और वह उसे लेकर आसानी से गोल कर आते थे।
ओलंपिक का सपना
उस टूर्नामेंट में ध्यान चंद के बेहतरीन प्रदर्शन ने उन्हें सेंटर फॉर्वर्ड में जॉर्ज मार्थिन्स के साथ इनसाइड राइट में साझेदारी का मौक़ा दिया, और उन्हें मिल चुका था ओलंपिक का टिकट। हालांकि एम्सटर्डम तक पहुंचने में टीम इंडिया को कई तरह की आर्थिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा था, लेकिन एक बार नीदरलैंड्स पहुंचने के बाद इस प्रतियोगिता को भारतीय हॉकी टीम ने अपना बना लिया था और पूरी तरह से वह हावी रहे। ध्यान चंद ने इस टूर्नामेंट में कुल 14 गोल किए और डेब्यू ओलंपिक में ही भारतीय हॉकी टीम को गोल्ड दिलाने में अहम भूमिका निभाई, 5 मैचों में 14 गोल करने वाले ध्यान चंद टूर्नामेंट के टॉप स्कोरर रहे।
आगे भी जारी रहा जलवा
ध्यान चंद यहीं नहीं रुके बल्कि अपने खेल में और भी निखार लाते हुए उन्होंने 1932 लॉस एंजिल्स में भी भारत को लगातार दूसरा गोल्ड मेडल दिला दिया। इस बार यह पहले से भी ख़ास था, क्योंकि ध्यान चंद के भाई रूप सिंह भी इस बार खेल रहे थे और दोनों भाईयों ने मिलकर भारत की झोली में गोल्ड मेडल लाए। पिछले दो ओलंपिक में अपने खेल से सभी का दिल और गोल्ड जीत लेने वाले ध्यान चंद 1936 बर्लिन ओलंपिक में कप्तान के तौर पर ओलंपिक में पहुंचे थे। लेकिन यह अतिरिक्त ज़िम्मेदारी उनके खेल में और भी निखार लेकर आई, इस टूर्नामेंट में टीम इंडिया ने कुल 38 गोल किए और फ़ाइनल से पहले भारत के ख़िलाफ़ एक भी गोल किसी टीम ने नहीं किया। भारत ने इस बार भी ओलंपिक गोल्ड जीतते हुए हैट्रिक बना डाली।
राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों में आज भी ध्यान चंद अमर हैं
इस जीत से लौटने के बाद ध्यान चंद ने एक बार फिर आर्मी ज्वाइन कर ली और अब वह इंग्लिश आर्मी में ही हॉकी खेला करते थे। जबकि भारतीय हॉकी को अब बल्बीर सिंह सीनियर के तौर पर एक नया सितारा मिल चुका था। लेकिन ध्यान चंद की उपलब्धियों की बराबरी कोई न कर सका है और न ही शायद कर पाएगा। ध्यान चंद 1956 में आर्मी की नौकरी से रिटायर हुए और फिर उन्हें उसी साल भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से नवाज़ा गया। उसके बाद उन्होंने कोचिंग की ज़िम्मेदारी निभाई और उन्हें नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्पोर्ट्स (NIS) का मुख्य कोच नियुक्त किया गया। वह आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं लेकिन ध्यान चंद की उपलब्धियां आज भी हमारे ज़ेहन में बसी हुई हैं और वह उसमें जीवित हैं। देश उन्हीं के जन्मदिन यानी 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाता है। नई दिल्ली के राष्ट्रीय स्टेडियम का नाम भी उन्हीं पर पड़ा है और आज भी मेजर ध्यान चंद हॉकी खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं।