हिन्दू महिलाओं के लिए कितना ख़ास है जितिया व्रत? यहां जानें

जीवित्पु्त्रिका या जितिया व्रत हिन्दू धर्म में आस्थाक रखने वाली महिलाओं के लिए विशेष महत्वो रखता है। यह व्रत संतान की मंगल कामना के लिए किया जाता है। महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और उसकी रक्षा के लिए इस निर्जला व्रत को रखती हैं।

Update: 2023-05-25 17:41 GMT

लखनऊ: जीवित्पु्त्रिका या जितिया व्रत हिन्दू धर्म में आस्थाक रखने वाली महिलाओं के लिए विशेष महत्वो रखता है। यह व्रत संतान की मंगल कामना के लिए किया जाता है।

महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और उसकी रक्षा के लिए इस निर्जला व्रत को रखती हैं। यह व्रत पूरे तीन दिन तक चलता है। व्रत के दूसरे दिन व्रत रखने वाली महिला पूरे दिन और पूरी रात जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती है।

यह व्रत उत्तर भारत विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रचलित है। पड़ोसी देश नेपाल में भी महिलाएं बढ़-चढ़ कर इस व्रत को करती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, जितिया व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तिथि तक मनाया जाता है।

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क्या है मान्यता

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व जीवित्पुित्रिका या जितिया का व्रत हिन्दू धर्म में आस्था् रखने वाली महिलाएं संतान की मंगल कामना के लिए करती हैं। मान्यता है कि यह व्रत बच्चों की लंबी उम्र और उनकी रक्षा के लिए किया जाता है। इस व्रत की कथा सुनने वाली महिलाओं को भी कभी संतान वियोग नही सहना पड़ता है। साथ ही घर में सुख-शांति बनी रहती है।

जीवित्पुत्रिका व्रत शुभ मुहूर्त:

अष्टतमी तिथि प्रारंभ: रात 08 बजकर 21 मिनट से (21 सितंबर) अष्ट मी तिथि समाप्तप: रात 07 बजकर 50 मिनट तक (22 सितंबर) जितिया व्रत 21 सितंबर से लेकर 22सितंबर तक है।

जितिया व्रत की पूजा विधि

जितिया व्रत के पहले दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले जागकर स्ना न करके पूजा करती हैं और फिर एक बार भोजन ग्रहण करती हैं और उसके बाद पूरा दिन कुछ भी नहीं खातीं। दूसरे दिन सुबह स्ना्न के बाद महिलाएं पूजा-पाठ करती हैं और फिर पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं।

व्रत के तीसरे दिन महिलाएं पारण करती हैं। सूर्य को अर्घ्या देने के बाद ही महिलाएं अन्ने ग्रहण कर सकती हैं। मुख्यअ रूप से पर्व के तीसरे दिन झोर भात, मरुवा की रोटी और नोनी का साग खाया जाता है।

अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है। जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, अक्षत, पुष्प, फल आदि अर्पित करके फिर पूजा की जाती है।

इसके साथ ही मिट्टी और गाय के गोबर से सियारिन और चील की प्रतिमा बनाई जाती है। प्रतिमा बन जाने के बाद उसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पूजन समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुननी चाहिए।

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पहली कथा का कनेक्शन महाभारत से है

जितिया की शुरुआत के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। आप सभी महाभारत की कहानी से तो परिचित होंगे ही तो जब महाभारत के युद्ध में पांडवों ने छल से अश्वथामा के पिता यानी द्रोणाचार्य को मार दिया था। अश्वथामा गुस्से में उबलता हुआ अपने पिता की मौत का बदला लेने को आतुर था।

गुस्से में एक दिन उसने पांडवों के शिविर में घुसकर पांडवों के पांच बच्चों को मार डाला। असल में अश्वथामा को लगा था कि वो पांच बच्चे पांडव हैं, लेकिन वो पांचों द्रौपदी के बच्चे थे।

अश्वथामा की इस गलती के वजह से अर्जुन ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसकी मणि छीन ली। अश्वथामा ने बदले में अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया।

बच्चा गर्भ में ही मर जाता लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की गर्भ में मरे संतान को दे दिया और वह जीवित हो गया। गर्भ में मरकर दोबारा जीवित होने की वजह से ही उत्तरा के पुत्र का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और यह रीत व्रत के रूप में तभी से प्रचलित है।

दूसरी कथा का कनेक्शन गन्धर्वराज जीमूतवाहन से है

गन्धर्वराज जीमूतवाहन एक धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे। युवावस्था में ही राजपाट छोड़कर जंगल में पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन जंगल में भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली।

नागमाता परेशानी में रो रही थीं। जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है। नागवंश की रक्षा करने के लिए उन लोगों ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा।

इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है।

जीमूतवाहन ने ऐसा ही किया। गरुड़ जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला। जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया। जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया।

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