History of Chess: कन्नौज ने दुनिया को सिखाई 'शतरंज की चाल', चतुरंग ऐसे बना चेस
History of Shatranj: शतरंज के खेल की शुरुआत कहां से हुई, इसे लेकर लंबे वक़्त तक कौतूहल रहा। लोगों के मन में कई सवाल उठे, तो अनेक तर्क भी सामने आए। विभिन्न देशों से आई रिसर्च स्कॉलर की टीम ने...
History of Chess: शतरंज की गिनती दुनिया के बेहतरीन खेलों में होती है। यह खेल दिमाग, कौशल और बेहतर निर्णय क्षमता से ही जीता जा सकता है। सही मायनों में कहें तो इसे खेलने वालों की दिमागी कसरत हो जाती है। शतरंज आज विश्व भर में लोकप्रिय है। लेकिन, क्या आपको पता है कि, शतरंज का जनक कोई और नहीं बल्कि 'इत्र नगरी' के नाम से विख्यात उत्तर प्रदेश का कन्नौज जिला है। यहीं शतरंज का जन्म हुआ, जहां से यह पूरी दुनिया में लोगों की नजरों में आया।
शतरंज के खेल की शुरुआत कहां से हुई, इसे लेकर लंबे वक़्त तक कौतूहल रहा। लोगों के मन में कई सवाल उठे, तो अनेक तर्क भी सामने आए। विभिन्न देशों से आई रिसर्च स्कॉलर की टीम ने आखिरकार इस बात पर मुहर लगा दी कि, कन्नौज में ही इस महान खेल की जन्मस्थली रहा है। आपको आश्चर्य होगा कि, बाकायदा ढाई दशक तक चले रिसर्च के बाद निष्कर्ष सामने आया। रिसर्च के दौरान कई ऐतिहासिक प्रमाणों तथा घटनाओं का हवाला दिया गया। रिसर्च टीम ने माना कि, यह पूरी तरह सच है कि शतरंज के खेल की शुरुआत कन्नौज में ही हुई थी।
शतरंज का इतिहास (History of Chess)
शतरंज का इतिहास (History of Chess in India) कम से कम 1500 साल पुराना है। इस खेल का आविष्कार भारत के कन्नौज में हुआ था। मूलतः इसे अष्टपद अर्थात चौंसठ वर्ग कहा जाता था। संस्कृत भाषा में 'अष्टपद' मकड़ी के लिए प्रयोग होता है। इसे आठ पैरों के साथ एक पौराणिक चेकर बोर्ड पर पासा के साथ खेला गया था। वर्तमान समय की शतरंज की बिसात में हम काले और सफेद रंगों का जो वर्ग देखते हैं, करीब 1000 साल तक ऐसा नहीं था। प्राचीन समय में राजा-महाराजा शतरंज में प्यादे के रूप में अपने दासों को हाथी, घोड़ा आदि बनाकर खेला करते थे। समय के साथ इस खेल का विस्तार फारस तक हुआ। यहां इसे आकार और नियमों में संशोधन के साथ विस्तार मिला। फारस के लोगों ने इसे शत्रुंज (शतरंज) नाम दिया। कहते हैं, खेल में इस्तेमाल होने वाला 'चेकमेट' भी फारसी शब्द 'शाह मेट' से लिया गया है। इसका अर्थ है 'राजा असहाय है'।
चतुरंग से शतरंज और अब...'चेस'
शतरंज का ईजाद कन्नौज के प्रतापी राजा हर्षवर्धन (King Harshavardhana of Kannauj) ने 'चतुरंग' (चतुरंगा) के रूप में किया था। हर्षवर्धन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने इसी खेल से प्रेरित अपनी युद्धनीति से कई विदेशी शासकों को पराजित किया। भारत के बाद यह खेल ईरान तक मुगलों से पहुंचा। ईरान में चतुरंगा से इसका नाम शतरंज हो गया। हालांकि, अब रूस, स्पेन, इटली सहित दुनिया के अधिकांश देशों में इसे 'चेस' के रूप में जाना जाता है। शतरंज की गिनती सबसे पहले ज्ञात खेल (Chess in India History) के तौर पर होती है। एक सामान्य सिद्धांत है कि, भारत में बोर्ड और शतरंज का विकास संभवतः शून्य की खोज से जुड़े गणितीय ज्ञान के कारण हुआ। पुरातात्विक खोजों में अन्य वस्तुओं के साथ शतरंज की मोहरे मिली हैं।
शतरंज की शुरुआत कन्नौज से, ढ़ाई दशक चला शोध
जर्मनी के म्यूनिख यूनिवर्सिटी के मैनफ्रेड एजे एडर ने सालों चली अपनी रिसर्च के बाद बताया कि, 'वर्तमान शतरंज (चेस) के नाम से पहचान रखने वाले इस खेल को पहले चतुरंगा कहा जाता था। चतुरंगा में इस्तेमाल होने वाले मोहरे कन्नौज में ही मिले। ये मोहरे 7वीं सदी में मौखरि वंश (Maukhari dynasty) साम्राज्य के दौरान इस्तेमाल की जाती थीं। ढाई दशक से इस विषय पर शोध चला। मैनफ्रेड एजे एडर ने बताया, इस दौरान कई बार वह भारत आए। कन्नौज का भी दौरा किया। साल 1996 से 2016 के बाद तक भारत आकर कई साक्ष्य जुटाए। उन्होंने कहा, साक्ष्य और रिसर्च के आधार पर यह पुख्ता तौर पर कहा जा सकता है कि शतरंज की शुरुआत उत्तर प्रदेश के कन्नौज से ही हुई थी।' इस रिसर्च में जर्मनी, स्वीडन, डेनमार्क, स्वीटजरलैंड के अलग-अलग विश्वविद्यालय से जुड़े रिसर्च स्कॉलर कई बार कन्नौज आकर इसे परख चुके हैं।
कन्नौज में आज भी मौजूद हैं तथ्य
कन्नौज में आज भी शतरंज से जुड़े कई तथ्य मौजूद हैं। कन्नौज संग्रहालय (Kannauj Museum) में रखे 'अश्वरोही', 'गजारोही', 'पैदल सिपाही' और 'राजा के प्यादे' साक्ष्य के तौर पर हैं। 'द कन्नौज' नामक पुस्तक (The Kannauj Book) में इसे विस्तार से बताया गया है। इस किताब में राजा हर्षवर्धन से जुड़ी जानकारियां और उनके चतुरंगा चित्रों के साथ वर्णन है। रिसर्चर्स को 1996 में कन्नौज में शतरंज के आविष्कार (Chess Invention Story) के तथ्य मिले थे। इसी के बाद उन्होंने शोध शुरू किया।
वक़्त के साथ बदलता गया खेल
जानकार बताते हैं कि, अलग-अलग समय पर खुदाई के दौरान कन्नौज (Kannauj Historical Places) में मोहरे मिले। मौकरी शासन के दौरान चतुरंगा का खेल खेला जाता था। इसमें टेराकोटा से बने गजारोही, अश्वरोही, योद्धा आदि मोहरे होते थे, जो बदलते वक्त में शतरंज हुआ। मोहरों के नाम भी बदल गए। पहले जहां यह खेल 24 खाने में खेला जाता था, वह अब 64 खाने का हो गया। चेस हिस्टोरिकल रिसर्च टीम के सदस्य और कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता इस सिलसिले में पटना भी गए। वहां से कन्नौज लौटने पर उन्हें सम्राट हर्षवर्धन के दरबार में कवि रहे बाणभट्ट की किताब 'चरितम' (Banabhatta's book 'Charitam') में चतुरंगा खेल की जानकारी मिली।
शतरंज: 'युद्ध का खेल' (Chess: 'The Game of War')
शतरंज की बिसात, शतरंज की चाल, शतरंज के मोहरे, प्यादा, वजीर जैसी कहावतें और शब्द का जन्म भारत में ही हुआ। ऐसा इसलिए कि, शतरंज की शुरुआत इसी देश में हुई। यूपी का कन्नौज जिला जनक बना। शतरंज एक प्रकार से 'युद्ध का खेल' है। दरअसल, उस दौर में राजा होते थे। अक्सर वो युद्ध लड़ते थे। ऐसे में शतरंज के जरिए न सिर्फ वो अपना मनोरंजन करते थे, बल्कि खुद को मानसिक तौर पर मजबूत भी करते थे। धीरे-धीरे शतरंज की पहचान दुनिया में बनी। अब कई बड़ी प्रतियोगिताएं होती हैं। इस खेल के माध्यम से भारतीय खिलाड़ियों ने भी विश्व पटल पर देश का नाम गौरवान्वित किया।