हिन्दी पत्रकारिता दिवस की वर्षगांठः कानपुर के लाल जुगल किशोर शुक्ल ने उगाया सूरज

Hindi Journalism Day : जुगल किशोर शुक्ल ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ हिन्दी पत्रकारिता के सूर्य उदन्त मार्तण्ड का उदय कराया।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Shraddha
Update: 2021-05-30 08:41 GMT

जुगल किशोर शुक्ल (फाइल फोटो सौ. से सोशल मीडिया)

Hindi Journalism Day : 30 मई 2021 आज का दिन बहुत खास है। आज हिन्दी पत्रकारिता (Hindi Journalism) की 195 वीं वर्षगांठ है। मात्र पांच साल बाद हिन्दी पत्रकारिता को आरंभ हुए दो सौ साल पूरे हो जाएंगे। जानने की बात यह है हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत उस समय हुई जब देश में ब्रिटिश हुकूमत का दबदबा था। लोग उस समय हुकूमत से आमने सामने की लड़ाई नहीं लड़ सकते थे तब उत्तर प्रदेश के कानपुर के रहने वाले पेशे से वकील जुगल किशोर शुक्ल ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनता की आवाज के रूप में हिन्दी पत्रकारिता के सूर्य उदन्त मार्तण्ड (Surya Udanta Martand) का उदय कराया। इसे यह भी कहा जाता है कि हिन्दी पत्रकारिता का जन्म सत्ता के प्रतिरोध के रूप में हुआ लेकिन आज पत्रकारिता ने सत्ता की चाटुकारिता का स्थान ले लिया है। कुछ ऐसा ही है हिन्दी पत्रकारिता का दो सौ साल का विकास।

वैसे कहा यह भी जाता है कि भारत में पत्रकारिता की नींव साल 1780 में शुरू हुए अंग्रेजी पत्र 'बंगाल गजट' से रखी गई थी। अंग्रेजी में जैसे-जैसे समाचार पत्रों का बोलबाला बढ़ा, बंगाली और उर्दू भाषा में भी अख़बार प्रकाशित होने लगे। उस समय ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता हुआ करती थी और इसलिए पत्रकारिता का गढ़ भी बंगाल बना। दरअसल, बंगाल नवजागरण और बौद्धिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में बंगाल तेजी से उभरा था।

देश में समाचार पत्रों का प्रसार होने लगा

अखबार बढ़े तो धीरे धीरे पूरे देश में समाचार पत्रों का प्रसार होने लगा। लेकिन एक कसक अभी बाकी थी देश का एक भाग इससे अछूता था। यह था उत्तर भारत का हिंदी भाषी क्षेत्र। वैसे तो उस समय तक हिंदी का कोई ठोस स्वरूप था ही नहीं। हिंदी उस समय बहुत-सी क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों का मिला-जुला रूप थी। हिंदी के लिखित स्वरूप का निर्धारण भी नहीं हो सका था। क्योंकि उस समय तक हिन्दी का व्याकरण अस्तित्व में नहीं आया था। इसी वजह से उस समय हिंदी के टाइप मिलने में भी बड़ी कठिनाई थी।

कलकत्ता स्कूल बुक ने प्रिंटिंग का काम शुरू किया

फिर आया साल 1820, इसमें कलकत्ता स्कूल बुक ने प्रिंटिंग का काम शुरू किया। यहाँ से एक मैगज़ीन निकली, जिसका नाम था 'समाचार दर्पण'। वैसे तो यह मैगजीन बंगला भाषा में थी, लेकिन इसका कुछ भाग हिंदी में भी छपता था। मतलब कि अब देवनागरी लिपि का टाइप मिलना उतना मुश्किल नहीं रह गया था। फिर भी हिंदी के समाचार पत्र को अस्तित्व में आने में 6 साल और लगे। और फिर लिया हिन्दी के पहला समाचार पत्र ने जन्म। इसका प्रकाशन 30 मई, 1826 कलकत्ता से एक साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू किया हुआ। यह महान कार्य जुगल किशोर शुक्ल ने किया। उन्होंने कलकत्ता के रंग टोला नामक मोहल्ले की ३७ नंबर एम्सटील से इस हिंदी साप्ताहिक पत्र को निकालने का महान कार्य किया। उस समय अंग्रेजी, फारसी और बंगाली में तो कई पत्र निकल रहे थे, लेकिन हिन्दी में एक भी पत्र नहीं निकलता था।

 सूर्य उदन्त मार्तण्ड

उदन्त मार्तंड हर मंगलवार को निकलता था। इसकी कुल 79 अंक ही प्रकाशित हो पाये और आर्थिक संकट की वजह से जून, 1827 में इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा। इसके अंतिम अंक में लिखा था- मिति पौष बदी 1 जमीन संवत् 1884 तिथि दिसंबर के 1827 . हेडिंग कुछ इस तरह थीं- आज दिन लौं उग आया टोक्यो और एक सरकारी सहायता के बिना, किसी भी समाचार पत्र को चलाना आज भी दुरूह है उस समय तो यह और भी कठिन था। कंपनी की सरकार ने मिशनरियों के लिए तो पत्र डाक आदि की सुविधा दे रखी थी, लेकिन कोशिश करने के बावजूद "उदन्त मार्तंड" यह सुविधा प्राप्त नहीं कर सका। इस पत्र में ब्रज और बाद के संस्करण में ब्रज और अवधी दोनों के मिश्रित रूप का इस्तेमाल किया गया था।

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