खो रहा कानपुर... एक शहर की सिसकती दास्तान

Kanpur News: तमाम नामों के साथ नई आशाओं का शहर, राजनीति के धुरंधरों का शहर कानपुर।;

Written By :  Snigdha Singh
Update:2025-02-25 15:53 IST

Kanpur

मैं स्निग्धा सिंह, मेरे शहर में लोग मुझे प्राची सिंह के नाम से जानते हैं। पेशे से पत्रकार हूं। आज का मैंने लेखन विषय मेरा शहर 'कानपुर' चुना है। मेरी उम्र बहुत ज्यादा नहीं इस लिहाज से मैं कानपुर को बहुत ज्यादा नहीं जानती लेकिन कई साल तक अपने शहर में पत्रकारिता और इतिहास पढ़ने के बाद मैंने अपने शहर का दर्द महसूस किया। आधुनिकता और एआई के जमाने में जहां दुनिया आगे बढ़ रही वहीं, मेरा कानपुर शायद पीछे छूटने पर सिसक रहा है। 

एक दौर था, जब कानपुर में मिल के सायरन और देश दुनिया के कारोबारियों से शहर में अलग ही गूंज थी। कानपुर उत्तर प्रदेश का एक ऐसा शहर है जो एक समय में मैनचेस्टर ऑफ ईस्ट रहा। एक ऐसा शहर जिसने देश को राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक दिया। औद्योगिक जगत में कानपुर आज भी देश के कई बड़े शहर ही नहीं बल्कि राज्यों को पीछे छोड़ता है। लेकिन अब यहां का कारोबार हांफने लगा है। कारोबारियों का भी इस शहर से मोहभंग हो चुका है। पहले शहर की मिल में ताला पड़ा फिर लेदर इंडस्ट्री भी धीरे धीरे शहर से बाहर होने लगी। वहीं, पान मसाला के कारोबारी भी प्रशासनिक कार्रवाइयों से इतना परेशान हो गए कि दूसरे राज्यों की तरफ कूच करने लगे। कानपुर के सुंदरीकरण में शहर के कारोबारियों का भी उतना ही योगदान है, जितना नगर निगम का। शहर को किसी नेता के रूप में कोई मसीहा मिला हो या न मिला हो लेकिन कारोबारियों ने इसको 'कानपुर' बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बता दें कि कानपुर में बिल्हौर, पनकी, दादानगर और कानपुर देहात का कुछ क्षेत्र में फैक्ट्रियों और कारखानों से पटा हुआ यानि इंडस्ट्रियल एरिया है। 

बंद हो गई मिलें

अंग्रेजों के जमाने में बनीं मिल की मशीनों के चक्के अब जाम हो गए। लाल इमली मिल, एलएमएल, बीएसआई, एल्गिन मिल,आईसीआई लिमिटेड समेत शहर में 12 मिल बंद हो चुकी हैं। इन फैक्ट्रियों में ऊनी, सूती और होजरी तमाम अलग अलग तरह का टेक्स्टाइल बनता था। जब देश में अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री थे, वर्ष 2003 से तब से इन मिल की स्थिति बिगड़ने लगी थी। 2007 में इनका उत्पाद एकदम नीचे गिरा और फिर समय के साथ इन फैक्ट्रियों के चक्के जाम हो गये। इन मिल काे सायरन भी खामोश हो गए। यहां काम करने वाले मजदूरों ने अपने वेतन की लड़ाई लड़ी लेकिन कुछ अब दुनिया में नहीं रहे कुछ एक नई उम्मीद की किरण देख रहे हैं।

अंत की ओर लेदर इंडस्ट्री

कानपुर यानि लेदर इंडस्ट्री। जब मिल बंद हुईं तो लाखों की संख्या में शहर में मौजूद कर्मचारियों और मजदूरों के घरों में चिराग चमड़े की फैक्ट्रियों ने जलाए। शहर में लंबे अरसे तक चमड़े का कारोबार फूलता फलता रहा। धीरे धीरे एनजीटी ने एक-एक करके टेनरियों रोक लगाना शुरू कर दिया। भाजपा सरकार आने के बाद शहर की सीमा में बनी चमड़ा फैक्ट्रियों में ताला डाल दिया। प्रदूषण रोकने की सुविधाएं करने के बजाय टेनरियों को बंद करने या तो दूसरी जगह शिफ्ट करने के आदेश दे दिया गया। इस स्थिति में जो चमड़ा कारोबारी थे वह दूसरे शहरों में जाने के लिए मजबूर हो गए। अब  साल 2021-2022 में कानपुर से चमड़ा उत्पादों का निर्यात 3 बिलियन डॉलर से बढ़कर 4.90 बिलियन डॉलर रहा। मालूम हो कि कानपुर में करीब 10 हजार करोड़ से अधिक का लेदर कारोबार सालाना होता है। 

कूच करते कारोबारी

कानपुर में पान मसाले का कारोबार भी खूब चला। देश के नामचीन ब्रांड से लेकर छोटी-छोटी पान मसाला कंपनियों ने अब शहर से बाहर जाने के योजनाएं तय कर ली हैं। लगातार कर विभाग की ओर हो रही कार्यवाही के बाद बड़े कारोबारियों ने 90 फीसदी कारोबार हिमाचल और एनसीआर की तरफ शिफ्ट कर दिया। राजश्री, एसएनके, गगन, सर, रायल, शिखर, केसर, सिग्नेचर, शुद्ध प्लस, तिरंगा, किसान, मधु पान मसाला और मधु जर्दा आदि कंपनियों पर लगातार निगरानी हो रही थी। ऐसे में कारोबारियों का कहना है कि व्यापार नहीं हो पाता। प्रशासनिक अधिकारी को-ऑपरेट नहीं करते हैं। मालूम हो कि शहर में मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक करीब 10 लाख करोड़ का व्यापार होता है। वहीं, कारोबारियों का कहना है कि शासम प्रशासन में सुनवाई ही नहीं है। 

नेताओं ने चमकाई राजनीति, नहीं चमका तो वह है शहर

राजनीति में भी कानपुर की अहम भूमिका है। ये प्रदेश का एक ऐसा जिला है, जिसने देश को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दिया। रामनाथ कोविंद और स्व. अटल बिहारी वायपेयी ने कानपुर के डीएवी कॉलेज से एलएलबी की डिग्री हासिल की। यहां 10 विधानसभा सीटें हैं। राजनीति में जब से मैंने समझ रखी तब से श्रीप्रकाश जायसवाल, मुरली मनोहर जोशी, सतीश महाना समेत कई ऐसे बड़े नेताओं ने इस शहर से अपनी राजनीति चमकाई। लेकिन कानपुर की सिकुड़ती स्थिति पर किसी ने नजर नहीं डाला। यहां के धड़कते कारोबार की धड़कने कब थमने लगी, इस पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। 

ये तो बात कारोबारियों की थी। यदि बात आम लोगों या फिर उन कर्मचारी और मजदूरों की करें, जिनके घर इन मिल और फैक्ट्रियों से चलते थे उनके क्या हाल होंगे।   

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