Kanshi Ram Aur Mayawati Ki Mulaqat: कुछ यूं हुई थी कांशीराम से मायावती की पहली मुलाकात, उन्होंने जो कहा वही हुआ

Kanshi Ram Aur Mayawati Ki Mulaqat: मायावती आज जिस मुकाम पर हैं, वह कांशीराम के मार्गदर्शन के बिना संभव नहीं था। उन्होंने माया से कहा था तुम्हारे इरादे, हौसले और कुछ खासियतें मेरी नजर में आई हैं। मैं एक दिन तुम्हें इतनी बड़ी लीडर बना दूंगा कि एक कलेक्टर नहीं बल्कि तमाम कलेक्टर तुम्हारे सामने फाइल लिए खड़े होंगे।

Written By :  aman
Newstrack :  Shreya
Update:2021-10-09 12:22 IST

कांशीराम - मायावती (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Kanshi Ram Aur Mayawati Ki Mulaqat: दलित नेता कांशीराम (Kanshi Ram) ने मायावती (Mayawati) के बारे में पहली बार तब सुना था, जब वह राजनारायण (Raj Narain) से भिड़ गई थीं। ये वही राजनारायण थे, जिन्होंने आपातकाल (Emergency) के बाद हुए चुनाव में देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को हराया था। इसके बाद कांशीराम मायावती से मिले और उनसे प्रभावित हुए। उनके समर्पण को सराहा। मायावती आज जिस मुकाम पर हैं, वह कांशीराम के मार्गदर्शन के बिना संभव नहीं था।

तो, हमारी कहानी आज यहां से आगे बढ़ती है। कांशीराम बिना किसी पूर्व सूचना के मायावती के घर पहुंच गए थे। ये वो वक़्त था, जब मायावती आईएएस (Mayawati IAS) की तैयारी कर रही थीं। मायावती का परिवार जब एकाएक कांशीराम को अपने घर देखा, तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। कांशीराम उनके साथ एक घंटा रहे। अजय बोस अपनी किताब 'बहन जी: ए पॉलिटिकल बायोग्राफी ऑफ मायावती' (Behenji: A Political Biography of Mayawati) में लिखते हैं, कांशीराम तब पहली बार मायावती से मिले थे।

उन्होंने माया से कहा, "तुम्हारे इरादे, हौसले और कुछ खासियतें मेरी नजर में आई हैं। मैं एक दिन तुम्हें इतनी बड़ी लीडर बना दूंगा कि एक कलेक्टर नहीं बल्कि तमाम कलेक्टर तुम्हारे सामने फाइल लिए खड़े होंगे। तभी तुम लोगों के लिए ठीक से काम कर पाओगी।" ये बातें जब हुई, तब मायावती राजनीतिक तौर पर बिलकुल कच्ची थीं। लेकिन कांशीराम की बातों से प्रभावित होकर चलने के लिए तैयार हो गईं। इसके बाद जो हुआ वह सबको पता है। मायावती के पिता ने उन्हें घर या राजनीति में से किसी एक को चुनने को कहा। उन्होंने राजनीति को सब कुछ दे दिया। 

(फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

कांशीराम और मायावती दोनों संसद पहुंचे

कांशीराम और मायावती के राजनीतिक जीवन में एक खास बात थी कि दोनों ही अपने शुरुआती चुनाव हारे। और फिर जीते भी। दोनों चुनाव जीतकर संसद तक पहुंचे। संसद में मायावती का पहला दिन गजब का रहा। वह स्पीकर को संबोधित करने के बजाय दौड़ते हुए मंत्रियों को कोसने पहुंच गई थीं। हालांकि, कांशीराम सौम्यता से बस देखते रहे। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। कांशीराम तब अटल बिहारी वाजपेयी के करीब आए और अपने रिश्ते बनाए। कहा जाता है कि जब मायावती के साथ गेस्ट हाउस कांड हुआ तब कांशीराम के बीजेपी से उन्हीं रिश्तों की वजह से जान बच सकी थी।

रिश्तों में कभी नहीं आई दरार

अजय बोस ने अपनी किताब में लिखा है कि साथ काम करते और संसद तक का सफर तय करते कांशीराम और मायावती में प्रगाढ़ता बढ़ती गई। उनकी नजदीकियों को लेकर बोस ने किताब में खुलकर लिखा है कि इससे कांशीराम के सहयोगी उनके विरोधी होने लगे थे। लेकिन इन दोनों में ऐसी समझ विकसित हो चुकी थी कि उनके रिश्तों में किसी प्रकार की दरार कभी नहीं आई। यही वजह थी कि बहुजन समाज पार्टी ने 90 के दशक से जिस ऊंचाई को छुआ, उसे किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है। 

कांशीराम के आंसु पोछतीं मायावती (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

कांशीराम पर अधिकार भाव

धीरे-धीरे कांशीराम और मायावती के बीच एक निजी और भावनात्मक रिश्ता कायम होने लगा। इसकी पुष्टि उनके नजदीकी लोग भी करते हैं। कहते हैं कि दोनों के बीच कई बार तेज आवाज में झगड़े भी होते थे, जिससे सहयोगी घबरा जाते थे। लेकिन ये उनके रिश्ते थे। यह झगड़ा नहीं बल्कि उनके भावनात्मक लगाव को रेखांकित करता था। इन दोनों के नजदीकी और पार्टी के पुराने नेता बताते हैं कि मायावती और किसी चीज से ज्यादा कांशीराम पर अधिकार का भाव रखती थीं। लेकिन ये राजनीति है। यहां ऐसे रिश्तों में अन्य असहज हो जाते हैं। उन्हें खतरा महसूस होने लगता है। एक वजह यह भी माना जाता है कईयों के बसपा से दूर जाने की। जिन्हें कभी कांशीराम ही पार्टी में लाए थे।

कांशीराम को लेकर असुरक्षा का भाव

कांशीराम शुरुआत से ही मायावती को सम्मान भाव से देखते थे। हमेशा अपने सहयोगियों आदि से उनकी तारीफ किया करते थे। उनके पार्टी को लेकर त्याग और समर्पण का भी वो उदाहरण देते थे। लेकिन मायावती के साथ ऐसा नहीं था। कहते हैं मायावती, कांशीराम को लेकर असुरक्षा महसूस करती थीं। मायावती पर पार्टी के अंदर के ही लोग जो उन पर आरोप लगाते हैं, कहते थे कि ये असुरक्षा का भाव तब तक रहा जब तक बसपा पर उनका पूर्ण नियंत्रण नहीं हो गया। पार्टी के पुराने नेता जो कभी कांशीराम के नजदीकी हुआ करते थे, बताते हैं कि जब भी कभी उन लोगों की बैठक हुआ करती थी, मायावती हर पांच मिनट पर वहां आ जाती थीं, भले बहाना कोई भी हो। 

(फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

मायावती पर लगे गंभीर आरोप

कांशीराम को जानने वाले आगे कहते हैं, "मायावती की शब्दकोष में माफी शब्द है ही नहीं। इसके उदाहरण कई बार राजनीति में आपको देखने को मिल जाएंगे। उन्होंने कभी अपने राजनीतिक विरोधी को बख्शा नहीं। यही काम उन्होंने पार्टी के भीतर उन लोगों के साथ भी किया जो कभी कांशीराम के वफादार हुआ करते थे। ऐसे लोगों को चुन-चुनकर पार्टी से बाहर किया या स्थितियां ऐसे बनायीं कि वो खुद ही पार्टी छोड़कर चले गए। अब कांशीराम के वक्त के कोई नेता पार्टी में बचे ही नहीं। अगर हैं भी तो नेपथ्य में जिनकी कोई सुध लेने वाला नहीं है। यही वजह है कि जब कांशीराम का लंबी बीमारी के बाद निधन हुआ तो मायावती पर उनके परिवार ने उनसे दूर रखने और भाई-बहनों ने तो हत्या तक के इल्जाम लगा दिए।

खैर, बातें जो भी हो। लेकिन यह तो सच है कि कांशीराम और मायावती का रिश्ता बेहद भावनात्मक था। राजनीतिक गलियारों में जो भी बातें हो। लेकिन इन्होंने हमेशा दलित राजनीति और पार्टी हित को सर्वोपरि रखा। इसी वजह से आज बहुजन समाज पार्टी जिस मुकाम पर है, उसका श्रेय दलित नेता कांशीराम व मायावती दोनों को जाता है।  

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