कुंभ नगर: कुंभ को विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है। कुंभ मेला को लोगों को जोडऩे वाला शक्तिशाली माध्यम भी माना जाता है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में डुबकी लगाने के लिए दुनिया भर से श्रद्धालु प्रयागराज पहुंच रहे हैं। मेला क्षेत्र में पूरी दुनिया से पहुंचे साधु-संन्यासियों ने भी डेरा जमा रखा है। मेला क्षेत्र में जुटे ये साधु-संन्यासी लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। वेद, पुराण, तप और साधना की दुनिया तेजी से आधुनिकता की दौड़ में कदमताल कर रही है। संगम पर पुण्य डुबकी लगाने के बाद लोग अजब-गजब साधुओं के बारे जानकारी हासिल करने के साथ ही उनका आशीर्वाद भी ले रहे हैं। इसके साथ ही मेला क्षेत्र में तमाम अन्य तरह की गतिविधियां भी चल रही हैं। मेला क्षेत्र में लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनी गतिविधियों पर हमारे संवाददाता आशीष पांडेय की रिपोर्ट।
सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं नागा
प्रयागराज में आस्था के महासंगम में पुण्य की डुबकी लगाने के लिए पहुंचे विभिन्न अखाड़ों से जुड़े नागा संन्यासी सबके आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। कई लोग इसे देखकर हैरान हो जा रहे हैं कि कई नागा संन्यासी सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय हैं। एक नागा साधु तो बाकायदा अपना यूट्यूब चैनल तक चला रहे हैं। पूछने पर नागा संन्यासी कहते हैं कि अब उनके शिष्य ऑनलाइन भी हो गए हैं। देश-विदेश में होने के कारण फेसबुक, यूट्यूब, व्हाट्स एप चलाना पड़ता है जिससे वह अपने भक्तों और शिष्यों तथा नागा संन्यासियों से जुड़े रहते हैं। अखाड़ों में आ रही आधुनिकता और टेक्नोलाजी को जानने के लिए जब पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन का रुख किया तो कई अजब-गजब पहलू दिखाई दिए।
वेद, पुराण, तप और साधना की दुनिया तेजी से आधुनिकता की दौड़ में कदमताल कर रही है। यह सब युवा संन्यासियों के अखाड़ों से जुडऩे के कारण तेजी से हो रहा है। अधिकतर आम लोगों से दूर रहने वाले नागा साधु संन्यासी कठोर तप और साधना में लीन रहते हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर भी उतने ही सक्रिय रहते है। उदाहरण के तौर पर वेदांत नगर काशी के डा.रामकल दास वेदांती छह माह विदेश में रहते हैं तो छह माह अपने देश में। इस समय कुंभ में उनके पंडाल में डिजिटल की झलक देखने को मिल रही है।
इसी तरह पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा के महंत महेश्वर दास के अखाड़े में कई युवा संन्यासी व्हाट्स एप ग्रुप और यूट्यूब चैनल को सक्रियता से चला रहे हैं। पिछले कुंभ के दौरान नागा संन्यासी के रूप में दीक्षा ली थी, लेकिन वह उसके पूर्व ही वर्ष 2006 से अखाड़े से जुड़ गए थे। स्नातक की पढ़ाई करने के बाद भ्रमणशील जमात के रामदास जी ने संस्कृत और संगीत में गहन अध्ययन भी किया। वह अपना फेसबुक पेज और यूट्यूब चैनल सक्रिय रखते हैं और उसमें अपडेट रहते हैं। तीन व्हाट्स एप ग्रुप के जरिए वह अन्य नागा संन्यासियों और देश व विदेश के श्रद्धालुओं से भी सम्पर्क में रहते हैं। इसी तरह कई युवा संन्यासी हैं जो स्नातक, पीएचडी, इंजीनियरिंग सहित अन्य डिग्रीधारक हैं।
पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के नागा संन्यासी भ्रमणशील जमात के रामदास बताते हैं कि पहले नागा संन्यासी आम लोगों से कोसों दूर रहते थे। उनके करीब जाने में भी लोगों को डर लगता था,लेकिन समय बदलता गया। इन बदलावों में महत्वपूर्ण भूमिका पंचायती अखाड़ा के संतों की है। संतों ने पद संभालने के बाद ऐसा माहौल बनाया कि नागा संन्यासी आम लोगों से दूर भागने की बजाय उनसे जुडऩे लगे, लेकिन इसकी भी एक रेखा है।
संस्कृत का ज्ञान ले रही बच्चों की टोली
संस्कृत को देवभाषा माना जाता है। हिन्दू धर्म से जुड़े वेद, पुराण, उपनिषद सभी संस्कृत में हैं। इसी देव भाषा को संरक्षित करने के लिए 100 नन्हें मुन्नों की टोली प्रयागराज के भक्ति वेदांत नगर स्थित काशी पंडाल में नियमित रूप से संस्कृत का ज्ञान ले रही है। ये बच्चे देश-दुनिया के धर्म समागम में अपनी भाषा के साथ धर्म से जुड़ी अन्य जानकारी लेने यहां आए हैं। 7 वर्ष से 20 वर्ष तक के इन बच्चों को आचार्य संतमणि त्रिपाठी और स्वामी वैष्णवी दास दीक्षा दे रहे हैं। सात साल के लेखराज कहते हैं कि अगर सभी अंग्रेजी बोलेंगे तो देवभाषा संस्कृत कौन बोलेगा। विदिशा के लव भार्गव से जब पूछा कि तुम्हारा नाम तो अंग्रेजी में है। फिर तुम संस्कृत क्यों सीख रहे हो तो बोला कि नाम तो परिजनों ने रखा है पर मैं संस्कृत से प्रेम करता हूं।
आकर्षण का केन्द्र बने आठ वर्ष के नागा बाबा शेर गिरि
संगम क्षेत्र में साधु-संन्यासियों की विविधता और उनके अनोखे अंदाज श्रद्धालुओं को खूब आकर्षित कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही आकर्षण श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के नागा बाबा शेर गिरि का है। नागा बाबा शेर गिरि श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े के श्री महंत शक्ति गिरि के शिष्य हैं। वह धूनी रमाए बैठे रहते हैं तो उन्हें देखने वालों की भीड़ जुट जाती है। उनके गुरु श्री महंत से बात की गई तो उन्होंने बताया कि वह हरियाणा में भिवानी के बवलिया आश्रम के नागा संन्यासी हैं और बचपन से ही उनका मन आध्यात्म में रम गया। उन्होंने बताया कि अभी तो शेर गिरि की उम्र 8 वर्ष है। जब पूछा गया कि क्या वह बालिग होने पर वापस अपने घर लौट सकते हैं, उन्होंने कहा कि सनातन धर्म और आध्यात्म की दुनिया ऐसी है कि यहां एक बार आकर जो रमता है तो फिर सांसारिक मोह माया और भौतिक सुख उसके लिए नश्वर हो जाता है,लेकिन यदि कोई वापस लौटना चाहे तो उसे रोका नहीं जाता।
विश्व कल्याण के लिए एक हाथ उठाए रखने का व्रत
आस्था के महाकुंभ में संतों का जहां समागम है तो वहीं अजब-गजब बाबाओं की भी झलक देखने को मिल रही है। इसी में एक नाम नागा बाबा सोमेश्वर गिरी का है। हम बात कर रहे हैं सेक्टर 16 में तुलसी मार्ग पर स्थित श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा 13 मढ़ी जगरामा परिवार के सोगेश्वर गिरि बाबा की। वह धूनी रमाए एक हाथ हवा में खड़ा किए हुए हैं और दूसरे हाथ से माथे पर भस्मी लगाकर आशीर्वाद देते हैं। पूछने पर बाबा ने बताया कि उनका नाम नागाबाबा सोमेश्वर गिरि उर्द बाहु नागा बाबा है। वह बचपन से ही आध्यात्म की दुनिया में रम गए। हिमाचल से आए यह बाबा लोगों में गजब आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। एक हाथ को हवा में खड़ा करने का कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि संत साधना और तप विश्व और मानवता के कल्याण के लिए करता है। यह तप कठोर अवश्य है, लेकिन संतों के हठ के आगे कोई तप कठिन नहीं होता। वह 2016 से एक हाथ को ऊपर ही रखते हैं। उन्हें उस हाथ को ऊपर रखने के लिए कोई सहारे की आवश्यकता भी नहीं होती।
51 हजार रूद्राक्ष धारण करने का तप
श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े में धूनि रमाए नागा संन्यासियों का एक बड़ा जत्था है। उसी में से एक नागा बाबा चैतन्य गिरि हैं। उन्होंने ज्यादा कुछ तो नहीं बताया, लेकिन जब उनके गले व सिर पर पहने रुद्राक्ष के बारे में पूछा तो वह बोले कि यह शिव के आशुओं से बनती है। जब रुद्राक्ष धारण करने का कारण पूछा गया तो वह पहले तो मौन हो गए। फिर कुछ ही क्षणों के बाद बोले कि कुंभ में लोग गंगा में आते हैं और पाप धुलते हैं। हम उसी गंगा को जनमानस के पाप से मुक्त कराने एवं धरती को पापविहीन करने के लिए तप कर रहे हैं और यह तप 1994 से से अनवरत चल रहा है। इस तप में मैंने 51 हजार रुद्राक्ष धारण करने का हठ लिया है, लेकिन एक भी रुद्राक्ष खरीदूंगा नहीं। अब तक मैं सात हजार रुद्राक्ष धारण कर चुका हूं और मेरे भक्त मुझे रुद्राक्ष भेंट करते रहते हैं। अब मेरा तप कब और कितने समय में पूर्ण होता है यह तो महादेव ही जान सकते हैं क्योंकि वही मेरे आराध्य और विश्व विधाता हैं।
नन्हीं साध्वियां बांट रहीं वेदों का ज्ञान
10, 12 और 14 वर्ष की उम्र में संस्कृत और वेदों में निपुण हो चुकी कई बेटियां कम उम्र में बटुकों को ज्ञान का प्रसाद बांटा करती हैं। नियमित कक्षाओं का संचालन करती हैं। वह यहां गुरु की भूमिका में उपस्थित रहती हैं। हम बात कर रहे हैं डा.राम कमल दास वेदांती के पंडाल में मौजूद नन्हीं साध्वियों की। यह साध्वियां सिर्फ संस्कृत और वेदों में ही पारंगत नहीं है बल्कि आधुनिकता की दौड़ में कदमताल करते हुए कंप्यूटर और अंग्रेजी पर भी अच्छी पकड़ रखती हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इन बेटियों ने 9 और 10 वर्ष की उम्र में ही समाज से विरक्त होकर दीक्षा हासिल की। संस्कृत भाषा के प्रसार के लिए दीक्षा ली थी। महज 13 वर्ष की साध्वी कृष्णप्रिया मध्यप्रदेश के सीहोर में जन्मी और दो साल पहले उन्होंने समाज से विरक्त होकर दीक्षा ले ली थी। इसके पहले उन्होंने संस्कृत भाषा और वेदों का ज्ञान लिया था। वे धर्म और आध्यात्म के करीब जाने के साथ ही वे सांसारिक मोह माया से दूर होती चली गईं। गुरु के आशीर्वाद से वे अब लगातार नई पीढ़ी को धर्म और वेदों का ज्ञान बांट रही हैं। वह बताती हैं कि ऐसा नहीं है कि मैं आधुनिक ज्ञान से विरक्त हूं बल्कि अंग्रेजी और कंप्यूटर की पढ़ाई अभी जारी है।
महिलाओं को वेद ज्ञान देने का प्रण
लगभग नौ वर्ष पूर्व दीक्षा ले चुकी 18 वर्ष की प्रेरणा शास्त्री कहती हैं कि सैकड़ों वर्ष पहले ऐसी मान्यता थी कि महिलाओं को वेदों, पुराणों का ज्ञान नहीं दिया जा सकता और वैदिक ज्ञान उनके लिए निषिद्ध है। संस्कृत सीखने के दौरान जब ऐसी जानकारी मिली तो उन्होंने अपने गुरु वेदांती महाराज से वार्ता की जिस पर उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है और तभी से प्रण किया कि वेदों में महारत हासिल कर महिलाओं को वेदों में पारंगत करूंगी। इसी ढृढ़ संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने सांसारिक मोह माया से विरक्त होकर दीक्षा ली। मूल रूप से ऋषिकेष की प्रेरणा शास्त्री का कहना है कि देश बचाना है तो पहले भाषा को बचाना होगा।
संस्कृत के संरक्षण पर जोर
मध्य प्रदेश के विदिशा के समीप एक गांव सिरोंज है वहां जन्मी16 वर्षीय ऋतंभरा कुमारी को सांसारिक मोहमाया से विरक्त होकर दीक्षा लिए छह साल से अधिक का समय बीत चुका है। वह कहती हैं कि मुझे किसी ने बताया था कि अगर किसी देश को खत्म करना हो तो उसकी भाषा को खत्म कर दो। संस्कृत हमारे देश की भाषा है और उसका लगातार पतन हो रहा है। तभी मुझे ऐसा लगा कि अगर संस्कृत भाषा ही खत्म हो गई तो देश का गौरव क्या होगा। बस तभी तय कर लिया कि संस्कृत का संरक्षण और विकास करना है। गुरु जी के नेतृत्व में दीक्षा ली और तबसे लगातार यही कर रही हूं। मुझे पता हैकि देश की सामाजिक विरासत को कायम रखना है तो संस्कृत को सुरक्षित रखना होगा।